धर्म

इन्द्र के कोपभाजन बने रांचीवासी, दीपावली में न दीये जले और न ही फूटे पटाखे

लोगों ने सोचा था, खूब दीये जलायेंगे, पटाखे भी खुब फोड़ेंगे, पर इन्द्र ने रांचीवासियों के सारे सपनों पर पानी बिखेर दिया। रह-रहकर पूरे दिन हो रही बारिश और रात में भी बारिश की फुहारों ने दीपावली में जमकर खलल डाला। किसी घर में बाहर में दीये जलते नहीं दीखे, दीयों का काम लोगों ने विद्युतीय लघु बल्बों से लिया, पर दीया तो दीया है, एक दीये का जलना, लाखों विद्युतीय लघु बल्बों पर भारी पड़ता है।

घर में लक्ष्मी और गणेश की होनेवाली पूजा पर इसका कोई असर नहीं था, जमकर लोगों ने लक्ष्मी और गणेश का पूजा अर्चना की तथा उनसे अपने और सभी के लिए खुशियां प्राप्त करने का आशीर्वाद ग्रहण किया। बच्चों और उनके माता-पिता ने पटाखे छोड़ने के लिए कई बार प्रयास किया, पर जैसे इन्द्र ने लगता है कि ऐलान ही कर दिया था कि वे इस बार किसी को भी पटाखे छोड़ने नहीं देंगे। हुआ भी ऐसा ही, एक दो जगहों से पटाखों के धमाके की आवाज सुनाई पड़ी, बाकी पटाखे ऐसे ही धरे के धरे रह गये।

घर की सजावट और गणेश-लक्ष्मी की मिट्टी की प्रतिमा बेचनेवालों को तो जैसे लगा कि काठ ही मार दिया है। रह-रहकर हो रही बारिश से उन्हें मिट्टी की प्रतिमा प्रभावित न हो जाय, इसका भय उन्हें सता रहा था। यहीं हाल पटाखों की दुकान सजाएं लोगों का था। बाजार में भीड़ पूर्व की तरह थी पर बारिश जो न करा दें। दूसरी ओर दीपावली के सुअवसर पर मंत्रियों, नेताओं व वरीय प्रशासनिक अधिकारियों के यहां उनके शुभचिन्तकों द्वारा भेजे जानेवाले मिठाइयों और उपहारों को पहुंचाने में भी भारी दिक्कतें आई। कई जगहों पर पैकटों और उनके उपहारों को ठीक तरह से पहुंचाने में लोगों को लेने के देने पड़ गये।

हालांकि इस दीपावली में बारिश ने जमकर खलल डाला, पर दीपावली को सही संदर्भ में मनानेवालों के हृदय में कहीं से कोई निराशा देखने को नहीं मिली। ऐसे लोगों की टीम निर्धनों के बीच पहुंचे तो कोई उन निर्धनों को अपने घर ही बुलाया और उनके साथ दीपावली का आनन्द लिया। खूब दीये जलाये, मुंह मीठा कराया, पटाखे छोड़े और शुभ दीपावली तथा हैपी दीपावली कहकर एक दूसरे का स्वागत व अभिननन्द किया।

इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बरसो लिखी कविता खुब जमकर व्हाटसएप पर वायरल हुआ। बोल थे –

जब प्रेम से मीत बुलाते हों, दुश्मन भी गले लगाते हों।

जब कहीं किसी से वैर न हों, सब अपने हों, कोई गैर न हों।

अपनत्व की आभा होती है, उस रोज दिवाली होती है।

One thought on “इन्द्र के कोपभाजन बने रांचीवासी, दीपावली में न दीये जले और न ही फूटे पटाखे

  • राजेश कृष्ण

    प्रकीर्ति का निर्णय
    महादेव को समर्पित

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