मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को अपने ग्रिप में लेने के लिए विभिन्न मीडिया हाउस ने शुरु किये डोरे डालने

23 दिसम्बर के पहले तक जिन चैनलों में हेमन्त सोरेन दिखाई नहीं पड़ते थे। जहां हेमन्त सोरेन के लिए इमरजेंसी लगी थी। जहां केवल हर जगह रघुवर ही रघुवर नजर आते थे। जिनके चैनल पर हर बार मोदी मैजिक दिखाई-सुनाई पड़ती थी। आज उन चैनलों पर हेमन्त सोरेन छाये हुए हैं।

बेचारे चैनल करें, भी तो क्या करें, रघुवर दास की जगह हेमन्त सोरेन जो बैठ गये, अंदाजा तो इन्होंने लगाया था कि मोदी मैजिक के चलते रघुवर दास फिर से मुख्यमंत्री बन जायेंगे और फिर उनके दोनों हाथों में लड्डू होंगे, पर झारखण्ड की जनता ने तो उनके सपनों पर झाड़ू लगा दिया, ऐसे में हेमन्त सोरेन को कैसे ग्रिप में लिया जाये?

कैसे उन्हें इस बात का ऐहसास दिलाया जाय कि वे भी उन्हें उतना ही चाहते हैं, जितना झारखण्ड की जनता। इसके लिए समाचारों में तब्दीलियां लाई जा रही हैं। जो कल तक रघुवर में खुदा ढूंढते थे, वे पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास में बुराइयां ढूंढ रहे हैं और झारखण्ड की सारी गड़बड़ियों के लिए रघुवर को ही दोषी ठहरा रहे हैं तथा हेमन्त सोरेन में फिलहाल नये सिरे से खुदा ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।

पर जो लोग हेमन्त सोरेन को जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि हेमन्त सोरेन को पता है कि कौन चैनल, कितने पानी में हैं और झारखण्ड की जनता की नजर में किस चैनल की क्या औकात हैं? राजनीतिक पंडित तो यह भी कहते है कि अगर चैनल और अखबार ही झारखण्ड की राजनीतिक दिशा तय करते, तो अभी राज्य में भाजपा की सरकार होती और मुख्यमंत्री रघुवर दास होते।

सच्चाई यह है कि जनता पूरी तरह से जान चुकी है कि अखबार व चैनल उन्हीं के होते हैं, जो उन पर पैसे खर्च करते हैं और जो पैसे उन पर खर्च नहीं करते, वे उनमें बुराइयों ढूंढने लगते हैं, सच्चाई यह है कि राज्य की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए अखबारों-चैनलों में विज्ञापन के नाम पर पैसे खर्च करने से अच्छा है कि वो पैसा सीधे जनता पर खर्च हो,ताकि राज्य में बुनियादी सुविधाओं के अभाव पर रोक लगे।

जरा देखिये, आजकल राष्ट्रीय व क्षेत्रीय चैनल क्या कर रहे हैं, जो कल तक मोमेंटम झारखण्ड में खूबियां ढूंढते थे, उड़ता हाथी का जय-जयकार करते थे, वे इसमें खराबियां ढूंढ रहे हैं, वे लोगों को बता रहे है कि मोमेंटम झारखण्ड के आयोजन में अनिमतितता के आरोप लग रहे हैं, क्रोमा बनाये जा रहे हैं, और उस क्रोमा में जांच के घेरे में मोमेंटम झारखण्ड लिखा है।

यहीं नहीं हेमन्त सोरेन की कृपा पात्र बनने के लिए उनकी जय-जयकार हो रही है, जरा देखिये, क्रोमा में हेमन्त सोरेन का मुस्कुराता चेहरा देकर एक्शन में सोशल सरकार लिखा जा रहा है, यानी कोई व्यक्ति, कोई चैनल, जिसकी प्राथमिकता सिर्फ धन हो जाता है, तो वह कैसे गिरगिट की तरह रंग बदलता है, कैसे वह समय आने पर जिसे कल तक बेहतर कहता था, उसमें दोष ढूंढने लगता है और जिसे कल भाव नहीं दे रहा था, उसमें कैसे उसे खुदा नजर आ रहा है तथा उनके न्यूज को कैसे उनके नाम के साथ टैग किया जा रहा हैं, जरा खुद देखिये।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इसे ही गिरगिट की तरह रंग बदलना या मतलबी या स्वार्थी कहा जाता है, पूर्व में पत्रकारिता में ऐसी चीजें दिखाई नहीं देती थी, पर जब से एडीटर को नाना प्रकार की जिम्मेदारी थमा दी गई, तब से ये सब चीजें सामान्य हो गई। अब तो चैनल-अखबार सरकार से खनिज-सम्पदा में अपना हक भी मानने लगे हैं, ऐसे में आप उनसे राज्यहित में पत्रकारिता की बात सोच या कर रहे हैं तो आप आला दर्जे के मूर्ख हैं।

रही बात हेमन्त सोरेन के कृपा लूटाने की तो अब स्वर्णरेखा नदी में बहुत सारी पानी बह चुका है, अब उन्हें कोई इमोशनल ब्लैकमेलिंग नहीं कर सकता, उनकी प्राथमिकता राज्य की जनता बन चुकी है, और यही अंतिम भी है, इसलिए जिनको जो करना है करें, वे वहीं करेंगे, जो उन्हें करना है, यानी झारखण्ड का विकास।