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बंगाल में रहकर “ममता बनर्जी” और “तृणमूल कांग्रेस” से वैर, पागल हो क्या?

बंगाल में रहकर “ममता बनर्जी” और “तृणमूल कांग्रेस” से वैर, पागल हो क्या? अरे भाई किस नेता या किस पत्रकार या किस अखबार या किस चैनल या किस पोर्टल की हिम्मत है कि वो बंगाल में रहकर ममता बनर्जी या उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ एक बयान दे दें, या रिपोर्ट छाप दें, किसको अपनी इज्जत प्यारी नहीं हैं और किसे अपने बदन से प्यार नहीं हैं, क्या भूल गये कि चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं व समर्थकों की क्या गत हुई है?

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सोनू सूद इसलिए आगे आएं क्योंकि उन्हें सच्चाई नहीं मालूम और अबुआ नेताओं का दिल इसलिए नहीं पिघला क्योंकि वे भास्कर और बिरसा के वंशजों की सच्चाई से वाकिफ हैं…

दैनिक भास्कर के एक पत्रकार का कहना है कि झारखण्ड के किसी अबुआ नेता का दिल नहीं पिघला, लेकिन दूर मुंबई के अभिनेता सोनू सूद बिरसा के परिजनों के लिए मदद को आगे आए, तो भाई मेरे  झारखण्ड का बच्चा-बच्चा को पता है और जानता है कि भगवान बिरसा के वंशजों को जो मिलना चाहिए, वो सरकार और समाज दोनों ने दिया है, उनके दोनों पड़पोते सरकारी सेवा में हैं।

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क्या सचमुच बिरसा के वंशज आज भी दबे-कुचले हैं, जैसा कि दैनिक भास्करवालों ने कहा या माजरा कुछ और है?

सवाल न. 1 – सबसे पहले “दैनिक भास्कर” के प्रथम पृष्ठ के सबसे उपर लिखी दो पंक्तियों पर नजर डालें, क्या लिखा है? –“एक गरीब आदिवासी बच्चा। एक युवा बागी किसान। जिसने आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ने-मारने के विरोध में अंग्रेजों और सामंतों से लड़ाई शुरु की, आजाद भारत का सपना देखा। बिरसा को अंग्रेजों ने छल से पकड़ा, जेल में ही जहर देकर मार डाला। उसी भगवान के बच्चे आज भी दबे-कुचले हैं…”

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प्रेस क्लब की बैठक में कानूनी कार्रवाई को लेकर सहमति नहीं, वयोवृद्ध पत्रकारों ने चेताया क्लब को अपने ही चिराग से खाक होने से बचाएं

मंगलवार को रांची प्रेस क्लब की कार्यकारिणी की बैठक थी। यह बैठक संस्थान में ही आयोजित थी, जिसमें ज्यादातर प्रेस क्लब के अधिकारियों लोगों ने हिस्सा लिया। इसकी जानकारी वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार सिंह मंटू ने अपने सोशल साइट फेसबुक के माध्यम से दी है। सुशील कुमार सिंह मंटू के कथाननुसार पूर्व में लिए गये निर्णय के तहत बैठक की मिनट्स टू मिनट्स की गतिविधियों की जानकारी सार्वजनिक करनी थी, लेकिन कमेटी में शामिल अधिकारियों ने इसे सार्वजनिक नहीं किया,

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“बिरसा का गांडीव” तो इस जेठ की दुपहरिया में कई लोगों के तन-बदन में आग लगाकर फागुन की मस्ती में डूबा था, मतलब समझे कि ना समझे

भर फागुन रांची प्रेस क्लब के अधिकारी देवर लगिहे, भर फागुन… जोगी जी धीरे-धीरे रंग लगइहो धीरे-धीरे, गाली दियो धीरे-धीरे… आप कहेंगे कि अरे विद्रोही जी को क्या हो गया, इ तपती जेठ महीने में इनको फगुनाहट कैसे सुझ गया, तो भैया जी लोग, झारखण्डी जनता लोग, विभिन्न अखबारों-चैनलों में काम करनेवाले विद्वान पत्रकारों वो इसलिए कि अभी-अभी रांची से प्रकाशित “बिरसा का गांडीव” नामक अखबार ने हमें बताया है कि आज फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है, जिसका विक्रमी संवत् 2077 है।

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अभिनन्दन करिये अंकित की टीम को, जिसने बंगलुरु से भटक कर कतरास पहुंचे ‘डीन जोन्स’ को उनके घर पहुंचाया

कुछ दिन पहले की बात है। विद्रोही24 को यह खबर मिली, जो बहुत ही संवेदनशील एवं मानवीय मूल्यों पर आधारित थी। बंगलूरु से चलकर डीन जोन्स जहां उन्हें पहुंचना था, वे वहां तक तो नहीं पहुंचे, पर पहुंच गये दो हजार से भी ज्यादा किलोमीटर दूर धनबाद के कतरास, जहां इन्हें पहुंचना ही नहीं था। पता चला बंगलुरु से निकलने पर रास्ते में वे नशाखुरानी गिरोह के शिकार हो गये, जिनसे उनके पास रखी हुई सारे कीमती सामान भी चोरी हो गये।

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रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों ने अपने ही बंधु-बांधवों के मुंह पर गैरों से कालिख पुतवाई, उल्लू बनवाया, उगाही के आरोप लगवाएं सो अलग

अभिनन्दन करिये रांची प्रेस क्लब के अधिकारियों का, इन्होंने अपने ही सदस्यों (बंधू-बांधवों) को उल्लू बनाया हैं, इस कोरोना काल में आपदा को अवसर में बदलकर जमकर लूटपाट मचाई हैं, गैरों से अपने मुंह पर कालिख पुतवाई है, पूरे राज्य ही नहीं पूरे देश के लोगों के आखों में धूल झोंककर ईमानदार पत्रकारों की इज्जत लूटी है और जिसका जीता जागता सबूत है, रांची से प्रकाशित सांध्यकालीन अखबार “बिरसा का गांडीव” के आज का अंक।

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वो आखिरी call और सपना (पार्ट – वन)

वो आखिरी बात जो भूलती नहीं और अब ये बात कोई भूलेगा नहीं कि जो चला गया उसके अधूरे सपनों को कोई और नहीं बल्कि उसकी जीवनसंगिनी ही पूरा करेगी। आपलोग सोच रहे होंगे कि मैं किसकी बात कर रही हूं। इस कोरोना काल में प्रति पल अपने मित्रों, परिचितों, शुभचिंतकों को खोते रहने के माहौल में कुछ लोगों का यूं चले जाना बहुत खल गया। झारखण्ड से 35 पत्रकारों को कोरोना ने छीन लिया। सबको तो नहीं जानती मगर दो लोग थे जिन्हें जानती थी, जिनसे जुड़ी थी। ये दोनों ऐसे चले गए कि मैं नि:शब्द और निस्तब्ध रह गई।

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एक्सीडेंट में कट गये महिला के दोनों पांव, लॉकडाउन में बच्ची की पढ़ाई और राशन पर भी आफ़त, नम्या फाउंडेशन ने बढ़ाया मदद का हाथ

टेल्को कॉलोनी से सटी तारकंपनी के पुराने क्वार्टर में लाचार जीवन गुजार रही 63 वर्षीय क्रिश्चियन महिला रोमाला पूर्ति की मदद को नम्या फाउंडेशन ने मदद का हाथ बढ़ाया है। यह प्रगति मंगलवार को अंकित आनंद की ट्वीट के कारण हुआ। अंकित ने ट्वीट कर बताया था कि रोमाला पूर्ति और उनकी बेटी अत्यंत ही ग़रीबी के हालात से जूझ रहे हैं। 63 वर्षीय महिला के दोनों पाँव एक दुर्घटना में कट चुके हैं।

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अखबारों-चैनलों के मालिकों/संपादकों के कारनामों का असर, झारखण्ड में श्मशान की ओर चल पड़ी पत्रकारिता

नेता, पत्रकार और अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का प्रभाव देखिये, झारखण्ड में श्मशान की ओर पत्रकारिता चल पड़ी है। चित्ता सज चुकी है। बस अर्थी से उसे उठाकर चित्ता पर रख देना है, फिर कोई भी उसमें आग लगा दें, क्या फर्क पड़ता है, चित्ता तो चित्ता हैं, धू-धू कर जल पड़ेगी। जब मैं बड़े-बड़े शिक्षण संस्थाओं में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे युवाओं/युवतियों व वहां पत्रकारिता का कोर्स करा रहे मगरमच्छों को देखता हूं तो सोचता हूं कि ये मगरमच्छ कौन सी शिक्षा इन्हें दे रहे होंगे और वे युवा ले रहे होंगे?

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