तेजस्वी को अभी से ही झाड़ पर चढ़ाने को उतारु हो गयी मीडिया…

बस मौका मिलना चाहिए और शुरु हो गये। हमारे देश में मीडिया का यहीं हाल है – बस थोड़ा बोलनेवाला कोई नेता क्या मिल गया? बस उसमें नायक देखने लगे। नायक भी ऐसा-वैसा नहीं। सीधे चन्द्रगुप्त, और लीजिये चन्द्रगुप्त बनानेवाला चाणक्य भी उन्हें जल्द दीखने लगता है। फिलहाल मीडिया को चन्द्रगुप्त के तौर पर कई घोटालों के आरोपी लालू प्रसाद यादव का होनहार पुत्र तेजस्वी यादव दिखाई पड़ा है, यहीं नहीं मीडिया ने चाणक्य भी ढूंढ निकाला है,

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सर्वाधिक अनैतिक है नीतीश कुमार, संघमुक्त भारत बनाने की बात करनेवाले संघ की गोद में…

इधर नीतीश कुमार ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा, उधर महागठबंधन टूटा, देखते ही देखते भाजपा विधायक दल की बैठक हुई, नीतीश कुमार को समर्थन देने की बात की घोषणा कर दी गयी। देखते ही देखते यूपीए का नेता एनडीए में शामिल हो गया, एनडीए विधायक दल की फिर बैठक हुई और नीतीश कुमार एनडीए विधायक दल के नेता चुन लिये गये और इस प्रकार भारत संघमुक्त बन गया,

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कल लालू से नैन मटका, अब मोदी से प्यार भयो, अब नीतीश गायेंगे मोदी भजन

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने आज सायं राजभवन जाकर राज्यपाल को इस्तीफा सौप दिया। जैसा कि सर्वविदित भी था कि जिस प्रकार से तेजस्वी के इस्तीफे को लेकर जिच चल रही थी, उससे इस बात की भी पुष्टि हो गई थी कि तेजस्वी के इस्तीफे न देने की स्थिति में वे स्वयं अपना इस्तीफा सौप देंगे और आज वहीं हुआ।

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कांग्रेस और विपक्ष ध्यान दें, जनता को मोदी की आलोचना से मतलब नहीं, विकल्प से मतलब हैं…

केवल नरेन्द्र मोदी का खिलाफत करने से ही काम नहीं चलेगा, नरेन्द्र मोदी से बेहतर बनने की कोशिश भी करनी होगी, तब जाकर जनता में कहीं पैठ बनेगी, उसके बाद ही जनता विचार करेगी कि क्या विपक्ष का यह व्यक्ति सचमुच नरेन्द्र मोदी का विकल्प है या ऐसे ही गला फाड़कर नेता बनने की कोशिश कर रहा है? सच्चाई यह है कि फिलहाल देश में विपक्ष कहीं नजर हीं नहीं आ रहा है, जो एक-दो विपक्ष है भी, तो वे क्षेत्रीय राजनीति में इस प्रकार से उलझे है

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रघुवर दास ने भाजपा छोड़ लालू यादव की जातिवादी पैटर्न पर कदम बढ़ाया…

ये है भाजपा। ये है भाजपा का नेता। ये है झारखण्ड का मुख्यमंत्री रघुवर दास। कहा जाता है कि भाजपा जातिरहित समता-ममतामूलक समाज की बात करती है, पर इन दिनों भाजपा के नेता जातिवादी समाज बनाने को लेकर कुछ ज्यादा ही दिमाग लगा रहे है, वे अपनी जाति द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे है और अपने दिवंगत नेताओं के सम्मान पर कीचड़ उछाल रहे हैं।

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