धर्म

एकमात्र श्रीकृष्ण को जानिये और स्वयं को ब्रह्मानन्द में समाहित कर लीजिये

जन्माष्टमी अर्थात् श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का महान पर्व, श्रीकृष्ण को हर बार, बार-बार, प्रतिवर्ष नये ढंग से समझने का पर्व। जो श्रीकृष्ण को समझ लिया, जान लिया, पा लिया, उसकी जय हो गई, उसका जीना सफल हो गया और जो नहीं जाना, वो काल की परिधि में पीसता चला गया। भारतीय वांग्मय कहता है –  यतो कृष्णः ततो धर्मः यतो धर्मः ततो जयः अर्थात् जहां श्रीकृष्ण हैं वहीं धर्म हैं और जहां धर्म है, जय उसी का होना हैं।

इसको ऐसे समझिये। कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध ठन गई हैं। युद्ध को कोई टाल नहीं सकता। काल ने समय सुनिश्चित कर रखा हैं। कौरवों और पांडवों की ओर से युद्ध जीतने के लिए अपनी-अपनी ओर से जोर-शोर से तैयारी चल रही हैं। युद्ध को ध्यान में रखकर लेश मात्र भी किसी तैयारी में कमी न रह जाये, दुर्योधन श्रीकृष्ण के पास पहुंचते हैं, श्रीकृष्ण सोये हैं, वे जगाना उचित नहीं समझते, वे श्रीकृष्ण के सिरहाने बैठ जाते हैं, प्रतीक्षा हो रही हैं, श्रीकृष्ण जब जगेंगे, तब वे कुछ मांगेगे।

इसी बीच थोड़ी देर में पांडवों की ओर से अर्जुन भी पहुंच रहे हैं, भगवान श्रीकृष्ण को सोया देख, वे उनके पांवों के पास बैठ जाते हैं, प्रतीक्षा हो रही हैं, दुर्योधन और अर्जुन के मन में कुछ-कुछ चल रहा हैं, इसी बीच श्रीकृष्ण उठते हैं, उनकी नजर अर्जुन पर पड़ती हैं, वे अर्जुन से पूछते हैं, कैसे हो अर्जुन, कैसै यहां आना हुआ? दुर्योधन को लगता है कि कहीं ऐसा न कि अर्जुन ही श्रीकृष्ण से पहले कुछ मांग लें और वो मुंह ताकता रह जाये। दुर्योधन, श्रीकृष्ण से कहते हैं कि प्रभु सर्वप्रथम, मैं आपके पास आया हूं, पहला अधिकार तो मेरा आप पर बनता हैं।

भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि हो सकता हैं कि पहले तुम आये हो, पर हमारी पहली नजर तो अर्जुन पर पड़ी हैं, फिर भी अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच संवादोपरांत दुर्योधन को ही पहले मौका मिलता है, कि वो श्रीकृष्ण से कुछ मांगे, चूंकि दुर्योधन को यह मालूम हो गया था कि श्रीकृष्ण ने कहा है कि व युद्ध के समय अस्त्र-शस्त्र नहीं उठायेंगे, ऐसे में श्रीकृष्ण को मांगने से अच्छा है कि श्रीकृष्ण की अजेय नारायणी सेना ही मांग ली जाये।

दुर्योधन यहीं प्रस्ताव श्रीकृष्ण के समक्ष रखते हैं, श्रीकृष्ण को अपनी अजेय नारायणी सेना देने में थोड़ी भी हिचिकचाहट महसूस नहीं होती, और अब अर्जुन की बारी हैं, वह श्रीकृष्ण से श्रीकृष्ण को ही मांग लेता हैं और उसके बाद महाभारत के युद्ध में क्या हुआ? वह सब को पता है।

एक और प्रसंग हैं – श्रीकृष्ण और सुदामा की, जिनकी मित्रता के बारे में अब्दुर्रहीम खानखाना ने कहा था – ‘जे गरीब पर हित करे, ते रहीम बड़ लोग, कहा सुदामा बापूरो कृष्ण मिताई जोग’, ध्यान दीजियेगा, जब तक श्रीकृष्ण सुदामा से दूर रहे, सुदामा दरिद्र रहे और जैसे ही श्रीकृष्ण से मिलते हैं, श्रीकृष्ण की कृपा होती हैं और वे दारिद्रयता से मुक्त हो जाते हैं।

श्रीकृष्ण ने विश्व को क्या नहीं दिया, उनकी गीता आज भी प्रासंगिक, अकल्पनीय, अवर्णनीय एवं अतुलनीय हैं। उनका दिया कर्मयोग-ज्ञानयोग-भक्तियोग का उदाहरण विरले ही मिलता हैं, तभी तो आज भी लोग कहते है कि जो श्रीकृष्ण को पा लिया, वो सब कुछ पा लिया। तभी तो हर मां, अपने बच्चे में श्रीकृष्ण को देखना चाहती हैं, ताकि अपने बच्चे के मुख में अखिल ब्रह्माण्ड का दर्शन कर सकें, जैसे श्रीकृष्ण ने अपनी यशोदा मैया को खेल-खेल में अपने मुख में अखिल ब्रह्मांड के दर्शन करा दिये।

आज भी देश में कोई व्यक्ति मोक्ष पाना चाहता हैं तो उसके मन में यही भाव रहता है अथवा शरीर को परित्याग कर, विश्राम चाहता हैं, परम आनन्द की अनुभूति प्राप्त करना चाहता है तो दिव्य आत्मा यहीं कहती हैं…

देहान्त काले तुम सामने हो,

वंशी बजाते मन को लूभाते,

गाते यहीं मैं, तन नाथ त्यागूं

गोविन्द दामोदर माधवेति,

हे कृष्ण, हे यादव, हे सखेति…

One thought on “एकमात्र श्रीकृष्ण को जानिये और स्वयं को ब्रह्मानन्द में समाहित कर लीजिये

  • राजेश कृष्ण

    वंदे कृष्णम जगदगुरूम,
    ।।हरे कृष्णा।।

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