भाजपा-झाविमो में हुई सौदेबाजी की पहली रश्म कल होगी पूरी, उपर से थोपे गये बाबू लाल बनेंगे नेता प्रतिपक्ष

कल नेता प्रतिपक्ष बाबू लाल मरांडी बना दिये जायेंगे, क्योंकि कल प्रमुख विपक्ष यानी भारतीय जनता पार्टी और उसके विधायकों का समूह बाबू लाल मरांडी को अपना नेता चुन लेगा। कहने को तो विधायकों का समूह ऐसा करेगा, पर सच्चाई इसके विपरीत है, भाजपा विधायकों का समूह आज भी बाबू लाल मरांडी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं, चूंकि दिल्ली से आदेश हैं इसलिए भाजपा विधायकों को दिल्ली का आदेश मानना बहुत ही जरुरी हैं।

आप इसे भाजपा में कांग्रेस शैली का पदार्पण भी कह सकते हैं, जैसे हर बात कांग्रेस में दिल्ली से पूछने के बाद ही कार्यरुप में लाया जाता है, इसलिए भाजपा में भी यह कांग्रेस शैली का पदार्पण हो चुका है, पूर्व में जो मुख्यमंत्री के लिए विधायक दल की बैठकें हुआ करती थी, अब नेता प्रतिपक्ष के लिए भी भाजपा में बैठक हो रही हैं, वह भी उस नेता के लिए जो जूम्मे-जूम्मे एक हफ्ते भी नहीं हुए, और पार्टी में शामिल हो गया, ऐसे नेता के लिए।

हालांकि बाबू लाल मरांडी निःसंदेह अच्छे नेता है। उनके शासनकाल में झारखण्ड ने गति पकड़ी थी, पर सत्ता के दलालों ने उन्हें कार्य करने नहीं दिया और वे कुछ सालों में ही सत्ता से बाहर कर दिये गये। नतीजा ये निकला कि जिन्हें बाबू लाल मरांडी ने सत्ता सौंपी, वह भी आस्तीन का सांप निकला, कोई ऐसा जगह नहीं छोड़ा, जहां उसने बाबू लाल मरांडी को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं की। जिसके कारण बाबू लाल मरांडी ने भाजपा से अलग होने की ठान ली।

सच्चाई यह भी है कि अपने शासनकाल में डोमिसाइल आंदोलन के कारण बाबू लाल मरांडी बिहार और अन्य राज्यों के लोगों के बीच खलनायक के रुप में नजर आये, पर झारखण्डियों के लिए ये हीरो बन गये, आज भी जिन्होंने डोमिसाइल आंदोलन को देखा है, वे अपने-अपने नजरियों से उन्हें हीरो व खलनायक मानते हैं।

बाबू लाल मरांडी भाजपा में गये हैं, निः संदेह भाजपा को कुछ फायदा होगा, पर ये तभी संभव है कि लोग उपर-उपर के मन से नहीं, अंदर के मन से पूर्व की तरह उन्हें अपना नेता माने, नहीं तो अगर रहीम के दोहे “रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय, टूटे पर भी ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ि जाय” वाली कहावत चरितार्थ हो गई तो बाबू लाल ही नहीं बल्कि भाजपा को भी लेने के देने पड़ जायेंगे।

राजनीतिक पंडितों की माने, तो बाबू लाल मरांडी के भाजपा में प्रवेश करने के बाद बाबू लाल मरांडी के खासमखास लोग, जिन्होंने उन्हें भाजपा में ले जाने के लिए तथाकथित कड़ी मेहनत की, वे इसका विशेष फायदा पूर्व की तरह उठाने की कोशिश करेंगे, जिसका खामियाजा देर-सबेर बाबू लाल मरांडी और भाजपा को उठाना पड़ेगा।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो अब बाबू लाल मरांडी की भी परीक्षा होगी, क्योंकि पिछले कई सालों से भाजपा के अंदर या भाजपा को समर्थन करनेवाले ऐसे लोग जिन्होंने भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाई और जिसको लेकर उन्होंने कई प्रेस कांफ्रेस आयोजित किये, क्या वे मामले को वे खुद दबायेंगे या उन्हें दंडित करेंगे? अगर दंडित करेंगे, करायेंगे तो निःसंदेह उनका कद बढ़ेगा, और अगर उनका मनोबल बढ़ायेंगे तो पता चल जायेगा कि बाबू लाल मरांडी 2000-2003 वाले नहीं, ये नये 2020 वाले हैं, मतलब समझते रहिये।

हां एक बात और, कल की बैठक में कौन दिल्ली से आयेगा और कौन कहां से आयेगा, कौन नेता उपस्थित रहेगा, किसकी अध्यक्षता में कार्य होगा, ये सब फालतू बाते हैं, बस इतना याद रखिये, कि अब भाजपा ही झारखण्ड विकास मोर्चा हैं, लेकिन यहां झाविमो का नाम सिर्फ विलुप्त हुआ है।