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झारखण्ड में अघोषित आपातकाल, CM के खिलाफ बोलना युवाओं को पड़ रहा महंगा

झारखण्ड (हालांकि ज्यादातर लोग पूरे देश में अघोषित आपातकाल होने की बात करते हैं।) में अघोषित आपातकाल चलानेवाले आज 25 जून 1975 के दिन श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लागू किये गये आपातकाल की 43 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, वह भी व्यापक स्तर पर। हम आपको बता दे कि ये 25 जून कोई पहली बार नहीं आया है, हर साल आता हैं, पर पहली बार सरकारी स्तर पर इसे मनाने की कोशिश की जा रही हैं, ताकि छः महीने बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश व छतीसगढ़ में होनेवाले विधानसभा चुनाव जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में हैं, उसके सम्मान को रौंदा जाये तथा यहां की जनता को अपने पक्ष में किया जा सके।

यहीं नहीं केन्द्र से लेकर राज्य तक एक सुनियोजित तरीके से आज का दिन काला दिवस के रुप में भाजपा वाले मना रहे है ताकि 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनाव का वे सीधा लाभ ले सकें, पर सच्चाई यह है कि भाजपावाले कितना भी पापड़ बेल लें, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से इनकी इस बार विदाई तय हैं। राजस्थान में तो इन्हीं के एक कद्दावर नेता घनश्याम तिवाड़ी ने इनकी सारी नींद उड़ा दी हैं, और खूलेआम वहां के मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को चुनौती दे रखा हैं। इस बात को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जानते है।

2014 में अच्छे दिन लाने की बात करनेवाले, फिलहाल जनता के मनोभाव को जान चुके हैं कि उत्तरप्रदेश और बिहार में भी उनकी पार्टी की हालत पतली हैं, इसलिए ये बार-बार झूठ बोल रहे है कि जनता के पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कोई विकल्प नहीं हैं, इसलिए आनेवाले लोकसभा चुनाव में केन्द्र में एक बार फिर नरेन्द्र मोदी ही आयेंगे, जबकि लोकतंत्र में विकल्प चुनने का काम आम जनता के पास हैं और इस बार आम जनता तैयार है कि जो भी पार्टी नरेन्द्र मोदी के साथ जायेगी, उसका बुखार यहां की जनता आराम से छुड़ायेंगी, भाजपा को वोट देने का तो सवाल ही नहीं उठता।

और अब झारखण्ड की बात, झारखण्ड में तो ऐसा अघोषित आपातकाल लगा है कि अगर आपने थोड़ा सा भी मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ बोला तो ये पुलिसवाले और भाजपा के कार्यकर्ता मिलकर आपको ऐसा फंसायेंगे कि आप की जिंदगी तबाह हो जायेगी, जबकि यहीं काम भाजपा के लोग या कार्यकर्ता करेंगे यानी दूसरे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को गाली देंगे या ऐसे पोस्ट शेयर करेंगे, जो कि आपत्तिजनक हैं, यहां के पुलिसवाले, उन्हें न तो गिरफ्तार करेंगे और न ही उनके खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज करेंगे।

स्थिति ऐसी है कि झारखण्ड में कई युवा, मुख्यमंत्री रघुवर दास के कोपभाजन के शिकार बन गये और उनकी जिंदगी तबाह हो गई। आज भी एक युवक तीर्थ नाथ आकाश को जेल भेज दिया गया। सवाल उठता है कि तीर्थ नाथ आकाश ने सीएम के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग किया तो जेल चला गया, तो मुख्यमंत्री बताये कि उनके लोग जो कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग कर रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं? यानी भाजपा कार्यकर्ताओं को गाली देने का संवैधानिक अधिकार मिल गया हैं क्या?

अब आइये पत्रकार, यहां के पत्रकारों की हिम्मत ही नहीं कि वे मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ लिख सकें या बोल सकें, कई अखबारों व चैनलों में तो संवाददाताओं को सूचना दे दी गई है कि आप अपने सोशल साइट पर सीएम के खिलाफ न लिखे, नहीं तो ऐसा करने पर आपके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी और आपको नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा, ऐसे में भला कौन पत्रकार सीएम के खिलाफ जायेगा, क्या भगवान ने उसको पेट नहीं दिया है? ये अघोषित आपातकाल नहीं तो क्या है?

जो अखबार या चैनल मुख्यमंत्री की आरती गा रहे हैं, उनके लिए विज्ञापनों की वर्षा और अगर थोड़ा सा भी किसी ने जनसरोकार से संबंधित पत्रकारिता की तो उसके विज्ञापन बंद, ये अघोषित आपातकाल नहीं तो और क्या हैं?

विपक्षी दलों के नेताओं को चुन-चुन कर उनकी विधायकी समाप्त करने का प्रयास और अपने विधायकों जिन पर गंभीर आरोप हैं, उनके साथ दिल्ली में जाकर जातीय रैली में भाग लेना, उसे बचाने का प्रयास करना, ये अघोषित आपातकाल नहीं तो और क्या हैं?

खुद मुख्यमंत्री द्वारा चलाये जा रहे जनसंवाद पर वहां कार्यरत दो महिलाकर्मियों ने गंभीर आरोप लगाये, पर उसकी आवाज न तो मुख्यमंत्री ने सुनी, न ही राज्यपाल ने सुनी और न ही महिला आयोग ने सुनी, यहीं नहीं स्वयं मुख्यमंत्री आवासीय कार्यालय से एक टीम बनाई गई, जिसने जांच की उसने रिपोर्ट भी दे दिया और उसे गतलखाने में फेंक दिया गया। यहीं नहीं राज्य के एक जिम्मेवार मंत्री ने मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र के निविदा पर सवाल उठाएं और उनकी बात अनसुनी कर दी गई, ये अघोषित आपातकाल नहीं तो और क्या हैं?

बूटी मोड़ में एक लड़की के साथ दुष्कर्म कर, उसे जला दिया, उस लड़की का पिता न्याय मांगने के लिए सीएम रघुवर दास के पास गया और सीएम ने भरी सभा में उसकी बेइज्जती कर दी, आजतक पता भी नहीं चल पाया कि उसकी बेटी का हत्यारा कौन हैं और कहां है, पर सीएम के खिलाफ एक शब्द भी किसी ने लिख दिया तो उस पर केस करा दो, उसका जीना हराम करा दो, उसको नौकरी से निकलवा दो, अगर वो जीने की कोशिश करें, तो उसे ऐसा त्रास दो कि वह अपना नाम तक लिखना भूल जाये, ये अघोषित आपातकाल नहीं तो और क्या हैं?

कैबिनेट की बैठक हो तो जो मन करें, वो ये करेंगे और इनके खिलाफ अगर किसी मंत्री ने थोड़ी सी भी बात की तो उनकी बात को हवा में उड़ा दो, उनकी इज्जत ही न करो, ये अघोषित आपातकाल ही तो हैं। भ्रष्टाचारियों को मौका दो,और जो ईमानदार हैं, उनके धुएं छुड़ा दो, कम से कम इंदिरा गांधी ने ऐसा तो नहीं किया था न, इसलिए मैं कहता हूं कि आपातकाल के बारे में किसी भी भाजपा नेता को, खासकर झारखण्ड के भाजपा नेता को बोलने का अधिकार नहीं हैं।

मैं तो कहूंगा, झारखण्ड के युवाओं से, जो ईमानदार है, कर्तव्यनिष्ठ हैं, जिनके हृदय में झारखण्ड के प्रति थोड़ा सा भी प्रेम हैं, वे आज ही उठ खड़े हो और इस  सरकार को उखाड़ फेकने का संकल्प लें, क्योंकि ये जनता की आवाज को दबाना चाह रही हैं, ये भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक लाकर, पूरे झारखण्ड की जनता के मनोभावना से खिलवाड़ किया हैं, आप इस अघोषित आपातकाल से लड़ने के लिए तैयार रहे, नहीं तो आनेवाली पीढ़ी आपको कभी माफ नहीं करेगी।

One thought on “झारखण्ड में अघोषित आपातकाल, CM के खिलाफ बोलना युवाओं को पड़ रहा महंगा

  • परम् आदरणीय हेमन्त सोरेन जी।आपके कार्यकाल में जो विकास और नीति थी वह बेहतर थी। मैं आपसे छतरपुर पलामू में मिला था और आपसे वार्तालाप भी हुई थी। अभी हाल के दिनों में जो राज्य के हालात है खास तौर पर पाठलगड़ी कोला वह बड़ा ही चिंतनीय है। अगली सरकार जो सम्भवतः आपकी होगी उस समय भी अगर यही हालत रहे तो अराजकता वाला स्तिथि हो जाएगा।
    पूजनीय शिबू सोरेन जिन्होंने राज्य के अलग करवाने के लिए अपना जवानी को लगा दिया क्या यही कल्पना किया था कि कुछ लोग हालात को बेकाबू कर दे । और इस लगे कि हम जंगल राज्य में है।
    सम्भालिए इसे पक्ष विपक्ष मिलकर , नही तो हालात बाद से बदतर हो जाएंगे।
    अश्विनी कुमार।छतरपुर पलामू

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