अपने शिष्य पर कृपा-वृष्टि करने के लिए एक सद्गुरु को शरीर में बने रहने की कोई आवश्यकता नहीं
जिस तरह पश्चिम में “फादर्स डे” और “मदर्स डे” मनाने का रिवाज है (अब तो यह भारत में भी प्रचलन में आ रहा है)। उसी तरह भारत में “गुरुज डे” मनाने की बहुत प्राचीन प्रथा है, लेकिन इसे हम “गुरु पूर्णिमा” के नाम से मनाते हैं, जो हर वर्ष “आषाढ़ पूर्णिमा” के दिन आता है। यह पर्व गुरु को समर्पित होता है और इस दिन पूरे भारत में शिष्य अपने गुरु की पूजा करते है और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर निष्ठा के साथ चलते रहने का पुनः संकल्प लेते हैं।
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