आखिर रांची पुलिस गरीबों के मौत का मजाक बनाना कब छोड़ेगी, नशे में गाड़ी चलानेवालों पर कब तक कृपा लुटाएगी

आज एक बार फिर रांची के सहजानन्द चौक पर गरीबों का गुस्सा देखने को मिला। ये सड़कों पर उतरे टायर जलाया और गुस्से में सड़कों पर बैठ गये। फिर क्या था, अति महत्वपूर्ण इलाके में सड़क जाम होने से स्थानीय प्रशासन के हाथ-पांव फूल गये, क्योंकि यही वह इलाका है, जिस रास्ते से होकर भीभीआइपी अपने गंतव्य स्थानों के लिए आते-जाते हैं।

गरीबों के गुस्से के कारण को देखिये। घटना 7 जनवरी की है। नमिता मल्लिक नामक एक लड़की है, जिसकी मां दाई का काम करती है। नमिता 7 जनवरी को सड़क दुर्घटना की शिकार हो गई। जिस गाड़ी ने धक्का मारा। उस वक्त उस गाड़ी के मालिक ने मौके-वारदात नमिता की इलाज के लिए हामी भरी, पर जैसे ही दो दिन समय बीता, वो मुकर गया और कहा कि वो केस लड़ेगा, मुआवजा नहीं देगा।

नमिता की मां कहती है कि वो दाई का काम करती है, वो केस कहां से लड़ेगी, उसे तो अपनी बेटी नमिता के इलाज के पैसे नहीं है, वो कोर्ट में केस क्या करेगी? वो तो चाहती है कि उसकी बेटी का इलाज हो जाये, उसकी बेटी फिर से हंसने-बोलने लगे, पर कोई उसकी सुन नहीं रहा। जो पुलिस कल तक उसकी मदद करने के लिए बोल रही थी, वह भी उलट गई। आखिर पुलिस किसलिए होती है, गरीबों की मदद करने के लिए, या उसकी नींद उड़ाने के लिए, उसे कुछ नहीं चाहिए, बस उसकी बेटी को बचाने/इलाज का प्रबंध हो यहीं तो चाहिए, पर आज तक किसी ने सुध नहीं ली।

इसलिए वह रोड पर आई है, और रोड पर केवल वह ही नहीं, बल्कि वे सारे लोग आ गये, जिन्होंने नमिता और नमिता के मां के दर्द को समझा है। सभी सड़क पर उतर कर गुस्से में हैं, वे कहते है कि ऐसी पुलिस उन्होंने नहीं देखी। एक नशे में सवाल वाहन चालक किसी गरीब को धक्के मारकर, उसे एक किलोमीटर तक घसीटता हुआ चला जाता है, पुलिस को नमिता के प्रति दर्द नहीं है, दर्द उस वाहन चालक के लिए है कि उसे कैसे बचाया जाये, ऐसे में सड़क पर उतरने के सिवा दुसरा रास्ता क्या है?

सभी आक्रोशित हैं, वे कहते हैं कि सबकी एक ही मांग है, पुलिस/प्रशासन लिखित आश्वासन दें कि वह नमिता को जान बचाने के लिए बेहतर प्रयास करेगी। दोषी को सजा दिलवायेगी। मौके की नजाकत को देखते हुए एसपी तुरंत तीन थानेदार को लिखित आश्वासन के लिए आगे करते हैं। डोरंडा, अरगोड़ा और कोतवाली थाने के थानेदार द्वारा हस्ताक्षरित प्रपत्र आंदोलनकारियों को सौंपा जाता है, और फिर आंदोलन समाप्त।

अब सवाल है कि ये सिलसिला कब थमेगा। हाल ही में चुटिया थानान्तर्गत पटेल चौक के पास 31 दिसम्बर को ऐसी ही घटना घटी थी, जहां एक नशे में एक अमीर बाप के बेटे ने करीब आधा दर्जन से ज्यादा लोगों को कुचल दिया। जिसमें दो गरीबों की मौत हो गई और कई घायल हो गये। पता चला कि चुटिया थाना प्रभारी ने बिना ड्राइवर की जांच (नशे में है या नहीं) छोड़ दिया और इस प्रकार गरीबों पर गाज गिर गई, फिर क्या था? लोगों ने थाने का घेराव किया, तब जाकर मृत लोगों और घायलों को इलाज करने के लिए वह अमीर व्यक्ति तैयार हुआ, जिसके बेटे ने इतने लोगों पर गाज गिराया था।

सवाल तो लाजिमी है, कि क्या पुलिस अमीरों की मदद के लिए या गरीबों के लिए हैं, अगर गरीबों की मदद के लिए नहीं हैं, तो बंद करिये ऐसे थानों को, क्योंकि इससे गरीबों का अहित हो रहा है, हम राज्य के नये ऊर्जावान् मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से मांग करते है कि गरीबों पर गाज गिरानेवालें ऐसे पुलिसकर्मियों पर एक्शन लें, क्योंकि अब तक यही होता रहा है कि ये थाने में बैठे लोगों ने अमीरों की ही खातिरदारी करने में अपना समय लगाया और खुद को परमानन्द की प्राप्ति कराने में वर्षों लगे रहे और बेचारे गरीब अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते रह गये।