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पूरे झारखण्ड में आदिवासी जनसंगठनों का “अखबार बहिष्कार आंदोलन” प्रारम्भ

पूरे झारखण्ड में आदिवासी जनसंगठनों का आज से “अखबार बहिष्कार आंदोलन” प्रारम्भ हो गया हैं, आदिवासी जनसंगठनों ने जिन अखबारों के बहिष्कार का निर्णय लिया हैं, उनके नाम हैं – प्रभात खबर, दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण। इन अखबारों पर आरोप हैं कि ये आदिवासी विरोधी समाचारों को प्रमुखता देते हैं, तथा सीएम रघुवर भक्ति में लीन हैं, जिससे झारखण्ड को बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है।

आदिवासी जनसंगठनों से जुड़े कई नेता फिलहाल फेसबुक तथा अन्य सोशल साइटों के माध्यम से लोगों में जनक्रांति फैला रहे हैं, कि लोग आदिवासी विरोधी अखबार प्रभात खबर, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर को न खरीदें और न ही पढ़ें, इसका जितना हो सकें, बहिष्कार करें। इन जन नेताओं ने “अखबार बहिष्कार आंदोलन” के माध्यम से कहा है कि आदिवासी जनता, इन अखबारों को अनिश्चित काल के लिए अपने घरों में प्रवेश बंद कर दें, क्योंकि इससे आदिवासी समाज को ही खतरा उत्पन्न हो गया हैं।

बताया जाता है कि पिछले कुछ महीनों से इन अखबारों द्वारा चलाये जा रहे आदिवासी विरोधी समाचारों पर राज्य के कई विपक्षी दलों व आदिवासी जनसंगठनों के नेताओं की नजर थी, उनका कहना था कि वे सोच रहे थे, कि इन अखबारों में आज नहीं तो कल, सुधार अवश्य होगा, पर सच्चाई यह है कि इन अखबारों ने सुधरने का नाम नहीं लिया, वे निरन्तर रघुवर भक्ति में लीन हैं, तथा सरकार की स्तुति गा रहे हैं और आदिवासियों के जनहित से संबंधित समाचारों को प्रमुखता नहीं दे रहे, ऐसे में इनका बहिष्कार ही एकमात्र विकल्प बचा था।

सूत्र बताते है कि गत् 30 जुलाई को रांची स्थित भाकपा माले कार्यालय में एक विशेष बैठक हुई थी, जिसमें 40 से भी अधिक लोगों ने भाग लिया था, जिसमें विभिन्न आदिवासी जनसंगठनों तथा विपक्षी दलों के नेता शामिल थे। इसी बैठक में आदिवासी जनसंगठनों से जुड़े नेताओं ने 1 अगस्त से “अखबार बहिष्कार आंदोलन” चलाने का संकल्प लिया, जिसका सभी ने समर्थन किया।

इस बैठक में प्रमुख रुप से फादर स्टेन स्वामी, ज्यां द्रेज, थियोडोर कीड़ो, आलोका कुजूर, रोशन कीड़ो, सुनील मिंज, दयामनी बारला, प्रेमचंद मुर्मू, अनुपम केरकेट्टा, ललित मूर्म समेत कई गण्यमान्य लोग उपस्थित थे। हम आपको बता दें, इन अखबारों के आदिवासी विरोधी रवैये को लेकर, कई बार बैठके हुई थी, जिसे अंतिम रुप 30 जुलाई को दे दिया गया। लोग बताते है इस संबंध में पहली बैठक बिहार क्लब में हुई थी, जबकि दूसरी बैठक विधानसभा गेस्ट हाउस में, तीसरी ओर अंतिम बैठक भाकपा माले कार्यालय में संपन्न हुई।

सूत्र बताते है कि “अखबार बहिष्कार आंदोलन” को सफल बनाने के लिए कल देर रात से ही आदिवासी जन संगठनों से जुड़े लोग सक्रिय हो गये और अपने-अपने इलाकों में लोगों को जागरुक तथा इन अखबारों को न खरीदने और न पढ़ने का अभियान चलाना प्रारम्भ कर दिया, बताया जाता है कि आदिवासियों द्वारा तीन-तीन अखबारों का इतने बड़े पैमाने पर विरोध झारखण्ड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में पहली बार देखा जा रहा हैं, जो बताता है कि अब जनता भी ऐसे अखबारों को माफ करने के मूड में नहीं हैं।