यहीं मौका हैं नवोदित पत्रकारों ‘सुरेन्द्र किशोर’ अथवा ‘ज्ञानेन्द्र नाथ’ जैसे पत्रकारों से ज्ञानार्जन कर लो

मैं यह दावा नहीं करता कि बिहार में सिर्फ ‘सुरेन्द्र किशोर’ अथवा ‘ज्ञानेन्द्र नाथ’ ही मात्र दो पत्रकार हैं, जिनसे पत्रकारिता के गुण सीखे जा सकते हैं, हो सकता है कि ऐसे लोगों की संख्या और भी हो, परन्तु यह दावा जरुर कर सकता हूं कि यह बहुत ही सुंदर मौका है, इन दोनों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, क्योंकि लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा से इनकी कलम और ऊर्जान्वित हो चुकी है।

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अगर रांची के अखबार सहीं हैं तो समझ लीजिये, अर्जुन मुंडा खूंटी से जीत गये और डा. अजय ने झारखण्ड में कांग्रेस को बर्बाद कर दिया

भाई मानना पड़ेगा, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता फुरकान अंसारी ने गलत नहीं कहा कि जिस आदमी को झारखण्ड में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए भेजा गया था, उसी ने कांग्रेस को सत्यानाश कर दिया। फुरकान अंसारी का इशारा सीधे डा. अजय कुमार की ओर था, जो फिलहाल कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, और जिन्हें सही मायनों में झारखण्ड की वस्तुस्थिति की जानकारी ही नहीं, किसी ने कुछ कह दिया बस उसी को सब कुछ मान लिया

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झारखण्ड के नेता कितने भोले हैं, इन्हें बुद्ध की तरह ज्ञान-प्राप्ति तभी होती हैं, जब चुनाव सर पर होते हैं

इधर चुनाव सर पर हैं, और झारखण्ड के कुछ नेताओं को इस चुनाव के मौसम में गौतम बुद्ध की तरह परम ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी हैं, उन्हें यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हो चुका है कि देश को एकमात्र नरेन्द्र मोदी और झारखण्ड को एकमात्र रघुवर दास ही नई दिशा दे सकते हैं, दुसरा कोई नहीं। इसलिए वे फिलहाल दो मंत्रों को धारण कर, अपना जीवन सफल करने में लगे हैं। एक मंत्र है – मोदी शरणम् गच्छामि और दूसरा मंत्र है रघुवर कृपा केवलम्।

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आखिर गोमो स्टेशन के कुछ वेंडर, महिलाओं के लिए बनी शौचालयों के आस-पास ही क्यों मंडराते रहते हैं?

भाई सवाल तो साफ है, धनबाद रेल मंडल प्रबंधक को जवाब देना चाहिए कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमो के प्लेटफार्मों पर महिलाओं के लिए बनी शौचालयों के आस-पास, कुछ वेंडर क्यों मंडराते रहते हैं? हम आपको दिखाते हैं, यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमो का प्लेटफार्म नंबर 1-2 हैं। जिसके पश्चिमी छोर पर, एक ही स्थान पर तीन शौचालय बने हैं, एक ओर विकलांग, दूसरी ओर पुरुष और तीसरी ओर महिलाओं के लिए शौचालय बनाई गई है,

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धनबाद में जिला प्रशासन खुद ही उड़ा रहा आचार संहिता का माखौल, सत्तारुढ़ दल को कर रहा मदद

गत् दस मार्च को लोकसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा के साथ ही पूरे देश में आचार संहिता लागू हो गई, पर लगता है कि धनबाद जिला प्रशासन को इस बात की जानकारी ही नहीं, या हो सकता हैं कि उन्हें मालूम हो और वे इस चुनाव आचार संहिता की स्वयं धज्जियां उड़ाने का संकल्प ले लिया हो, जबकि चुनाव आयोग द्वारा दिये गये सारे निर्देशों को पालन कराना या उन्हें जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी इन्ही की है,

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लक्षण सुधारें भाजपा नेता, नहीं तो जनता ऐसा सुधार देगी कि कही के नहीं रहेंगे, झंडा ढोनेवाला तक नहीं मिलेगा

लोकसभा चुनाव सर पर हैं और भाजपा में भूचाल है। कहीं पार्टी कार्यकर्ता आपस में भिड़ रहे हैं तो कही टिकट नहीं मिलने से कोई इतना नाराज हो गया कि वो अपने पार्टी के ही शीर्ष नेताओं को औकात दिखाने पर तुला है, और कोई ऐसा विधायक हैं जो महिला को थप्पड़ तक जड़ देता है, जबकि एक भाजपा विधायक ऐसा है कि उस पर यौन शोषण का आरोप भाजपा की ही जिला मंत्री लगा देती हैं,

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भाई, अब तो अन्नपूर्णा को नई जगह और भाजपा को नया नेता मिल गया, फिर भी इनके मुंह क्यों लटके हैं?

भाई एक वक्त था, जब झारखण्ड नहीं बना था, एक बिहार था, जिसमें झारखण्ड भी समाया हुआ था। लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुए, और देखते ही देखते वे पूरे देश में अपने आचरण व व्यवहार से छा गये। जो भी गरीब, चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो? उन्हें देखता तो अपनी छाती फुला लेता, उसे लगता कि उसके घर का नेता पहली बार सत्ता में आया हैं,

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महागठबंधन से घबराई BJP अन्नपूर्णा के शरण में, भूपेन्द्र की रणनीति भविष्य में पड़ सकती है BJP के लिए भारी

महागठबंधन ने भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं की नींद उड़ा दी है, हड़बड़ाहट में उनके द्वारा लिये जा रहे निर्णय बता रहे हैं कि वे कितने अंदर से घबराए हुए हैं। स्वयं को चारित्रिक रुप से पुष्ट बतानेवाली भाजपा अब राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी के शरण में चली गई तथा उनसे कोडरमा लोकसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ने का अनुरोध किया,

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पहले BJP को खूब गरियाएं, फिर उस में शामिल हो, संघ-भाजपा नेताओं के पांव छूकर टिकट ले, चुनाव जीते

अब भाजपा नीति व सिद्धांत की सिर्फ बात करती है, उस पर चलती नहीं। एक समय था जब भाजपा नीति व सिद्धांतों के लिए ही जानी जाती थी, उसके विरोधी भी इस बात के कायल रहते थे, भाजपा कार्यकर्ताओं की भाजपा में पूछ भी हुआ करती थी, बड़े भाजपा नेता अगर किसी शहर में जाते तो वे बड़े होटलों में ठहरने की अपेक्षा भाजपा कार्यकर्ता के घर पर समय गुजारना ज्यादा पसन्द करते,

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कमाल हो गया, आडवाणी के लिए वे भी रो रहे हैं, जो कल तक उन्हें बिना गालियां दिये सोते तक नहीं थे

भाजपा या वर्तमान राजनीतिक दलों में किसकी हिम्मत है कि स्वयं को लालकृष्ण आडवाणी के सामने खड़ा होने का दुस्साहस

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