दिल्ली दंगे व ट्रम्प की यात्रा पर रांची की महिला पत्रकारों ने एक IPS की सोच का किया शानदार ऑपरेशन

ध्रुव गुप्त एक अवकाश प्राप्त पुलिस पदाधिकारी है। आइपीएस है। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक है। सबसे बड़ी बात एक अच्छे इन्सान है। इनसे मेरी पहली और अंतिम मुलाकात मोतिहारी में हुई, जब मैं मोतिहारी दैनिक जागरण कार्यालय में प्रभारी के रुप में कार्यरत था और वे वहां एसपी पद पर तैनात थे।

ध्रुव गुप्त मेरे फेसबुक फ्रेंड नहीं है, पर कभी-कभार उनके पोस्ट हमारे नजरों के बीच इधर-उधर से आ टपकते हैं, जिससे उनके विचारों से मैं कभी-कभी अवगत हो जाता हूं, पर हिन्दू-मुस्लिम एकता की बातें करते-करते जब वे एक पक्ष को दोषी ठहराने के चक्कर में दूसरे पक्ष को जो बचाने का प्रयास करने लगते हैं, उसमें वे पकड़ में आ जाते है कि उनके दिल में क्या चल रहा है?

भारत में ऐसे लोगों की संख्या इन दिनों अधिक है। जो बहुत अच्छे-अच्छे पदों पर तैनात है, या रह चुके हैं, पर किसी न किसी कारणों से दुखी हैं, और वे चाहते है कि उन्हें वो चीजें (एवार्ड आदि) चाहे जैसे भी हो प्राप्त हो, और इस चक्कर में वे स्वयं को एकपक्ष पर इतने आश्रित कर लेते है कि उनके आलेख से सत्य ही गायब हो जाता है, और जब आलेख से सत्य गायब हो जाता है, तो वह व्यक्ति कन्हैया कुमार या रवीश कुमार बन जाता है, जिसे एक वर्ग तो सम्मान की नजरों से देखता है, पर देश कभी सम्मान देने को तैयार नहीं रहता

पर ऐसे लोगों को लगता है कि एक वर्ग जो उसे सम्मान दे रहा है, वही देश है, वही समाज है, और इसी की सेवा करने से पद-प्रतिष्ठा मिलती है, चाहे अन्य लोगों को बेमौत मरने के लिए क्यों न छोड़ दी जाये। ऐसे लोगों की नजरों में भी हिन्दुस्तान खतरे में है, पर सच्चाई यह है कि हिन्दुस्तान कभी मर ही नहीं सकता, क्योंकि हजारों बलवाइयों/दंगाइयों के बीच में भी दिल्ली के बहुत सारे इलाकों से ऐसी खबरें आई है कि हिन्दूओं ने मुसलमानों को और मुसलमानों ने हिन्दूओं को बचाया। जो बताता है कि भारत कभी मर ही नहीं सकता।

सच्चाई यह भी है कि सभी ने स्वीकारा कि ज्यादातर इलाकों में दंगाई जो थे, वे बाहरी थे, जिसे पहचाना नहीं जा सका। सच्चाई यह भी है कि जिस दंगे में ज्यादातर आजकल भाजपा का नाम बिना देखे जोड़ देने का जो आजकल फैशन चला है, ताहिर हुसैन जैसे लोगों ने खुलकर बताया कि नहीं उसके जैसे आम आदमी पार्टी के लोग भी दंगे करने/कराने में शामिल है। उसके घर के छत से मिले नुकीले पत्थर, पेट्रोल बम, गुलेल, हथियारों का जखीरा बताने के लिए काफी है कि दंगों की तैयारी किसने और किस प्रकार तैयार की थी। ताहिर हुसैन पर तो आइबी कर्मी अंकित शर्मा की हत्या कर देने तक का आरोप है। उसके बावजूद भी लोगों में भाजपा, मोदी और शाह में ही सारी बुराइयां नजर आती है

भाई सत्य बोलिये, डंके की चोट पर बोलिये, पर ये क्या? आप एक पर छीटाकशी करेंगे और दूसरे को साफ बचा लेंगे, यह नहीं चलेगा। जरा देखिये ध्रुव गुप्त ने अपने सोशल साइट पर क्या लिखा है

“ उन्हें लूटेरे, विधर्मी मुगलों से नफरत थी। उन्होंने ट्रंप को मुगलों का बनाया ताजमहल दिखाया। गांधी से उनके गहरे वैचारिक मतभेद रहे। वे ट्रंप को गांधी के साबरमती आश्रम और फिर राजघाट ले गए। उन्हें केजरीवाल से नफरत थी। उन्होंने आज मेलेनिया ट्रंप को केजरीवाल के बनाए सरकारी हैप्पीनेस स्कूल दिखाया। अपने विरोधियों को सम्मान देना तो ठीक है, लेकिन ऐसी भी क्या उदारता कि आप ट्रंप को अपने लोगों द्वारा अभी-अभी उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई मुहल्लों में बड़ी मेहनत से खड़ी की गई पत्थरों, आग और धुओं की दर्शनीय इमारतों के दर्शन नहीं करा सके? अफसोस है कि बेचारे अनुराग ठाकुर, प्रवेश शर्मा, कपिल शर्मा जैसे कुशल कारीगरों की अथक कोशिशें ट्रंप सर की नजरों से ओझल ही रह गई।

ये सोच है, एक आइपीएस अधिकारी की। ये सोच है भाजपा, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री के प्रति। भाई इस सोच की तो दाद देनी पड़ेगी। क्योंकि सोच ही तो व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। अब देखिये न, जिन्हें न देश, न समाज से मतलब है, लगे इनकी सोच को अपनी सोच के अनुसार शेयर करने।

जब मैंने इनकी इस सोच को पढ़ा तो हमारे सामने कुछ दृश्य इस प्रकार थे। जो जगजाहिर थे। चूंकि बड़े आदमी रह चुके हैं, इनकी बात बहुत दूर तक जाती है, इसलिए इनके इस सोच को अब तक 2600 से भी अधिक लाइक मिली है। 533 कमेन्ट्स हैं, जिसमें इनकी सोच की बहुत अच्छी आपरेशन भी की गई है, और कई लोगों ने वाह-वाह भी की है, इनकी सोच को 800 लोगों ने अब तक शेयर किया है, पर खुशी इस बात की है कि इनकी इतनी अच्छी सोच के बावजूद दिल्ली के हिन्दू-मुसलमानों पर कोई असर नहीं पड़ा हैं, जो अच्छे हिन्दू और अच्छे मुसलमान हैं, वे एक दूसरे पर जान छिड़क रहे हैं और इनके जैसे लोग अपनी सोच के अनुसार एक पक्ष में आकर विधवा प्रलाप कर रहे हैं

इनकी इसी सोच पर रांची की वरिष्ठ पत्रकारों की महिला विंग ने बड़े साहस से इनकी सोच का आपरेशन किया है जो काबिले तारीफ है, इनकी प्रशंसा होनी ही चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार आर्य मोनिका ने इनकी सोच का बहुत ही सुंदर आपरेशन किया है, जरा देखिये आर्य मोनिका ने इनका कितना सुंदर जवाब दिया

“आप सही कह रहे हैं। बहुत सारी दर्शनीय चीजें नहीं दिखा पाए मोदी। ये नहीं दिखा पाए कि इस देश की राजधानी में सड़क रोक कर भीड़ देश के विभाजन की खुलेआम योजना बनाती है और हमारे हाथ बंधे हैं क्योंकि ये सब महिलाओं और बच्चों की आड़ में हो रहा है। ये नही दिखा पाए कि तेरा मेरा रिश्ता क्या….ला इलाही… बोलती भीड़ हिन्दू बहुसंख्यकों के बीच कितनी महफूज़ है।

वे ये भी नहीं दिखा पाए कि कश्मीर की पूरी एक नस्ल शरणार्थी कैम्प्स में क्या कर रही है?
उन्हें आज उस हेड कांस्टेबल का पार्थिव शरीर भी दिखाना चाहिए था, जिसके सर पर एक भीड़ मौत बनकर उतरी और तीन बच्चों को अनाथ कर गयी। मोदी को रात्रिभोज में कन्हैय्या को भी आमंत्रित कर दिखाना चाहिए था और ये बताना चाहिए था कि इसकी लोकप्रियता सिर्फ इस कारण है कि इसने देश के खिलाफ नारेबाजी की या उसे समर्थन दिया। यकीन मानिए, ट्रम्प सर कहीं अधिक प्रभावित होते, क्योंकि इतनी आज़ादी तो अमेरिका में सोची भी नही जा सकती। बहुत खेद सहित… प्रभावशाली लिखने वाला व्यक्ति तटस्थ भी हो, ये उम्मीद सिरे से खारिज कर दी आपने”

वरिष्ठ पत्रकार चेतना झा ने आर्य मोनिका के इस सोच का समर्थन करते हुए लिखा “बहुत जरूरी था दोस्त ये हस्तक्षेप पड़ोसी देश के लोगों की नागरिकता के लिए अपने ही घर में तब आग लगा दी जब मेहमान आए, और कहते हैं कि हमें घर का नहीं माना जाता जो काम पाकिस्तान मन मसोस कर नहीं कर पाया, वह हमारे इन अपनों ने कर दिखाया

जागरूकता तो हमारी बहनों में ऐसी है कि इतने साल बाद तक खतना, बुर्का प्रथा, चार विवाह, अधिक बच्चे, साक्षरता का निम्न दर जैसी कुरीतियां ढोए जा रही हैं, पर कभी इसके खिलाफ इनके धरना प्रदर्शन की खबर नहीं सुनी आज पड़ोसी मुल्क के लोगों की नागरिकता के लिए धरना पर बैठी हैं तो किस वजह से यह भी तहकीकात का विषय।

पर इससे भी अधिक खतरनाक का मुल्क में तथाकथित बुद्धिजीवियों का होना, एक राष्ट्रीय चैनल का पत्रकार प्राइम टाइम में पाकिस्तान जिंदाबाद बोलने वाली अमूल्या के पक्ष में चिल्लाता है, 19 साल की लड़की, वह 19 साल की लड़की, साहब बलात्कारी भी तो नाबालिग ही निकल रहे, लड़कों से हो जाती भूल की तर्ज पर छोड़ दिया जाए इन्हें भी

2 thoughts on “दिल्ली दंगे व ट्रम्प की यात्रा पर रांची की महिला पत्रकारों ने एक IPS की सोच का किया शानदार ऑपरेशन

  • February 28, 2020 at 8:00 pm
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    Pandit ji kya kahna chaah rahe hain? Doosron ki choriye apna vichar to vyakt kijiye. Later logon ke blog hai. Aap apne site par apni baat kahi

  • March 1, 2020 at 1:06 am
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    यह आलेख मुझे अच्छा नहीं लगा। आपके विचार स्पष्ट हो रहे।में आपके आलेखों को पढ़ कर कुछ सिखाता हूं।

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