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हेमन्त पहुंचे मृत किसान लखन महतो के घर, कहा सरकार अपने आचरण में लाएं सुधार, नहीं तो…

जिस किसान लखन महतो ने गत 26 जुलाई को कर्ज से परेशान होने के कारण अपने ही कुएं में डूबकर जान दे दी, उस किसान के घर आज नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन पहुंच गये। चान्हो प्रखण्ड के पतरातु गांव में जैसे ही लखन महतो के परिवार से वे मिले। परिवार की हालात और उसकी मनोदशा देखकर, उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया,

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क्योंकि उस वक्त आप थोड़ा वक्त की भीख मांगेंगे, और वक्त के पास आपको देने के लिए वक्त नहीं होगा

जो आप चाहते हो, ईश्वर उसे खुलकर देता है, वो कोई कटौती नहीं करता, बस ये आपके उपर निर्भर करता है कि आपने ईश्वर से मांगा क्या? मैं 53 वर्ष में प्रवेश कर चुका हूं, इस दौरान जीवन-पथ पर अनेक लोग मिले, जिनसे मैंने सीखा और जो लोग मुझसे सीखना चाहे, उन्हें निस्वार्थ भाव से सिखाया, और मन में कोई लालसा भी नहीं रही कि जिन्हें मैंने सिखाया, उनसे कुछ प्राप्त हो, या वे मुझे सम्मान दें। 

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रांची के बड़े कॉरपोरेट हॉस्पिटल/नर्सिंग होम नियमों की कर रहे अवहेलना, नहीं उपलब्ध करा रहे रक्त

रांची के अधिकतर बड़े कॉरपोरेट हॉस्पिटल/निजि हॉस्पिटल/नर्सिंग होम में देखा जा रहा है कि वे उनके यहां भर्ती मरीज़ों को, अगर खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, तो वे मरीज़ या मरीज़ के परिजनों को खून की व्यवस्था करने को कह कर छोड़ देते है,अधिकतर मरीज़ या मरीज़ के परिजन ब्लड डोनेट का इंन्तज़ाम भी करते हैं, मग़र जिनके पास कोई ब्लड डोनर की व्यवस्था नही हैं, उनको ऐसे ही छोड़ दिया जा रहा है।

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झारखण्ड में लोकतंत्र के लिए खतरा बनकर उभर रहे हैं रांची के अखबार और चैनल, विपक्ष परेशान

जब से मीडिया में सरकार का दखल बढ़ा है, मीडिया के मालिक और कथित संपादकों ने सत्ता के आगे अपना मस्तक झूकाने व उनके चरणोदक हृदय से ग्रहण करने का कार्य प्रारम्भ किया है, देश में लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है, इसे सभी को स्वीकार करना होगा। पूर्व में चुनाव के समय पेड न्यूज चला करते थे। अब तो झारखण्ड में आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए अभी से ही पेड न्यूज का कार्यक्रम चल पड़ा है।

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क्या झारखण्ड इसीलिए बना था कि यहां के वीरों की प्रतिमा इस प्रकार अपमानित की जायेगी?

सवाल हमारा झारखण्डियों से हैं, उन आंदोलनकारियों के वंशजों से हैं, क्या ये झारखण्ड इसलिए बना था कि उनके पूर्वज आनेवाले समय में, वह भी तब, जबकि झारखण्ड अस्तित्व में आ जायेगा तो उनकी प्रतिमा धूल-धूसरित होंगी, उन्हें खंडित किया जायेगा, उनका अपमान किया जायेगा और अगर नहीं तो ये कौन लोग हैं, जो झारखण्ड के अमर नायकों की प्रतिमा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

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राज्य सरकार बताये कि “प्रभात खबर” में छपे इन विज्ञापनों का भुगतान कौन और कहां से करेगा?

दिनांक 20 जुलाई 2019 का रांची से प्रकाशित प्रभात खबर का पृष्ठ संख्या 10 और 11 देखिये। जिस पृष्ठ पर आम तौर पर संपादकीय या विशेष पृष्ठ दिये जाते हैं, उन पृष्ठों पर राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के विज्ञापन वह भी समाचार के रुप में प्रकाशित किये गये हैं, और उपर में नाम दिया गया है, मार्केटिंग इनिशियेटिव का।

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काश, यही उदारता सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले अत्यंत निर्धन बच्चों पर भी स्पीकर और सरकार दिखाती…

कल हजारीबाग के किसी माननीय के स्कूल में पढ़नेवाले बच्चे झारखण्ड विधानसभा के मानसून सत्र का दृश्यावलोकन करने पधारे थे, इन बच्चों का स्वागत बड़े शानदार ढंग से हो रहा था, क्योंकि ये बच्चे साधारण सरकारी स्कूलों के नहीं, बल्कि एक माननीय द्वारा संपोषित स्कूल के थे। बारी-बारी से उक्त माननीय द्वारा विभिन्न दलों के प्रमुख नेताओं को इन बच्चों के पास बुलाया जाता और माननीय उन बच्चों के साथ बड़ी अदब से फोटो खिंचाते। 

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धिक्कार ऐसी सरकार को, जहां हल्की बारिश में पांच साल की बच्ची नाले में बह कर दम तोड़ देती है

पांच साल रघुवर सरकार को होने जा रहे हैं, ये सरकार बहुत बड़े-बड़े काम किये है, आलीशान विधानसभा भवन, न्यायालय भवन एवं प्रेस क्लब बनाये हैं, जमकर इन सब का ढोल पीटा जा रहा हैं, लोग खूब भाजपा के झंडे उड़ा रहे हैं, पर पांच साल की छोटी सी बच्ची फलक आज ट्यूशन से लौट रही थी, उसे क्या पता था कि सरकार ने उसके लिए एक अच्छी सी सड़क जिस पर वो चलकर अपने घर और ट्यूशन के लिए आया जाया करें, उसके लिए कोई प्रबंध ही नहीं की।

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राजधानी की दुर्गति के लिए सीपी सिंह दोषी और बिजली संकट के लिए कौन दोषी है पोद्दारजी?

सीपी सिंह ने राजधानी की दुर्गति कर दी, इसकी जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकते और आपके सीएम रघुवर ने पूरे झारखण्ड की क्या कर दी, ये तो पोद्दार साहेब आपने बताया ही नहीं। भाई मेरा तो सवाल साफ है कि सी पी सिंह के प्रति जो उदारता आपने दिखाई, डॉयलॉग्स बोले। वो उदारता, आपने अपने प्रिय मुख्यमंत्री रघुवर दास पर क्यों नहीं दिखाई?

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सदन से ज्यादा चमक-दमक में ज्यादा रुचि ले रहे हैं सत्तारुढ़ दल के मंत्री व नेता

एक समय था माननीयों की सादगी चर्चा का विषय रहा करती थी, लोग दूर से ही देख कर भांप लेते कि वो व्यक्ति माननीय यानी विधायक या सांसद है, क्योंकि उनका पहनावा-ओढ़ावा ही ऐसा होता, जो औरों से अलग हटकर होता, खादी इनकी विशिष्टता में पंख लगा देती, खादी के वस्त्रों से ही इनका तन ढका हुआ होता और वे बेहद खास लगते, अब तो लगता है कि माननीयों के पहनावे-ओढ़ावे में खादी ही समाप्त हो गया है।

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