धर्म

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…और पूरा हो गया बाबा वैद्यनाथ और वासुकिनाथ धाम की महातीर्थयात्रा

जिस पूर्णिमा में श्रवण नक्षत्र का संयोग होता है, वहीं भारतीय माह श्रावण मास कहलाता है, जो भारतीय महीने का पांचवा और बहुत ही पवित्र महीना माना जाता है। यह महीना भगवान शिव और उनके भक्तों का महीना है, कहां जाता है कि इस पूरे माह में शिव के प्रति भक्ति प्रकट करने से, शिव अपने भक्तों के समस्त कष्ट हर लेते है, शायद यहीं कारण है कि विभिन्न शिवालयों में

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जानिये रक्षाबंधन को, भद्रा को, इस बार पड़ रहा हैं विशेष चूड़ामणि योग

कहा भी जाता है श्रावण शिव जी का माह है और जब श्रावण में सोमवार और पूर्णिमा दोनो साथ हो, जिस चंद्र को शिव जी धारण करते हो, तो उसकी महत्ता कितनी बढ़ जाती है, ये समझने की आवश्यकता है। याद रखे, यह चूड़ामणि योग तभी बनता है, जब सोमवार को चंद्रग्रहण लगता है, और यहां तो वैशिष्ट्यता का अंबार है, इसलिए यह सुखद है, मंगल को देनेवाला है। विद्वान बताते है कि ऐसा संयोग दुर्लभ है, क्योंकि बहुत कम के जीवन में ऐसा दुर्लभ योग चूड़ामणि योग का संयोग देखने को मिलता है।

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ज्यादा इतराइये मत रघुवर का काम है कानून बनाना और फिर उसे अमल में नहीं लाना

झारखण्ड सरकार ने जबरन धर्मांतरण को संज्ञेय अपराध माना है। कैबिनेट ने इसकी मंजूरी भी दे दी है। कैबिनेट के इस मंजूरी के बाद से, झारखण्ड में बहुत लोग इतरा रहे हैं। ये इतरानेवाले वे लोग हैं, जो कई वर्षों से झारखण्ड में चल रहे धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग कर रहे थे। झारखण्ड में धर्मांतरण के ज्यादातर शिकार आदिवासी है, क्योंकि गरीबी के शिकार इन भोलेभाले आदिवासियों को धर्म के मूल स्वरुप का पता हीं नहीं है,

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यकीन मानिये, ये कबीर, रहीम, रसखान सभी को उलटा लटका कर जान ले लेते…

यकीन मानिये, अगर आज रहीम, कबीर, रसखान, जायसी जैसे मुसलमान जिंदा होते, तो इन्हें भी आज की जाहिलों की टीम, काफिर कहकर, इस्लाम खतरे में हैं कहकर, उलटा लटका देती, इनकी जान ले लेती। अच्छा हुआ वे, ये दिन देखने के पहले ही, ये महान शख्स दुनिया से चले गये। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि कल बिहार की राजधानी पटना में घटना घटी।

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मन न रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा…

श्रावण की तीसरी सोमवारी झारखण्ड के मुख्यमंत्री रघुवर दास भगवान भोले के शरण में गये। उनके साथ उनका कुनबा भी था। उन्होंने जमशेदपुर स्थित शिव मंदिर में भगवान भोले को जलार्पण किया और उनसे आशीर्वाद भी प्राप्त किया। हम चाहेंगे कि भगवान भोले उन पर कृपा बरसाये, ताकि वे कनफूंकवें के चक्कर में न पड़े।

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यह तो बाबा वैद्यनाथ और वासुकिनाथ जानेवाले तीर्थयात्रियों के आंखों में धूल झोंकना हुआ…

याद करिये, मुख्यमंत्री रघुवर दास का वो बयान – देव तुल्य श्रद्धालुओं, क्या कोई भी व्यक्ति जिसके जुबां से निकले, देवतुल्य श्रद्धालुओं। वह देवतुल्य श्रद्धालुओं के साथ ऐसा व्यवहार करता है। जरा ध्यान से देखिये, इस आलेख में दिये गये तस्वीरों को, कैसी व्यवस्था है – वैद्यनाथधाम की, बाबा मंदिर की ओर जानेवाले रास्तों की…

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जब बारिश की बूंदे हमें स्पर्श करती है, तुलसी आप याद आते हैं…

जितने सरल शब्दों में गोस्वामी तुलसीदास ने वर्षा वर्णन कर युवाओं को सोचने पर मजबूर किया, उसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। संस्कार और चरित्र की सरल भाषा में सीख गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में खुब की है, हमारे विचार से प्रत्येक भारतीय परिवार को बिना किसी राग-लपेट के अपने बच्चों में संस्कार और चरित्र का बीजारोपण के लिए श्रीरामचरितमानस उनके हाथों में थमा देना चाहिए

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आईएएस नहीं हुआ, भगवान हो गया…

इस पुरी दुनिया में जितने भी बड़े-बड़े घोटाले हुए, वे घोटाले करनेवाले कोई अनपढ़ नहीं थे, सभी अव्वल दर्जें के पढ़ाकु थे। इनलोगों को पढ़ाकु, उन्हीं के परिवार के लोगों जैसे – उनके माता-पिता ने बनाया था, पर पढ़ने का मूल मकसद क्या होता है? वह नहीं बताया, क्योंकि उन्हें भी पता नहीं था कि पढ़ने का मतलब क्या होता है? चूंकि उनके माता-पिता ने पढ़ाया, पढ़ते-पढ़ते नौकरी मिल गयी

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सेवा के नाम पर बने सहायता केन्द्रों में वैद्यनाथधाम जानेवाले तीर्थयात्रियों के लिए कुछ भी नहीं

रघुवर सरकार और उनका पर्यटन विभाग खुब ढोल पीट रहा है कि वह वैद्यनाथधाम और वासुकिनाथ की यात्रा पर जानेवाले तीर्थयात्रियों की सेवा में जी-जान से लगा है। कल की ही बात है पर्यटन विभाग के मंत्री अमर कुमार बाउरी ने सूचना भवन में लंबा-चौड़ा भाषण दिया कि

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देवघर में कष्टमय यात्रा करके तीर्थ करना बंद करिये और मेला घुमते रहिये

क्या राज्य सरकार बतायेगी? झारखण्ड के देवघर में बाबा वैद्यनाथ के रुप में विराजमान भगवान रावणेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग का लोग स्पर्श करने आते है, पूजन करने आते है, उनका दर्शन करने आते है, या मेला घुमने आते है?

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