अपनी बात

जिस अखबार में प्रमुखता से समाचार छपा, वही कर रहा उक्त समाचार का उल्लंघन

झारखण्ड सरकार ने औद्योगिक और अन्य स्थापनाओं में कार्यरत सभी कर्मचारियों के बैंक खाते में ही वेतन देना अनिवार्य कर दिया है। ऐसा नहीं करने पर छह माह की सजा और पांच सौ रुपये जुर्माना का भी प्रावधान है। राज्य के श्रम नियोजन विभाग ने इसकी अधिसूचना पिछले वर्ष फरवरी माह में जारी कर दी थी, पर राज्य में ऐसे कई संस्थान है, जहां आज भी नकद मासिक भुगतान जारी हैं। उनमें से एक रांची से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार भी है, जहां आज भी वहां के कर्मचारियों को नकद भुगतान जारी है। आश्चर्य इस बात की भी है कि इसी अखबार ने गत 10 फरवरी 2017 को इस आशय का समाचार प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

विदित हो कि केन्द्र सरकार पिछले साल जनवरी में ही इससे संबंधित अध्यादेश जारी कर चुकी है। झारखण्ड में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (1936 के 4) की धारा-6 के अंतर्गत की धारा 2 से आच्छादित औद्योगिक एवं अन्य स्थापनाओं के नियोजकों को निर्देशित किया गया है कि वे सभी नियोजित व्यक्तियों का भुगतान सिर्फ चेक या उनके बैंक खाते के माध्यम से ही करेंगे।

राज्यपाल के आदेश से अवर सचिव बुद्धदेव भगत ने इसकी अधिसूचना जारी की थी। विभाग ने अधिसूचना की प्रतिलिपि सरकार के श्रम मंत्रालय, लेबर ब्यूरो, सरकार के सभी विभागों, प्रमंडलीय आयुक्तों, सभी उपायुक्तों, न्यूनतम मजदूरी परामर्शदातृ पर्षद के सभी सदस्यों एवं सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग सहित अन्य संबंधित विभागों को सूचनार्थ और आवश्यक कार्रवाई के लिए भेज दिया था, पर आश्चर्य है कि इस ओर सभी, अभी भी कानों में तेल डालकर बैठे है, जबकि राज्य सरकार प्रतिदिन डिजिटल झारखण्ड, डिजिटल इंडिया, कैशलेस झारखण्ड का ढोल पीट रही हैं।

आश्चर्य इस बात की है कि कभी झारखण्ड ने ही कर्मचारियों को बैंक खाते के माध्यम से भुगतान करने का प्रस्ताव जनवरी 2017 में केन्द्र सरकार को भेजा था। झारखण्ड से प्रस्ताव मिलते ही केन्द्र सरकार ने इस संबंध में अध्यादेश लाया था। उसी अध्यादेश के आलोक में झारखण्ड सरकार ने कर्मचारियों को बैंक खाते के माध्यम से वेतन देने को अनिवार्य बताते हुए अधिसूचना जारी की थी।

आश्चर्य इस बात की है कि एक साल होने जा रहे हैं, राज्य में ऐसी कई संस्थाएं है जो आज भी अपने कर्मचारियों को नकद भुगतान कर रही हैं और सरकार को चूना लगा रही है, पर सरकार के मातहत काम करनेवाले कर्मचारी और अधिकारी किंकर्तव्यविमूढ़ है, ताजा उदाहरण तो रांची से प्रकाशित अखबार सन्मार्ग का है, जहां ये समाचार प्रमुखता से छपा था, वहां आज भी नकद भुगतान का प्रचलन बदस्तूर जारी है।