धर्म

जो आला-दर्जे के मूर्ख होते हैं, वे अक्षय तृतीया के दिन अपने श्रम-संचित धन को व्यापारियों पर लूटा देते हैं

जो आला-दर्जे के मूर्ख होते हैं, वे अपने श्रम द्वारा संचित धन को अक्षय तृतीया के दिन व्यापारियों पर लूटा देते हैं और जो विद्वान होते हैं, वे इस दिन धर्म रुपी धन का संचय करते हैं, जिसका कभी क्षय नहीं होता और इसी कारण वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते है। आज का दिन भगवान में स्नेह लगाने, उनका विशेष ध्यान करने का दिन है, ताकि आप और हम ईश्वर के पास मौजूद अक्षयपात्र से उस अक्षय आशीर्वाद को ग्रहण करें।

जिसका नाश कदापि नहीं हो सकता, और रही बात भौतिक वस्तुओं की तो वो क्षय होने के लिए ही बने हैं, वो तो आप जिस दिन से उसका क्रय करते हैं, उसी दिन से वह क्षय होने लगता है क्योंकि वो नाशवान है, पर ईश्वर का आशीर्वाद कभी क्षय नहीं होता, उसका विकल्प कुछ भी नहीं हो सकता, इसलिए अक्षय तृतीया के महत्व को समझे।

इधर कुछ वर्षों से व्यापारियों और अखबारों तथा अन्य चैनलों की मिलीभगत ने हमारी संस्कृति को मिटाने के लिए जैसे लगता है कि एक संकल्प ले लिया हैं, ये करते क्या हैं कि ये अक्षय तृतीया को भौतिकवादी-विलासिता संबंधी वस्तुओं के क्रय से जोड़ देते हैं, जिसका कोई इसमें महत्व नहीं होता हैं, आश्चर्य इस बात की है कि इनके पास इन्हें विज्ञापन देनेवाले तथा उन झूठे विज्ञापनों से अपना कारोबार चलानेवाले पोंगा पंडितों की एक टोली होती है, जो इन व्यापारियों तथा अखबारों के प्रपंचों को हवा देते हैं, जिन प्रपंचों से इन सब का तो भला हो जाता हैं, पर आम व्यक्ति व सामान्य परिवार का घर का सुख-चैन लूट जाता है।

एक सामान्य घर की महिला अथवा पुरुष जिनको धर्म की जानकारी नहीं है, वे इनकी बातों में आ जाते हैं, तथा अपने घर के प्रमुखों पर दबाव बनाना शुरु करते हैं कि उन्हें अक्षय तृतीया को कुछ न कुछ लेना है, अब सवाल उठता है कि अगर आपको कुछ लेना है तो वो आप किसी भी दिन ले सकते हैं, आप अपनी जरुरतों के मुताबिक कभी भी क्रय कर सकते है, पर अक्षय तृतीया के दिन ही हो, तथा अपने घर का श्रम-संचित धन व्यापारियों पर लूटा देना है, तो इस पागलपन की तो बात ही अलग है।

रमा और कविता आपस में सहोदर बहन है। रमा और कविता दोनों पढ़े-लिखे हैं। रमा एमबीए है तो कविता एम कॉम की है, पर दोनों की सोच अलग-अलग। रमा को विलासिता संबंधी आवश्यकताओं से अधिक प्रेम है, जबकि कविता इन सब चीजों से दूर रहती है, कविता का मानना है कि हमारे पास बहुत सारी चीजें है, जो उपयोगी है, पर सारी उपयोगी चीजें हमारे लिए भी उपयोगी हो, ऐसा है नहीं, इसलिए वह अपने जरुरत के मुताबिक चीजें खरीदती है, पर रमा को लगता है कि दुनिया की सारी चीजें जो उपयोगी है, वो उसके पास होना चाहिए, क्योंकि ईश्वर ने वह सारी चीजें उसके उपभोग के लिए बनाई है।

और शायद रमा और कविता के दुखी और सुखी होने का यही मूल कारण है। रमा गाहे-बगाहे अपने पति पर दबाव डालती है कि उसे ये चाहिए, वो चाहिए, आज अक्षय तृतीया है, तो सोने के गहने बहुत ही जरुरी है, पर कविता को इससे कोई मतलब नहीं, वह अखबारों व चैनलों में चलनेवाले प्रपंचों को बहुत अच्छी तरह जानती है, इसलिए उसने अपने बच्चों में भी वह संस्कार डाल दिये है, जिससे उनका जीवन सुखी हो।

वह अपने बच्चों को कहती है कि हमेशा तीन प्रश्न याद रखो,  कौन काम करना है? कौन काम कब करना है? कौन काम कैसे करना है? जब ये तीन प्रश्न हमेशा याद रखोगे तो तुम कभी मूर्ख नहीं बनोगे और न कोई मूर्ख बना सकता है, हमेशा ध्यान रखो, प्रत्येक दिन ईश्वर का होता है, और अगर तुम ईश्वर के प्रति श्रद्धा व विश्वास रखते हो, तो वह ईश्वर तुम्हें हर प्रकार से आनन्द देने को तैयार रहता है, ऐसे में अक्षय तृतीया जैसे त्यौहारों पर व्यापारियों के दुकानों में जाकर सोना खरीदना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं।

कविता तो साफ कहती है कि अगर सोना खरीदने से सुख होता है तो फिर सोना का कारोबार करनेवाले लोग सुखी क्यों नहीं होते? कविता के इस सवाल का जवाब रमा के पास नहीं होता और न ही उनके आस-पड़ोस वालों के पास होता है, इसलिए कविता आज भी सामान्य दिनों की तरह काम कर रही है, उस के मन-मस्तिष्क पर अखबारों के भरमानेवाले विज्ञापनों का कोई असर नहीं, और जबकि उनके आस-पड़ोस में तैयारियां चल रही है, कि क्या लेना है, कविता इन सभी को देखकर साफ कहती है कि किसी ने ठीक ही कहा है कि “दुनिया में अगर मूर्ख लोग बड़े पैमाने पर जिन्दा हैं तो धूर्त लोग कभी भूखे नहीं मर सकते, क्योंकि उनका वजूद ही मूर्खों पर टिका होता है।”