IAS/IPS बनेंगे, अफरात पैसे कमायेंगे, पर अच्छा इंसान नहीं बनेंगे, देश बनाने का ठेका हम क्यों लें?

पिछले ही साल की बात है, सीबीएसई 10वीं की परीक्षा और झारखण्ड सरकार द्वारा आयोजित मैट्रिक परीक्षा के परिणाम आ चुके थे। ऐसे समय में, रांची से प्रकाशित अखबारों व चैनलों में, जैसा कि होता है, विभिन्न स्कूलों के उतीर्ण छात्र-छात्राओं के फोटो सहित उनके आगे की सोच के संवाद प्रकाशित किये  गये थे।

कोई आईएएस तो कोई आईपीएस, कोई इंजीनियर्स तो कोई डाक्टर बनने का सपना देख रहा था, संभव है ये बन भी जाये, क्योंकि रिजल्ट बता रहे थे, कि सारे उतीर्ण विद्यार्थी मेधावी थे, पर किसी ने ये नहीं कहा कि हमें एक अच्छा इन्सान बनना है, या समाज सुधारक बनना है, सभी की महत्वाकांक्षा बड़े पद पाकर, धन कमाना, ऐश-मौज की जिंदगी जीना ही था।

संयोग से कल ही एक फिल्म मैंने देखी, नाम है –पोखरन। जॉन अब्राहम अपनी सोच के अनुसार कुछ बच्चों को आईएएस बनाने के लिए ट्यूशन दे रहे हैं, पर जो बच्चे वहां ट्यूशन ले रहे हैं, जरा उनकी सोच देखिये, स्पष्ट रुप से पता चल जाता है, जिस फिल्म निर्देशक ने इस खुबसूरत दृश्य के माध्यम से इसका फिल्माकंण किया, मैं उस फिल्म निर्देशक का मुरीद हूं।

कभी-कभी मैं, सोचता हूं कि इस देश में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में आईएएस-आईपीएस बनते है, और इतने ही अवकाश भी प्राप्त करते होंगे, पर इनमें से हम कितने आईएएस या आईपीएस को अपना रोल मॉडल मानते है। पूरे देश में हमें लगता है कि गिनती के दो-चार ही आईएएस या आईपीएस होंगे, जो रोल मॉडल हैं, बाकी तो नेताओं के मोबाइल उठाने और उनके थैले उठाने तथा उनकी जी-हूजुरी करनेवाले, भ्रष्टाचार का रिकार्ड बनानेवाले ही होते हैं, ताकि नेता जी की कृपा से उनकी नौकरी सुरक्षित और बाद में और कृपा हो गई तो कहीं से विधायक या सांसद बन गये तो मृत्यु पर्यन्त स्वर्गिक आनन्द लेते रहें।

झारखण्ड में ही एक वर्तमान में नेता को देख रहा हूं कि पहले वह डाक्टर बना, फिर आईपीएस बना और अब नेता बन गया, पर उससे राज्य या देश को क्या मिला? सवाल ये हैं? कल ही एक आईएएस को विभिन्न स्थानों पर विदाई दी गई, लोगों ने उसे वाह-वाह करके विदा किया, पर मुझसे पूछे तो मैं भी रांची में पिछले 18 सालों से पत्रकारिता और उसके पहले बिहार में 12 सालों से पत्रकारिता कर रहा हूं, क्या मुझे नहीं पता कि वे कितने महान हैं? भाई आप नौकरी कर रहे हैं, देश सेवा नहीं कर रहे हैं, नौकरी करने और देश सेवा में आकाश-जमीन का अंतर है, ये सभी को समझ लेना चाहिए।

जहां कोई व्यक्ति नौकरी करते हुए देश सेवा का प्रण लेते हुए सत्यनिष्ठता के साथ कार्य करता है, तब उसका जीवन सर्वश्रेष्ठ जीवन कहलाता हैं और सही मायनों में वहीं सच्चा इंसान या समाज सुधारक कहलाता है, नहीं तो उसके बयान, अखबारों में छपने के साथ ही, थोड़ी देर में ही एक दुकान पर कुछ सामान रखने के काम आ जाता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

जरा आज के आईएएस/आईपीएस बने हुए एक व्यक्ति की हरकत देखिये। एक बार जब मैं जयपुर में पत्रकारिता कर रहा था, उसी वक्त पत्रकारिता कार्य के दौरान एक वृद्ध व्यक्ति को देखा, कि वे लाठी के सहारे खुद को खड़ा होने की कोशिश कर रहे थे। तभी मेरे कैमरामैन ने मुझसे कहा कि सर आप उस वृद्ध व्यक्ति को देख रहे हैं, जो एक लाठी के सहारे खुद को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, मैने कहा – हां, क्यों? क्या बात हुई? उसने कहा कि जनाब आईएएस थे, रिटायर्ड कर गये, उनके बच्चे भी हैं, पर नालायक हैं, विदेशों में रहते हैं, जयपुर में इनका बहुत बड़ा मकान है, पर वह मकान भी इनको काटने को दौड़ता है, वे चाहते हैं कि लोग उनके पास आकर बैठे, बात करें, पर कोई जाता ही नहीं। मैंने फिर अपने कैमरामैन से पूछा कि ये बताओं कि ये जब नौकरी में थे, तब कैसे थे? इनका व्यवहार और कार्य। कैमरामैन ने कहा कि वहीं जैसा एक आईएएस का होता है, अब आप समझते रहिये।

अभी हाल ही में एक आईएएस अधिकारी को पत्रकारिता करने की सूझी, वे एक दक्षिण के चैनल जिसका उत्तर-पूर्वी भारत में भी धमक थी, उसमें आकर अपने जलवे दिखाने शुरु किये। उसने अपने अनुभवों का ऐसा जलवा दिखाया कि झारखण्ड का राजभवन से लेकर झारखण्ड के सारे आईएएस अधिकारियों के हाथ-पांव फूलने लगे, राज्य में जितने मुख्यमंत्री बनते, सभी उसके आगे हाथ जोड़े खड़े होते, वो जो कहता, करते। ऐसा नहीं कि वह ईमानदार था, बल्कि ऐसा इसलिए कि वह आईएएस रहते हुए भ्रष्टाचार के सारे बिन्दुओं को वह छू चुका था, वह जानता था कि इस सड़ी गली व्यवस्था से भ्रष्टाचारियों को पैसे कैसे मिलते है, वह जब तक रहा गर्दा-गर्दा मचाता रहा, पत्रकारिता का सत्यानाश करता रहा, इसी क्रम में वह इधर से उधर उछलते हुए दिल्ली के चैनल तक अपनी पहुंच बना ली, और अपने कर्म से पत्रकारिता की धज्जियां उड़ा दी, कुछ पत्रकार तो उसकी कृपा से विदेश का दौरा तक कर आये, पर कहा जाता है कि गलत तो गलत होता है, परिणाम सबके सामने है।

अगर हमसे कोई पूछे कि आपको झारखण्ड में कितने आईएएस अच्छे लगते हैं, जिन्हें आप इंसान कह सकते हैं, मैं डंके की चोट पर वर्तमान में एक ही व्यक्ति का नाम लूंगा, जिसने ताल ठोककर एक संपादक को चुनौती दी थी और उस संपादक की उस वक्त घिग्घी बंद हो गई थी, यहीं नहीं अदालत की ओर से जब उस पर छींटे पड़े तब उसने अदालत के सम्मान में, वह निर्णय ले लिये, जिसकी कल्पना न तो उस वक्त की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने किया था और न ही मुख्यमंत्री रघुवर दास।

अब सवाल, क्या महात्मा गांधी आईएएस थे? क्या बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर आईएएस थे? क्या सरदार पटेल आईएएस थे? क्या जगदीश चंद्र बसु आईएएस थे? क्या आचार्य बिनोवा भावे, जिन्होंने शिक्षा की अवमूल्य पर गहरा शोक प्रकट करते हुए व्यवहारिक शिक्षा देने की वकालत की थी, ये भी आईएएस थे? उत्तर है – नहीं। आज देश में हजारों की संख्या में आईएएस और आईपीएस सेवा दे रहे हैं, डाक्टर्स-इंजीनियर्स सेवाएं दे रहे हैं, पर इनमें गिनती के ही ऐसे लोग हैं, जिनमें मानवीय मूल्य है, जिसमें मानवीय मूल्य रहेगा, वहीं सच्चा इंसान कहलायेगा, वहीं देश को नई दिशा देगा, वहीं अपने चारित्रिक गुणों से वर्तमान और भविष्य को रेखांकित करेगा, इसलिए आईएएस/आईपीएस/डाक्टर्स/इंजीनियर्स जरुर बनिये पर ध्यान रखिये, कि उससे भी ज्यादा आपको अच्छा इन्सान बनना है।

ऐसा बनिये कि मरने के बाद भी लोग आपको याद रखे, क्योंकि उपनिषद कहता है – कीर्तियस्य स जीवति। जिसकी कीर्ति है, वहीं जीवित है। इस देश में आपके आईएएस/आईपीएस/डाक्टर्स/इंजीनियर्स बनने के पूर्व कई लोग आईएएस/आईपीएस/डाक्टर्स/इंजीनियर्स बन चुके है, आप वैसा न बनिये, आप भीड़ में मत खोइये, आप अपनी एक अलग पहचान बनाइये, फूंक-फूंक कर कदम रखिये। अपने माता-पिता को कहिये कि जो हो गया सो हो गया, आप हमें अपने ईमानदारी के पैसे से जो बनाना हो, वह बनाइये, हम बन जायेंगे, पर गलत नहीं करिये, देश को इसकी आवश्यकता ज्यादा है, आपके आईएएस/आईपीएस/डाक्टर्स/इंजीनियर्स बनने से।