अपनी बात

अगर करीमन, मियां न होकर दलित हिन्दू होता और कोई ब्राह्मण उसके शव को श्मशान में जलने नहीं देता, तो क्या होता?

अगर करीमन मियां, मियां न होकर दलित हिन्दू होता और कोई ब्राह्मण उसके शव को श्मशान में जलने नहीं देता, तो फिर क्या होता? निश्चय ही उस वक्त पूरे देश में आग लग जाती, पूरे ब्राह्मण समुदाय को लोग हिला कर रख देते, एनडीटीवी ही नहीं बल्कि पूरे चैनलों में ये खबर सुर्खियों में होती, कई सप्ताह तक इस पर विशेष चर्चाएं होती, अखबार वाले उस ब्राह्मण का जीना मुहाल कर देते, संबंधित थाने में प्राथमिकी दर्ज होती, और वह ब्राह्मण जेल की सलाखों में होता।

पर यहां चूंकि मरनेवाला करीमन मियां मुस्लिम हैं और उस पर जूर्म करनेवाला, करीमन को गैर-इस्लामिक बताकर उस पर अत्याचार करनेवाला यानी उसके शव को कब्रिस्तान में जगह नहीं देनेवाला भी मुस्लिम हैं, इसलिए सभी ने चुप्पी साध ली, ऐसा लगा कि मृत करीमन मियां के साथ कोई जूर्म नहीं हुआ, ऐसा लगा कि हम धर्म निरपेक्ष देश में नहीं, शत प्रतिशत इस्लामिक राष्ट्र में हैं, तभी तो करीमन मियां पर गैर-इस्लामिक होने का, हिन्दू होने का आरोप लगाकर, उसे मरने के बाद भी लोगों ने चैन लेने नहीं दिया।

हमारा देश भी गजब का देश हैं। यहां आंदोलन और खबरिया चैनलों पर चलनेवाले समाचार में भी हिन्दू-मुसलमान देखा जाता है, दलित-ब्राह्मण देखा जाता है, अगर ब्राह्मण ने दलित पर अत्याचार कर दिया, तो समाचार है, पर अगर दलित ने ब्राह्मण पर अत्याचार कर दिया, तो वह समाचार नहीं हैं, क्योंकि हमारे देश में एक ढर्रा चल रहा है कि दलित अत्याचार कर ही नहीं सकता, अत्याचार करने का ठेका तो सिर्फ ब्राह्मणों ने ही ले रखा है, इसलिए आरोप उन्हीं पर मढ़ दो, और बात मुस्लिमों की हो, तो सीधे चुप्पी साध लो, क्योंकि इससे धर्म-निरपेक्षता को खतरा उत्पन्न हो जाता हैं।

झारखण्ड में कुकुरमुत्ते की तरह कई सामाजिक संगठन उगे हुए है, इसी तरह पूरे देश में इनकी संख्या लाखों में हैं, पर जरा पूछिये इन सामाजिक संगठनों से कि मृत करीमन मियां के लिए उसने आंसू क्यों नहीं बहाए, पूछिये अपने को बहुत ही बेहतरीन साबित करनेवाले एनडीटीवी और उसके रवीश कुमार से कि क्यों मियां, करीमन की खबर तुम तक क्यों नहीं पहुंची।

पूछिये भात-भात चिल्लाकर गाना गानेवाले लोगों से कि संतोषी की खबर तुम्हें मिल गई, और करीमन मियां की खबर क्यों नहीं मिली, दरअसल इस खबर से न तो टीआरपी मिलती और न हिन्दूओं/ब्राह्मणों को गरियाने का मौका मिलता, टीआरपी तो मिलती है, हिन्दुत्व को गरियाने, गोकशी पर भगवा रंग को गरियाने से, भला करीमन मियां पर हुए अत्याचार से टीआरपी थोड़े ही मिलती है, इसलिए सब ने चुप्पी साध ली।

पर अगर हम पत्रकार है,तो हमें तो उन सभी के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी, जिन्होंने सामाजिक ताना-बाना को छिन्न-भिन्न करने का संकल्प ले लिया हैं, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान या दलित हो या सवर्ण, हमें किसी की जाति या धर्म से क्या मतलब? करीमन मियां के शव के साथ जो भी गलत किया गया, उसके लिए वो सारा समाज दोषी है, जो गलत के खिलाफ आवाज बुलंद नहीं किया और दबंग मुस्लिमों द्वारा करीमन को गैर-इस्लामिक घोषित करते हुए, उसे मरने के बाद भी चैन नहीं लेने दिया।

 मैं थूकता हूं, ऐसी पत्रकारिता और ऐसे अखबार व चैनलों पर जिन्होंने इसे मुद्दा नहीं बनाया, मुझे हैरानी हो रही हैं, गढ़वा के जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन पर, जिसने गलत लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की, तथा उनके खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया, और थूकता हूं ऐसे लोगों और सामाजिक संगठनों पर जो मृतकों में भी हिन्दू-मुसलमान, दलित सवर्ण और फायदे-नुकसान तय कर आंदोलनों को तरजीह देते है।

ज्ञातव्य है कि दस जनवरी को झारखण्ड के गढ़वा जिले के भवनाथपुर थाने के मकरी चकला टोला में दबंग इस्लाम धर्मावलम्बियों ने, मृतक 75 वर्षीय करीमन मिया को कब्रिस्तान में दफन होने नहीं दिया, उस पर आरोप लगाया कि चूकि वह गैर-इस्लामिक कार्य करता था, हिन्दूओ की तरह पूजा-पाठ करता था, इसलिए उसे कब्रिस्तान में जगह नहीं दी जा सकती। ऐसा होने पर वहां के करीमन के परिवारवालों ने, हिन्दूओं के साथ मिलकर करीमन मियां के शव को दूसरी जगह दफना दिया।

One thought on “अगर करीमन, मियां न होकर दलित हिन्दू होता और कोई ब्राह्मण उसके शव को श्मशान में जलने नहीं देता, तो क्या होता?

  • Rajesh

    इनकी मुंह की बत्ती सिर्फ राजनीतिक गोटी सेंकने के लिए..जलती है। खुदा ऐसे नापाक जाहिलों को जहन्नुम बख्शेगा..रहमते उल रसूलल्लाह❣️❣️

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