रांची को लहकने से बचाने के लिए सीसीटीवी खंगालिये, कानून का राज स्थापित करिये

आप माने या न मानें, झारखण्ड में शासन नाम की कोई चीज ही नहीं, क्योंकि कहीं नक्सलियों ने, तो कही पत्थलगड़ी समर्थकों ने, तो कही असामाजिक तत्वों ने राज्य के विभिन्न शहरों व गांवों को अपने गिरफ्त में ले लिया हैं और ये जो चाहे वो कर रहे हैं और जनाब सीएम रघुवर दास को विकास, भ्रष्टाचार मुक्त, पारदर्शी शासन संबंधित बयानबाजी और विपक्षी दलों को गाली देने से उन्हें फुर्सत नहीं।

स्थिति ऐसी है कि आप अपने परिवार के साथ शहर या गांव में हैं और आपके साथ कब, क्या अनहोनी घटना घट जाये, इसकी संभावना यहां बराबर बनी रहती हैं, जरा देखिये कुछ दिन पहले कैसे ईद के समय में असामाजिक तत्वों ने भाजपाइयों को अपना निशाना बनाया और आज ये हाल है कि प्लाजा सिनेमा के पास स्थित मंदिर के पास प्रतिबंधित मांस फेंक दिया गया, जिसके कारण दो समुदायों में तनाव उत्पन्न हो गया और जमकर दोनों पक्षों के लोग एक दूसरे को देखने के लिए सड़कों पर उतर गये।

समाचार ये है कि इस घटना के दौरान डीएसपी को भी चोटे लगी और वे घायल हो गये,  हालांकि दोनों पक्षों के बुद्धिजीवियों ने सब्र से काम लिया और रांची लहकने से बच गई। अब सवाल उठता है, कि नगड़ी, इटकी और अब रांची का मिशन चौक। सवाल उठता है कि ये प्रतिबंधित मांस मंदिरों में ही क्यों दिखाई पड़ता हैं? सवाल उठता है कि ये कौन लोग हैं, जो राज्य को अशांत बनाना चाहते हैं? राज्य की खुफिया विभाग क्या कर रही हैं? आखिर ऐसे लोग जो अमन और शांति देखना पसंद नहीं करते, उन्हें सलाखों के पीछे ढकेलने की जिम्मेवारी किसकी हैं?

आखिर ये कौन लोग हैं? जो जरा सी बातों को लेकर हंगामा खड़ा कर देते हैं, और अमनपसंद लोगों की जिंदगी को नर्क में झोंक देते हैं? जरा सोचिये अगर ये असामाजिक तत्व अपने मकसद में कामयाब हो जाते, तो रांची का क्या हाल होता? उन बच्चों के माता-पिता पर क्या गुजर रही होती, जिनके बच्चे इस इलाके के स्कूलों में पढ़ रहे होते हैं या जो लोग मनोरंजन के लिए यूनियन क्लब या प्लाजा सिनेमा का रुख करते हैं?

हमारा मानना है कि इस पूरे प्रकरण के लिए यहां का जिला प्रशासन दोषी है, जिसने ईमानदारी से राज्य के प्रमुख इलाकों में लगे सीसीटीवी को या तो खंगाला नहीं, या उसकी रांची को शांत रखने में दिलचस्पी नहीं, अगर सचमुच में सीसीटीवी को खंगाला जाय और जो लोग गलत हैं, चाहे वे कोई हो, उन पर कानून का डंडा बरसाया जाय, तो फिर हमें नहीं लगता कि किसी की हिम्मत होगी कि वो रांची या झारखण्ड को अशांत बनाने की कोशिश भी करेगा।

ये शांति समिति की बैठक और जिला प्रशासन की विशेष बैठक करने से कुछ नहीं होगा, ये जब होगा तो कानून का शासन स्थापित करने से होगा, और सच्चाई यहीं है कि यहां सरकार भी नहीं चाहती कि यहां कानून का शासन स्थापित हो, क्योंकि जैसे ही कानून का शासन होगा, समझ लीजिये, छीटें तो उन पर भी पड़ेंगे।

अंजुमन इस्लामिया के महासचिव मोख्तार अहमद ने वरीय पुलिस अधीक्षक रांची को पत्र लिखकर इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो, आनेवाले समय में विभिन्न धर्मों के पर्व-त्यौहार शांति से संपन्न हो, इसके लिए आज की घटना में संलिप्त असामाजिक तत्वों पर कड़ी कारर्वाई करने का उनका अनुरोध काबिले तारीफ हैं।

उधर घटना की जानकारी मिलते ही प्रशासन का शीघ्रता के साथ घटनास्थल पर पहुंचना और माहौल को काबू करने की योजना की भी प्रशंसा करनी होगी. महावीर मंडल के अध्यक्ष ललित ओझा, पूर्व पार्षद राजेश गुप्ता, आलोक दूबे, जयसिंह यादव और भी जिन लोगों ने माहौल को बेहतर बनाने में विशेष भूमिका निभाई, विद्रोही 24.कॉम उन सब का अभिनन्दन करता है।