धर्म

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अभिनन्दन, भगवान भास्कर एवं छठि मइया का…

माथे पर पीले कपड़ों से बांधे दौरा-सुप ले जाते विभिन्न जलाशयों की ओर बढ़ते लोगों, पियरी पहने और हाथ में लोटा लिए छठव्रतियों का समूह और ठीक उसके पीछे बड़ी संख्या में छठ की पारंपरिक गीतों को गाती महिलाओं का समूह बरबस आपको अपनी ओर खींच लेती है। आज सूर्य सप्तमी है, आज उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य समर्पित कर, छठव्रतियों ने व्रत तोड़ दिया है और सभी अपने- अपने घरों में जाकर भगवान भास्कर और छठि मइया को …

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आओ छठ मनाएं पर कैसे?

आओ छठ मनाएं, पर कैसै? क्या अखबार पढ़कर या चैनल देखकर या बेसिर-पैर के छठगीतों को सुनकर, या नेताओं द्वारा स्वयं के पापों को धोने के लिए चलाये जा रहे छठसामग्रियों का दान लेकर, फैसला आपको करना है… ऐसा नहीं कि आप पहली बार छठ कर रहे है, आपके पहले भी लोगों ने छठ किया है, आनेवाले समय में भी लोग छठ करेंगे, पर जब भाव न होकर, छठव्रत बाह्याडंबर और पाखंड का शरण ले लें तो फिर वह छठ, छठ नहीं रह जाता,

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भीड़ त दीखी पर छठि मइया ना दिखाई दीहे…

अल कर, बल कर, छठ पर आर्टिकल, लिख चल… अल कर, बल कर, छठ पर, अलबल बोल चल… अल कर, बल कर, छठ पर रिपोर्टिंग कर चल… टीवी पर अनाप-शनाप बक चल…एक बार फिर, पिछले कई दिनों से हमारे आंख-कान दोनों पक गये… अखबारों और टीवी चैनलों तथा गुगुल पुराणों ने छठ महापर्व की धज्जियां उड़ानी शुरु कर दी है… जितने अखबार, उतनी बुद्धि, जितने टीवी उतनी बक-बक और सभी ने अपने ज्ञान से छठ की ऐसी-तैसी करनी शुरु कर दी

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इन्द्र के कोपभाजन बने रांचीवासी, दीपावली में न दीये जले और न ही फूटे पटाखे

लोगों ने सोचा था, खूब दीये जलायेंगे, पटाखे भी खुब फोड़ेंगे, पर इन्द्र ने रांचीवासियों के सारे सपनों पर पानी बिखेर दिया। रह-रहकर पूरे दिन हो रही बारिश और रात में भी बारिश की फुहारों ने दीपावली में जमकर खलल डाला। किसी घर में बाहर में दीये जलते नहीं दीखे, दीयों का काम लोगों ने विद्युतीय लघु बल्बों से लिया, पर दीया तो दीया है, एक दीये का जलना, लाखों विद्युतीय लघु बल्बों पर भारी पड़ता है।

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जय हो धनतेरस को धरतेरस बनानेवाले महान आत्माओं की…

धनत्रयोदशी सुना था, धनतेरस सुना था, अब लीजिये ‘प्रभात खबर’ ने एक नया शब्द खोज निकाला है – ‘धरतेरस’ यानी धरते रहिये तेरस को, मिल जाये या पकड़ा जाये तो हमें भी बताइयेगा… कैसे धरा और कैसे पकड़ा और कैसे इसका उपयोग किया? जय हो धनतेरस को धरतेरस बनानेवाले महान आत्माओं की…जब हम धन को ही प्रमुख मान लेते है, और इसी में भविष्य ढूंढने लगते हैं तो धनतेरस, धरतेरस बन जाता है।

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पानी से लबालब हैं छठ तालाब, छठव्रतियों को अनहोनी से बचाने के लिए विशेष प्रयास की जरुरत

रांची के सारे तालाब लबालब भरे हैं। छठ आने में मात्र 20 दिन शेष है। इस बार बारिश के सभी नक्षत्रों ने अपनी ऐसी उपस्थिति दर्ज कराई हैं कि रांची के सभी क्षेत्रों में भूगर्भ जलस्तर में अच्छी खासी वृद्धि हुई हैं। सही मायनों में, अगर रांची की जनता, इस वर्षा जल का संरक्षण बेहतर ढंग से की होती तो स्थिति कुछ और बेहतर होती। इधर दुर्गा पूजा भी खत्म हो गया।

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राम को छोड़ो, तुम अगर रावण भी बन जाते तो…

अरे राम को छोड़ो, तुम अगर रावण भी बन जाते, तो देश का कल्याण हो जाता, पर अफसोस की तुम रावण भी नहीं बन सकें। तुम हर साल रावण को जलाते हो, पर रावण को जलाने के पूर्व, यह भी नहीं सोचते कि रावण कौन था?  क्या था?  अगर ये जानने की कोशिश करते अथवा चिन्तन करते, तो तुम्हें पता चलता कि तुम रावण के आस-पास भी नहीं भटकते, तुम तो रावण से भी बहुत नीचे गिरे गये, भला तुम्हें रावण दहन करने की इजाजत किसने दे दी?

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2017 का दुर्गापूजा भारी बारिश, बिजली की कटौती और अव्यवस्थाओं के लिए लोग याद रखेंगे

जो भाग्यशाली थे, वे प्रतिदिन सुबह से लेकर दोपहर में ही विभिन्न पंडालों में जाकर अपनी उपस्थििति दर्ज कराई। मां का आशीर्वाद प्राप्त किया, तथा विभिन्न पूजा समितियों द्वारा बनाये गये पंडालों का अवलोकन किया। इस बार पुलिस व्यवस्था करीब हर जगह ठीक-ठाक रहीं, कहीं से भी कोई अलोकप्रिय समाचार प्राप्त नहीं हुआ। छोटे-छोटे दुकानदार, जो इस बार अपनी दुकान विभिन्न मार्गों पर लगाये थे, उनकी कमाई पर बारिश ने पानी फेर दिया।

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अजब-गजब, महानवमी को महाअष्टमी बना डाला सीएम रघुवर दास और उनके भक्तों ने…

झारखण्ड सरकार आज नवमी के दिन को नवमी तिथि मानने को तैयार नहीं, वह अपने विज्ञापन के माध्यम से बता रही है कि आज महाअष्टमी है, महाअष्टमी का ध्यान करिये। उसका प्रमाण है सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा निकाला गया वह विज्ञापन, जिस विज्ञापन में सूचना एवं जनसम्पर्क के विद्वानों ने आज महाअष्टमी का श्लोक दे दिया गया है। आम तौर पर ये श्लोक महाअष्टमी के लिए है, जिससे महागौरी का ध्यान किया जाता है। जिसका मंत्र है –

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दुर्गा पंडाल में बिना नेता जी के चरण आये, भला महाशक्ति की पूजा कैसे प्रारंभ होगी?

आश्चर्य की बात है कि जिस महाशक्ति से सारा जगत व्याप्त है, जिनके नाम पर इतना तामझाम इनलोगों ने खड़ा किया। उसी महाशक्ति को स्वयं पूजा समितियां भी कुछ नहीं समझती। उसी महाशक्ति की महाप्रतिमाओं के सामने ये नेताओं को लाकर खड़ा कर देते हैं, और उनसे पंडाल का उद्घाटन करवाते हैं, नेताओं के इस कृत्य पर तालियां बजाते हैं, भला महाशक्ति के दरबार का उद्घाटन नेता करेंगे, ये सोचने की बात है।

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