अपनी बात

अमित शाह को ‘चाणक्य’ बतानेवालों, याद रखो सत्ता को खाक में मिलाने के लिए चाणक्य ने कभी रात का सहारा नहीं लिया

लोग लाख महाराष्ट्र की राजनीति पर देश के गृह मंत्री अमित शाह या पीएम मोदी को महानता की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दें। लोग लाख देश के गृह मंत्री अमित शाह के इस तिकड़म को “चाणक्य नीति” का खिताब दे दें, पर जो राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी है, उसे इसे “कायरता की राजनीति” अथवा “राजनीति में कायरता का प्रवेश” छोड़ दूसरी चीजों का खिताब देने से बचेंगे। ऐसे तो महाराष्ट्र की राजनीति में क्या होने जा रहा हैं? ऊंट किस करवट बैठ रहा हैं?

इसको लेकर देश के सभी राजनीतिक पंडितों की निगाहें महाराष्ट्र पर लगी थी, पर जिस प्रकार से महाराष्ट्र में रात के अंधेरे में राजनीतिक बिसात देश की महत्वपूर्ण पार्टी ने बिछाई, वह मुंबई में बैठे फिल्म निर्माताओं-निर्देशकों को भी मात दे गई। आपने ऐसी कई फिल्में देखी होगी, जिसमें एक राजा है, राजा को सिंहासन पर से हटाने के लिए राजा का ही मंत्री तिकड़म भिड़ाता हैं और फिर रात के अंधेरे में राजा को मारकर खुद वह मंत्री सिंहासन पर बैठ जाता हैं, या बैठने की कोशिश करता है।

कुछ इसी प्रकार की मिलती जुलती कहानी महाराष्ट्र की राजनीति में आज दिखाई दी, जब रात के अंधेरे में केन्द्र सरकार महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाने का निर्णय ले लेती हैं, वह भी उस वक्त जब सारे चैनल रात में अपने रिकार्डेड न्यूज ही दिखाते हैं तथा सुबह करीब साढ़े पांच बजे नये न्यूज के साथ आते हैं।

बड़ी चुपके से रणनीति (उनके अनुसार जो समझते है कि यह रणनीति चुपके से बनाई गई, जबकि जो राजनीतिक पंडित हैं, वे जानते है कि यहां कोई संतों की जमात राजनीति नहीं कर रही, ये छंटे हुए लोग हैं, जो सत्ता की प्राप्ति के लिए वह हर अच्छी चीजों का गला घोंट सकते हैं, जो उनके रास्ते में आयेगी) बनाई जाती है, चूंकि महाराष्ट्र का राज्यपाल भी विशुद्ध भाजपाई है, वह बड़े अदब से रात में मिली जानकारी के अनुसार, राजभवन में सारी व्यवस्थाएं करवाता है।

और लीजिये, आज सुबह-सुबह 5.47 बजे महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाया गया और उसके बाद नई सरकार अस्तित्व में आ गई, आनन-फानन में राजभवन में देवेन्द्र फडणवीस फिर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और अजीत पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। बताया जाता है कि मात्र 13 मिनट में ही महाराष्ट्र की राजनीति की सूरत बदल गई। अजीत पवार के अनुसार एनसीपी के धाकड़ नेता शरद पवार की भी इसमें सहमति थी।

सच पूछिये, अगर इसमें सर्वाधिक नुकसान और जिनका सर्वाधिक मानसिक शोषण किया गया, तो वह है महाराष्ट्र की जनता, और जो सर्वाधिक मालामाल हुआ तो वह हैं भाजपा और एनसीपी। इसमें कोई दो मत नहीं कि महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन को राज्य में सत्ता की बागडोर सौंपी, पर अचानक शिवसेना के अंदर जगी मुख्यमंत्री पद के लालच ने इस “कायरता की राजनीति” को जन्म दे दिया, इसके लिए शिव-सेना को कभी माफ नहीं किया जा सकता।

शिव सेना का अचानक भाजपा से बिगाड़ तक कर लेने की घोषणा, उसके अंदर सत्ता प्राप्ति के लिए अचानक कांग्रेस और एनसीपी की ओर किया गया रुख, भाजपा के क्रोध को भड़काया। शिव-सेना समझ रही थी कि ये आडवाणी और वाजपेयी की पार्टी हैं, जो पूर्व में शिव-सेना के छोटे-मोटे क्रोध को शांत कराने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाया करते थे, आडवाणी और वाजपेयी तो शिव-सेना को भाजपा का छोटा भाई भी मानते थे, क्योंकि हिन्दुत्व उन्हें एकता के सूत्र में बांधा करती थी।

फिलहाल भाजपा को लगता है कि हिन्दुत्व का एकमात्र झंडाबरदार वहीं हैं, बाकी उसके सामने सभी बौने हैं, और इसी आधार पर उसने शिव-सेना को भी बौना बना दिया, हालांकि शिव-सेना को मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने एक संवाद के द्वारा बताने की कोशिश की थी कि वे जब चाहे, जब सरकार बना सकते हैं, क्योंकि बहुमत प्राप्त करने लायक विधायक उनके संपर्क में हैं, पर शिवसेना को लगा कि ये गीदड़भभकी है।

इधर देवेन्द्र फड़नवीस और महाराष्ट्र की राजनीति को एक सोची-समझी रणनीति के तहत अपने ढंग से भाजपा ने नचाया, जब उसने कह दिया कि उसके पास बहुमत नहीं, वह सरकार नहीं बनायेगी, और लीजिये इसी में शिव-सेना नाच गई और देखते ही देखते भाजपा के चाल में फंस गई। इधर जिनको लेकर शिवसेना ज्यादा उछल रही थी, उस एनसीपी के शरद पवार को अपने जाल में फंसाने के लिए केन्द्र ने कई तिकड़मों का सहारा लिया।

भाजपा भी जान रही थी, कि एनसीपी कितना भी पापड़ बेले, पर पी चिंदम्बर के वर्तमान हाल को वह भूल नहीं सकते, और न एनसीपी नेता शरद पवार चाहेंगे कि उनका भी हाल वैसा हो, इसलिए एनसीपी ने शिवसेना को हर मुद्दे पर लटकाये रखा, हाल ऐसा कर दिया कि शिवसेना और भाजपा में ऐसी स्थिति बन गई कि दोनों एक दूसरे के आगे तलवार लेकर खड़े हो गये, अमित शाह ने इसे अपना अपमान समझा और शिवसेना को सबक सीखाने की ठानी।

चूंकि मीडिया तो आजकल क्या हैं? सबको पता है, कि वह किसके आगे नृत्य कर रही हैं, उसे सत्य का आभास नहीं हुआ या जानकारी भी हो तो उसकी हिम्मत नहीं कि सारा मामला निबटने के पूर्व वह समाचार को प्रकाशित या प्रसारित कर दें, उसने अपनी गोपणीयता निभाई और लीजिये मामला पूरा, कायरता की राजनीति में शिव-सेना के सपने शहीद हो गये, शहीद हो गये शिव सेना के सैनिक और एनसीपी ने बाजी मार ली।  

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अभी केन्द्र में पांच साल मोदी सरकार हैं, इसलिए आनेवाले भविष्य में एनसीपी के सारे विधायक अगर भाजपाई विधायक में कन्वर्ट नहीं हो गये तो कहियेगा, क्योंकि भाजपा का एक ही कार्यक्रम हैं, पूरे देश व राज्य से अपने शत्रुओं को नामो-निशां मिटा देना, यानी जो उसके सामने आयेगा, वो जायेगा, भले वो कोई हो, एनसीपी हो, शिव-सेना हो या और कोई, ये अलग बात है कि बिहार में भाजपा की नीतीश के आगे नहीं चलती, नहीं तो झारखण्ड में उसने झाविमो को तो एक तरह से खत्म ही कर दिया।

ये अलग बात है कि झाविमो के बाबू लाल मरांडी आज भी भाजपा के खिलाफ ताल ठोक कर लगे हैं, पर वे भी दावे से नहीं कह सकते कि जब चुनाव परिणाम आयेंगे तो उनके नव-निर्वाचित विधायक झाविमो में ही रहेंगे, वे कब उछलकर भाजपा के दरवाजे पर ठुमरी गाने लगेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता, इसलिए अभी तेल देखिये,तेल का धार देखिये, “कायरता की राजनीति” देखिये, राजनीति में शुचिता एवं शुद्धता की बात करनेवालों का मिजाज देखिये।