…और पूरा हो गया बाबा वैद्यनाथ और वासुकिनाथ धाम की महातीर्थयात्रा

जिस पूर्णिमा में श्रवण नक्षत्र का संयोग होता है, वहीं भारतीय माह श्रावण मास कहलाता है, जो भारतीय महीने का पांचवा और बहुत ही पवित्र महीना माना जाता है। यह महीना भगवान शिव और उनके भक्तों का महीना है, कहां जाता है कि इस पूरे माह में शिव के प्रति भक्ति प्रकट करने से, शिव अपने भक्तों के समस्त कष्ट हर लेते है, शायद यहीं कारण है कि विभिन्न शिवालयों में

हर हर बम बम

हर हर महादेव

ओम् नमः शिवाय

बोल बम

का दिव्य मंत्र गुंजायमान रहता है…

अगर श्रावण में सोमवार का दिन है, तो इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। सोमवार होने के कारण, चूंकि सोम अर्थात् चंद्र भगवान को अतिप्रिय है, स्वयं शिव उसे मस्तक पर धारण किये रहते है, इसलिए इसकी महत्ता बढ़ जाती है।

यहां योगी के रुप में विद्यमान है हमारे प्रिय शिव

भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अतिमहत्वपूर्ण, जिसे कामनालिंग के नाम से भी हम जानते है, योगी के रुप में विद्यमान देवघर में स्थित बाबा वैद्यनाथ की महिमा को कौन नहीं जानता। कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना महान शिवभक्त रावण ने की थी, जिससे इसकी महत्ता और बढ़ जाती है…

झारखण्ड के देवघर में स्थित बाबा वैद्यनाथ के दर्शन और स्पर्श के लिए तो ऐसे सालों भर, शिव भक्तों का आना जारी रहता है, पर श्रावण में यहां लाखों की संख्या में नेपाल, भूटान, बांगलादेश, अमरीका, इंग्लैंड आदि देशों तथा भारत के विभिन्न प्रांतों से लोग यहां जुटते है, इनके आने से बिहार के सुलतानगंज से लेकर देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ तक ऐसी लाइन दिखाई पड़ती है, जो कहीं टूटती ही नहीं, केसरिया रंग में रंगे बाबा के भक्त सिर्फ एक ही मंत्र का रट लगाते है – बोल बम और आगे चलते जाते है। इस विहंगम दृश्य को देख ही लोग इसे श्रावणी मेला के नाम से पुकारते है।

जहां देखो, वहीं बम, यत्र-तत्र-सर्वत्र बम, बम ही बम

श्रावणी मेला में आये बाबा के भक्तों की खासियत है कि

यहां अगर किसी को पुकारना है,

अगर किसी से कुछ लेना है,

अगर किसी को सेवा प्रदान करना है,

तो सभी संबंधित व्यक्ति को बम ही कहकर पुकारेंगे, क्योंकि यहां सभी बाबामय है, शिवमय है, सभी को शिव में ही समा जाना है, इसलिए सभी बम है, इसलिए बोलो बम – बोल बम।

उत्तरवाहिनी गंगाजल भगवान शिव को अतिप्रिय हैं

बाबा वैद्यनाथ को उत्तरवाहिनी गंगा का जल अतिप्रिय है, इसलिए लोग बिहार के सुलतानगंज से, चूंकि वहां गंगा उत्तरवाहिनी है, वहां अजगैवीनाथ भी है, लोग जल लेते है और बोलबम बोलते हुए चल पड़ते है 105 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए, उन्हें रास्ते में अनेक छोटे-छोटे गांव, शहर, खेत-पगडंडियां, नदी-नाले, पहाड़, पठार को पार करने पड़ते है और सभी बाधाओं को बस बोल बम के नारे से पार करते हुए शिवभक्त बाबा नगरी पहुंचते है, इस यात्रा में सारे भक्त नियमों का अवश्य पालन करते है, कोई भी शिवभक्त मांसाहार-मद्यपान का प्रयोग नहीं करता, शुद्ध शाकाहार, निर्मल मन और मन में शिव को रखते हुए वह चल रहा होता है, वह यात्रा करने के क्रम में इस बात का भी ध्यान रखता है कि कहीं…

  • उसके कांवर को भैरो (कुत्ता) बम न छूले।
  • वह विश्राम करने के क्रम कांवर को ऊंचे स्थान पर रखता है, ताकि कांवर जमीन पर स्पर्श न कर सकें।
  • वह यात्रा के क्रम में अलग से उत्तरवाहिनी गंगा का अतिरिक्त जल अलग से रखता है, ताकि विश्राम के बाद, फिर से वह गंगा जल स्वयं पर छिड़ककर आगे की यात्रा शुरु कर सकें।
  • वह यात्रा करने के क्रम में जरुरत के कुछ दैनिकोपयोगी सामानों का एक छोटा सा थैला अपने पीठ पर लेकर चल रहा होता है।

और जैसे ही ये बाबा वैद्यनाथ पहुंचते है, उनकी यात्रा पूर्ण होती है, वे पुनः संकल्प लेते है, और बाबा को जलाभिषेक करते है, यहीं नहीं कुछ लोग डायरेक्ट ट्रेन से या सड़क मार्ग से भी बाबा वैद्यनाथ का दर्शन करने आते है…

बिहार और झारखण्ड में तो बाबा के बिना कोई काम ही नहीं संपन्न होता

बिहार और झारखण्ड में तो जिसके घर में भी बच्चे है, वे मुण्डन कराने के लिए यहां जरुर ही आते है, और जिसके घर में नई-नई शादी हुई, वे अपने बेटे-बहुओं या बेटी-दामाद को लेकर गठबंधन कराने के लिए जरुर पहुंचते है, ऐसा माना जाता है कि यहां सती का हृदय गिरा है, यहां शक्ति के साथ शिव भी विराजमान है, दोनों का आशीर्वाद नवदंपति के लिए अमर आशीर्वाद का काम करता है। बाबा वैद्यनाथ का आशीर्वाद लेकर फिर बाबा के भक्त वासुकिनाथ का दर्शन करने के लिए निकल पड़ते है, साथ ही देवघर में स्थित विभिन्न पवित्र मंदिरों का दर्शन करते, नंदन पहाड़, त्रिकुट पर्वत, नौलखा मंदिर आदि दर्शनीय स्थानों का आनन्द लेते हुए अपनी तीर्थयात्रा समाप्त करते है, अपने घर पहुंचने के पूर्व वे बाबा वासुकिनाथ जाने के क्रम में घोरमारा के पास प्रसाद के रुप में मिलनेवाला पेड़ा, मुंकुंददाना, बरगुंडी और चूड़ा वे लेना नहीं भूलते और न भूलते है बाबा और मां पार्वती के गठबंधन का वह अद्भुत लाल पट्टी जो उनके रक्षासूत्र का काम करता है…

और इस प्रकार बाबा वैद्यनाथ और वासुकिनाथ की यात्रा समाप्त हो जाती है…

दूसरी ओर,

सेवा में भी उन्हें बाबा का रुप ही दिखाई देता हैं

वैद्यनाथधाम की यात्रा कर रहे बाबा के भक्तों की सेवा करनेवालों की भी एक बहुत बड़ी तादाद है, जो भारत के कोने-कोने से यहां पहुंचती है, उनका मकसद सिर्फ बाबा के भक्तों की सेवा करना है,

ये बाबा के भक्तों का पांव दबाने,

जख्मी पांवों पर मरहम लगाने,

भोजन की व्यवस्था करने,

कांवरों को सुसज्जित रखने तथा उनके रखने की विशेष व्यवस्था करने

थके हुए शिवभक्तों को गीतों व नाटकों के द्वारा मनोरंजन करने में चौबीसों घंटे लगे रहते है, इनका मानना है कि बाबा के भक्तों की सेवा करना भी बाबा को जलाभिषेक करने के बराबर है, वे सेवाभाव को ही जलाभिषेक अथवा जलार्पण मानकर भर सावन लगे रहते है, धन्य है बाबा और धन्य है बाबा के भक्तों की सेवा… बोल बम, बोल बम, बोल बम…