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अपने शिष्य पर कृपा-वृष्टि करने के लिए एक सद्गुरु को शरीर में बने रहने की कोई आवश्यकता नहीं

जिस तरह पश्चिम में “फादर्स डे” और “मदर्स डे” मनाने का रिवाज है (अब तो यह भारत में भी प्रचलन में आ रहा है)। उसी तरह भारत में “गुरुज डे” मनाने की बहुत प्राचीन प्रथा है, लेकिन इसे हम “गुरु पूर्णिमा” के नाम से मनाते हैं, जो हर वर्ष “आषाढ़ पूर्णिमा” के दिन आता है। यह पर्व गुरु को समर्पित होता है और इस दिन पूरे भारत में शिष्य अपने गुरु की पूजा करते है और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर निष्ठा के साथ चलते रहने का पुनः संकल्प लेते हैं।

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बस कुछ दिन ही शेष हैं, विलम्ब न करें, सपरिवार जाकर रांची के जगन्नाथपुर में रथयात्रा का आनन्द लें

झारखण्डे जगन्नाथः। ऐसे तो ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर से चालीस किलोमीटर अवस्थित पुरी में निकलनेवाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है, पर झारखण्ड की राजधानी रांची के जगन्नाथपुर में भी निकलनेवाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भी कम प्रसिद्ध नहीं हैं। इस दिन पूरा रांची भगवान जगन्नाथ के दिव्य रथ को स्पर्श करने, उसे खींचने के लिए जगन्नाथपुर में उमड़ पड़ता है।

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योग आत्मा का विज्ञान है, यह किसी खास धर्म की विरासत नहीं, इस पर सभी का अधिकार – ईश्वरानन्द

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में आज योगदा सत्संग मठ में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बड़े ही धूम-धाम से मनाया गया। इस आयोजन में सम्मिलित योग साधकों को संबोधित करते हुए योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव स्वामी ईश्वरानन्द गिरि ने कहा कि चार साल पूर्व भारत सरकार के अद्भुत प्रयास, प्रभु के आशीर्वाद तथा संपूर्ण विश्व के देशों में योग के प्रति जगी भूख ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का संकल्प लिया

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16 जून को योगदा सत्संग मठ में क्रिया योग व ध्यान को लेकर स्वामी ईश्वरानन्द गिरि का विशेष व्याख्यान

अगर आप सही मायनों में योग को जानना चाहते हैं, योग में आपकी दिलचस्पी हैं, अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस का सही-सही लाभ उठाना चाहते हैं, 21 जून के दिन को आप यादगार बना लेना चाहते हैं, पूरे विश्व में भारत का नाम गर्व से उपर उठाना चाहते हैं, तो आपके लिए योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया ने एक बहुत बड़ा मौका दिया हैं, योग को जानने का, योग को समझने का।

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जो आला-दर्जे के मूर्ख होते हैं, वे अक्षय तृतीया के दिन अपने श्रम-संचित धन को व्यापारियों पर लूटा देते हैं

जो आला-दर्जे के मूर्ख होते हैं, वे अपने श्रम द्वारा संचित धन को अक्षय तृतीया के दिन व्यापारियों पर लूटा देते हैं और जो विद्वान होते हैं, वे इस दिन धर्म रुपी धन का संचय करते हैं, जिसका कभी क्षय नहीं होता और इसी कारण वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते है। आज का दिन भगवान में स्नेह लगाने, उनका विशेष ध्यान करने का दिन है, ताकि आप और हम ईश्वर के पास मौजूद अक्षयपात्र से उस अक्षय आशीर्वाद को ग्रहण करें।

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प्रयागराज का कुम्भ मेला यानी भारत को देखने का एक अलग नजरिया, एक संन्यासी के शब्दों में, पार्ट-2

संन्यासी बोले जा रहे थे, सभी के साथ मैं भी बड़े भाव से सुनता जा रहा था, उनका बोलना, बोलने की तारतम्यता, सभी श्रोताओं को बांधे हुए था, सभी को बड़ा आनन्द आ रहा था, ऐसे भी कुम्भ मेला है ही ऐसा, कि जब उसके बारे में कोई कुछ कहना चाहे, तो लोग सुनना पसन्द ही करते हैं, और जब मंजा हुआ संन्यासी इस पर कुछ कहें तो उसका आनन्द कुछ और ही बढ़ जाता है।

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प्रयाग राज का कुम्भ मेला यानी भारत को देखने का एक अलग नजरिया, एक संन्यासी के शब्दों में

दो महीने पहले ही इलाहाबाद यानी प्रयागराज में कुम्भ मेला लगा था, बड़ी संख्या में देश-विदेश के श्रद्धालू संगम में डूबकी लगाने, पाप धोने, आध्यात्मिकता की सुखद अनुभूति प्राप्त करने के लिए पहुंच रहे थे। ऐसे भी कहा जाता है कि भारत के कण-कण में आध्यात्मिकता की पुट छुपी है, आप उस आध्यात्मिकता को कैसे ग्रहण करते हैं, ये आपके उपर हैं, क्योंकि इसे आप जिस प्रकार से ग्रहण करेंगे, आपको वैसा ही प्राप्त होगा।

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जयपुर में नवसंवत्सर का होगा जोरदार स्वागत, आठ दिशाओं में जायेगें श्वेत अश्व, नवसंवत्सर का करेगें प्रचार-प्रसार

भारतीय संस्कृति के पावन उत्सव चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भारतीय नववर्ष नवसंवत्सर 2076 प्रारम्भ हो रहा है। इसके स्वागत के लिए पांच दिवसीय नवसंवत्सर उत्सव बड़े ही धूमधाम से जयपुर में आयोजित किये जायेंगे। संस्कृति युवा संस्था के अध्यक्ष एवं नवसंवत्सर उत्सव समारोह समिति के संरक्षक सुरेश मिश्रा ने बताया कि 2 अप्रैल से 6 अप्रैल तक पांच दिवसीय विभिन्न कार्यक्रम नवसंवत्सर उत्सव के रूप में आयोजित किये जायेगें।

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परमहंस योगानन्द लिखित पुस्तक ‘एक योगी की आत्मकथा’ ने मेरी जिंदगी ही बदल डाली – रजनीकांत

दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध सुपर स्टार और हिन्दी फिल्मों में भी अपनी गहरी पकड़ रखनेवाले सुप्रसिद्ध अभिनेता रजनीकांत का कहना है कि उनके जीवन में एक पुस्तक ने ऐसी उधम मचाई कि उनके जीवन को ही पूरी तरह से पलट कर रख दिया, वो पुस्तक थी “परमहंस योगानन्द द्वारा लिखित पुस्तक – एक योगी की आत्मकथा”। उनका कहना है कि 1978 में इन्होंने पहली बार इस पुस्तक को खरीदा और करीब 25 वर्षों तक वे इस पुस्तक के सम्पर्क में रहे,

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जिस दिन सरस्वती को आप समझ लेंगे, आपकी जिंदगी संवर जायेगी, जिन्दगी आनन्द से भर जायेगा

आज वसंत पंचमी है। सरस्वती के प्राकट्योत्सव का दिन। हर्ष व उल्लास का दिन। जीवन में रंग भरने का दिन। प्रकृति के अंदर छूपे प्रेम व कलाओं को नजदीक से जानने का दिन। स्वयं को आनन्द में डूबो देने का दिन। आप आनन्द में कब होते हैं, जब आप आनन्द को जान लेते हैं, जब तक आनन्द को जानेंगे नहीं, आप आनन्द में गोता नहीं लगा सकते और ये आनन्द कौन देगा?, किसके माध्यम से हम तक पहुंचेगा?,

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