राजनीति

वो ढोल पीटकर भी कुछ नहीं कर सकें और सुनीता ने वह कर दिखाया, जिसका अंदेशा ही न था

अभिनन्दन करिये, उस आयरन लेडी सुनीता अरोड़ा का, जिन्होंने वह कर दिखाया, जो कोई नहीं कर सका। कश्मीर के श्रीनगर स्थित लाल चौक पर, सुनीता अरोड़ा ने आतंकियों को ललकारा और उसी के गढ़ में भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगाये। यहीं नहीं कश्मीर के लाल चौक पर तैनात जम्मू-कश्मीर पुलिसकर्मियों को भी कहा कि वे भी उनके साथ भारत माता की जय और वंदे मातरम कहे, हालांकि जब सुनीता अरोड़ा भारत माता की जय और वंदे मातरम का नारा लगा रही थी, जम्मू-कश्मीर पुलिस की हरकतें देखते बन रही थी, जहां सुनीता भयमुक्त होकर भारत माता की जय और वंदे मातरम बोले जा रही थी, वहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस के हाथ-पांव फूलते जा रहे थे।

अभिनन्दन करिये असम के उन बच्चों-शिक्षकों का, जो बाढ़ से प्रभावित है, फिर भी तिरंगे की शान को कम होने नहीं दिया। बाढ़ से जुझते हुए उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया और झंडे को सलामी दी।

अभिनन्दन संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को भी, जिन्होंने केरल के पलक्कड़ जिला कलक्टर द्वारा राष्ट्रीय झंडे को फहराने से मना करने के बावजूद, उन्होंने केरल के एक विद्यालय में शान से राष्ट्रीय ध्वज फहराया और वहां बच्चों को संबोधित भी किया, साथ ही वहां की वामपंथी सरकार द्वारा दिये जा रहे चुनौती को भी स्वीकारा।

ये तीन उदाहरण बताते है कि जो लोग करना जानते है, वे ढोल नहीं पीटते, वे करके दिखा देते हैं, और जो ढोल पीटते हैं, उनका मकसद सिर्फ ढोल पीटना होता है, करना कुछ नहीं होता है। जरा देखिये एक पत्रकारों का समूह रांची से चला था, राष्ट्रीय ध्वज फहराने, जानते है कहां, कश्मीर के लाल चौक पर, नारा क्या लगा रहा था – जहां हमारा लहू गिरा है, वो कश्मीर हमारा है, पर इनलोगों से पूछिये कि क्या आपलोगों ने कश्मीर के लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। उत्तर होगा – नहीं, क्योंकि इनका मकसद ही नहीं था, राष्ट्रीय ध्वज फहराना। ये लोग अच्छी तरह जानते थे कि, इन्हें वहां तक जाने नहीं दिया जायेगा और हुआ भी वैसा ही, पर जो माइलेज लेना चाहते थे, नेता बनने की, ताकि आनेवाले समय में कोई नेता या कोई राजनीतिक दल इन्हें हाथों-हाथ लें तथा पूरे देश में उनकी सकारात्मक छवि बने, वे इस मकसद में आंशिक रुप से सफल रहे। आश्चर्य इस बात की है कि इनके इस राजनीतिक मकसद को हवा देने में भाजपा और संघ के लोग भी सक्रिय दीखे, जिससे सामान्य जन को निराशा हाथ लगी, ऐसे भी जो लोग इस प्रकार की हरकतें करते हैं, और जनता की आंखों में धूल झोंकते है, उन्हें मालूम होना चाहिए कि इस प्रकार की मनोवृत्ति ज्यादा दिनों तक कामयाब नहीं होती।

जो लोग भाजपा नेता डा. मुरली मनोहर जोशी को जानते है, उन्हें पता होगा कि जब वे राष्ट्रीय अध्यक्ष थे तो उन्होंने एकात्मता यात्रा निकाली थी और ये यात्रा कांग्रेस सरकार की मदद से कश्मीर के लाल चौक तक पहुंची थी, तब उन्होंने वहां राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। मकसद शत प्रतिशत राजनीतिक था और उस वक्त नारा ये खूब लगा था – जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वो कश्मीर हमारा है, पर इधर झारखण्ड के कुछ पत्रकार भी यहां के कुछ संपादकों, अधिकारियों और नेताओं की सहायता से राजनीतिक कदम उठा रहे है, जो ठीक नहीं कर रहे, क्योंकि पत्रकारिता की आड़ में राजनीति किसी भी प्रकार से उचित नहीं। अंत में, सलाह उन अधिकारियों और राजनीतिज्ञों को, ऐसे चालाक लोगों से दूरियां बनाये, नहीं तो जनता अपना जब आक्रोश दिखायेगी तो फिर ये राजनीति कर रहे पत्रकार भी इनकी कुछ मदद नहीं कर पायेंगे, इस सलाह को गांठ बांध लेनी चाहिए।

2 thoughts on “वो ढोल पीटकर भी कुछ नहीं कर सकें और सुनीता ने वह कर दिखाया, जिसका अंदेशा ही न था

  • Sanjeev Shekhar

    We must appreciate your journalism that is failing to attract attention of all. It’s here where true journalism exists and thanks for highlighting the flag hoisting by Sunita Arora. Salute to her and the entire nation.

  • एकदम सही लिखा,
    तथाकथित ,मुखौटाधारि छद्मवेशी छद्मकृर्त्या ढोंगी पत्रकार कहने के लायक नहीं, रही बात नेता जी की तो कानून अँधा है पट्टी बांधकर और शाशन सरकार अँधा होती है धृतराष्ट्र की तरह..तो इन्हें क्या दिखेगा..समाज राष्ट्र के छद्मवेशी शत्रु.
    आपने लिखा,आभार
    प्रणाम
    राजेश कृष्ण
    स्वतन्त्र.नागरिक.

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