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स्वामी स्मरणानन्द बने YSS बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के वाइस प्रेसिडेंट, ईश्वरानन्द बने जेनरल सेक्रेटरी

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया एवं सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द गिरि ने YSS बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में दो महत्वपूर्ण बदलाव किये। स्वामी स्मरणानन्द को वाइस प्रेसिडेंट तथा स्वामी ईश्वरानन्द को जेनरल सेक्रेटरी बनाया गया। स्वामी स्मरणानन्द गत् 2002 से वाईएसएस बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सदस्य के रुप में शामिल हुए तथा 2007 में जेनरेल सेक्रेटरी भी बनाये गये थे,

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शरद संगम में योगदा के संन्यासियों का संदेश, क्रिया योग अपनाइये, स्वयं को सीधे ईश्वर से जोड़िये

शरद संगम में जो स्वर्ग का अनुभव हो रहा है, या जो स्वर्ग का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं, इस स्वर्ग को आप अपने घर में भी महसूस करें और इस ऐहसास को अपने घर तक ले जाये, क्योंकि ये आनन्द, ये ईश्वरानुभूति ही, मनुष्य को परम आनन्द की ओर ले जाती हैं। ये बातें आज शरद संगम के अंतिम दिन समापन समारोह में योगदा सत्संग आश्रम के स्वामी स्मरणानन्द ने कही।

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भगवान श्रीराम की नजरों में आपकी छठिमइया व भगवान भास्कर के प्रति भक्ति कितने नंबर पर हैं?

इन दिनों अखबारों में छठ पर बहुत सारे आर्टिकल दिखाई पड़ रहे हैं, ख्याति प्राप्त साहित्यकारों, पत्रकारों, भाजपा से जुड़े राजनीतिक दलों के नेताओं व राज्यपालों तक के आर्टिकल पढ़ने को मिल रहे है, कई चैनलों/अखबारों/पोर्टलों में तो अब ये भी पढ़ने को मिल रहे है कि छठ कैसे करें? छठ कैसे किया जाता है? छठ करने में किन-किन चीजों की आवश्यकता होती है? छठ में क्या-क्या वर्जित है?

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वास्तविक राजा वहीं जो अपने हृदय के साम्राज्य से कौरव रुपी बुराइयों को निकाल फेंके – ईश्वरानन्द

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, वास्तविक राजा वहीं, जो अपने हृदय के साम्राज्य से सारे कौरव रुपी बुराइयों को निकालकर पांडव रुपी सत्य के सदृश अपने हृदय में ईश्वर का साम्राज्य स्थापित कर लें। उक्त उद्गार आज योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के निदेशक मंडल के सदस्य एवं योगदा सत्संग मठ रांची के प्रशासक स्वामी ईश्वरानन्द गिरि ने भक्ति योग विषयक आध्यात्मिक व्याख्यान के क्रम में प्रकट किये।

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जिसने गीता का रसपान किया, उसने जीवन के कुरुक्षेत्र में सफलता पाई – स्वामी ईश्वरानन्द गिरि

सारा वेद गाय है, और इन गायों से दुध दूहनेवाले श्रीकृष्ण है, इस दुग्ध का पान करनेवाले गांडीवधारी अर्जुन है और जो दूध है वह स्वयं गीता है, जो इस गीतारुपी दुध का पान करता है, वह जीवन के कुरुक्षेत्र में सर्वदा विजयी रहता है, इसे समझने की जरुरत है। यह उद्गार आज रांची के योगदा सत्संग मठ में आयोजित आध्यात्मिक व्याख्यान के क्रम में योगदा सत्संग मठ के प्रशासक स्वामी ईश्वरानन्द गिरि ने व्यक्त किये।

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अखबार पढ़कर अगर आप हरितालिका तीज मना रहे हैं तो सावधान हो जाइये…

अगर आपने रांची से प्रकाशित हिन्दी दैनिक प्रभात खबर पढ़कर हरितालिका तीज मनाने का निश्चय किया हैं तो जितना जल्द हो सके, इससे आप उबर जाये, क्योंकि इसने जो आपको जानकारी दी हैं, वह पूर्णतया गलत है, धर्मविरुद्ध है। इस अखबार में, जिन्होंने जानकारी दी है, या जिनके द्वारा हरितालिका तीज के बारे में बताया गया हैं, उन्हें दरअसल हरितालिका तीज के बारे में जानकारी ही नहीं हैं।

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एकमात्र श्रीकृष्ण को जानिये और स्वयं को ब्रह्मानन्द में समाहित कर लीजिये

जन्माष्टमी अर्थात् श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का महान पर्व, श्रीकृष्ण को हर बार, बार-बार, प्रतिवर्ष नये ढंग से समझने का पर्व। जो श्रीकृष्ण को समझ लिया, जान लिया, पा लिया, उसकी जय हो गई, उसका जीना सफल हो गया और जो नहीं जाना, वो काल की परिधि में पीसता चला गया। भारतीय वांग्मय कहता है –  यतो कृष्णः ततो धर्मः यतो धर्मः ततो जयः अर्थात् जहां श्रीकृष्ण हैं वहीं धर्म हैं और जहां धर्म है, जय उसी का होना हैं।

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ईश्वर से क्या मांगे, कैसे मांगे, क्या ईश्वर से जो मांगे, वह हमें देता है?

मेरे प्यारे बच्चों, आज तुम्हें मैं प्रार्थना के बारे में कुछ बताना चाहता हूं, जैसे – प्रार्थना कब करनी चाहिए? क्यों करनी चाहिए? किसकी करनी चाहिए? इसके क्या फायदे हैं? प्रार्थना कब ईश्वर सुनते हैं? किस हालत में सुनते हैं? उसका क्या प्रभाव पड़ता है? ये जानना तुम्हें बहुत जरुरी हैं, क्योंकि तुम भारत में रहते हो, क्योंकि भारत भोगने का नहीं बल्कि त्यागने का नाम हैं,

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दिल्ली आइये, इंडिया गेट-कुतुबमीनार देखिये, पर सपरिवार अक्षरधाम जाना न भूलें

जब मैं बहुत छोटा था। फिल्म “दुश्मन” के गीत हमारे कानों में शहद घोलते। जब भी फिल्म “दुश्मन” का रिकार्ड बजता और ये गाना “देखो-देखो-देखो, बाइस्कोप देखो, दिल्ली का कुतुबमीनार देखो” बजता, हम रोमांचित हो उठते, यानी कभी दिल्ली जाना है तो कुतुबमीनार देखना जरुर हैं, पर जैसे-जैसे उम्र बीतता गया, जीवन की सच्चाई हमारे सामने दिखाई देने लगी,

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हरिद्वार में हर-हर गंगे, ऋषिकेश में हर-हर गंगे, मुक्तिदायिनी हर-हर गंगे

बात 1980 की है। जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ता था, तब अपने मां-बाबू जी, अपने छोटे भाई और बड़ी मां के साथ बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान हरिद्वार और ऋषिकेश की भी यात्रा की थी, सौभाग्य से उस वक्त जब मैं छोटा था, तब मैं मां-बाबुजी के साथ हरिद्वार-ऋषिकेश की यात्रा की थी और आज जब 52 साल का हो गया हूं तो मेरे बेटों ने हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा करा दी।

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