झारखण्ड सिविल सोसाइटी ने उठाया सवाल, प्रभात खबर व जनता बताएं कि यह इंटरव्यू है या विज्ञापन?
झारखण्ड सिविल सोसाइटी ने दो पंक्तियां लिखी हैं और प्रभात खबर का वह पेज आम जनता के पास रख दिया, जो आज सबेरे से चर्चा में हैं, पंक्तियां हैं – “यह इंटरव्यू है या विज्ञापन? शायद प्रबुद्ध लोग, मीडिया वाले या संपादक लोग उत्तर दे सकें।” भाई ये सवाल तो समीचीन है, लोगों को इस पर अपनी राय खुलकर रखनी चाहिए, अगर वे सचमुच लोकतंत्र को जीवित देखना चाहते हैं तो।
नहीं तो जैसा चल रहा हैं, चलने दीजिये, भारत या झारखण्ड बर्बाद होगा, तो जैसे सब मरेंगे, हम भी मर जायेंगे, क्योंकि फिलहाल अपने देश में इसी नीति से सभी चल रहे हैं, जिसका फायदा समाज के विभिन्न वर्गों में रह रहे धूर्त लोगों की टीम उठा रही हैं और ये कब तक उठाते रहेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि जिस समाज में मौनधारण करनेवाले व्रतधारियों की संख्या बढ़ जाती हैं, वहां ऐसे ही धूर्तों का शासन स्थापित हो जाता है।
जरा देखिये न, आज प्रभात खबर ने क्या किया? झारखण्ड के महान मुख्यमंत्री (प्रभात खबर की नजर में) रघुवर दास के चरणों में डेढ़ पेज समर्पित किये है, कहने को तो साक्षात्कार हैं, पर जो अखबार का एबीसीडी भी जानता हैं, उसे ये समझने में देर नहीं लगेगी कि ये विशुद्ध विज्ञापन हैं, जो जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए अखबार वाले दिया करते हैं, हालांकि सुनने में आया है कि चुनाव आयोग की टीम पेड न्यूज को रोकने के लिए एक टीम भी बनाती हैं, पर उस टीम से पूछिये कि अब तक जितने भी चुनाव हुए उसमें तुमने कितने पेड न्यूज पकड़े, उत्तर होगा – एक भी नहीं। हो सकता है कि इनकी नजर में झारखण्ड में रामराज्य स्थापित हो।
इस डेढ़ पेज के कथित साक्षात्कार को उपर से नीचे देखेंगे तो साफ लगेगा कि इसमें रघुवर भक्ति कूट-कूट कर भरी गई हैं, जैसे रघुवर दास के मुंह से निकलवाया गया कि “आजादी के बाद 67 वर्षों में जो नहीं हुआ, हमारी सरकार ने पांच साल में किया” यानी घमंड इतना की यह व्यक्ति क्या बोल रहा हैं, उसे पता नहीं चल रहा, उसने अपने ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल को भी चुनौती दे डाली, कि उनके शासनकाल में भी ऐसा नहीं हुआ, जैसा ये आदमी कर दिया।
जबकि झारखण्ड की जनता अच्छी तरह से जानती है कि इस व्यक्ति ने क्या किया? इसने हजारों स्कूलों में ताले लटकवा दिये, गांव-गांव में शराब खुले, इसकी व्यवस्था करा दी, बलात्कार की शिकार बेटी, जिसे जिन्दा जला दिया गया, जब वह न्याय मांगने इस सीएम से गया तो इस व्यक्ति ने भरी सभा में उसे दुत्कारा, उसकी इज्जत लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिसके शासनकाल में गुमला में एक रुपये की साधारण दवा न मिलने से एक बच्चे ने दम तोड़ दिया, बाद में उसे एक एंबुलेंस तक नहीं मिला वो पिता अपने बच्चे के शव को कंधे पर लेकर चल दिया और वह व्यक्ति कह रहा कि उसने विकास की गंगा बहा दी।
जातीयता का नंगा नाच, इस व्यक्ति ने ऐसा किया कि जातीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए इसने छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र यहां तक की दिल्ली तक की दौर लगा दी, इसी के पार्टी के धनबाद जिला मंत्री कमला ने इसके चहेते ढुलू पर यौन शोषण का आरोप लगाया, और उसे यह बचा लिया, यही नहीं इस व्यक्ति ने एक महिला के हत्यारे के मास्टर माइन्ड को भाजपा से टिकट दिलवाया, दवा घोटाले के आरोपी को टिकट दिलवाया।
आज भी झूठ बोलता है कि नक्सलवाद राज्य से खत्म हो गया, और चुनाव आयोग उसके इस कथन पर बार-बार अंगूलियां उठा रहा और आज के अखबारों की सूर्खियां जिसमें चंदवा में नक्सलियों ने चार पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिये, इसके दावें की पोल खोलकर रख दे रहा हैं और यह कह रहा कि उसने विकास की गंगा बहा दी, पूरे राज्य में कनफूंकवें जैसे चाहे, वैसे सभी अधिकारियो को नचा रहे हैं अगर इस व्यक्ति के शासनकाल की खामियों पर हमें लिखने को मौका मिले, तो हम इस पर रामायण जैसी महाकाव्य लिख दें।
यह व्यक्ति तो हमारे भगवान हनुमान को भी अपमानित करने से बाज नहीं आता, कह देता है कि वह हनुमान की तरह जनता की सेवा करते हैं, जबकि इसके आस-पास कनफूंकवों की फौज रहती है, जबकि हमारे प्रिय हनुमान के साथ जाम्बवन्त जैसे महाज्ञानी लोग रहा करते थे, जिन्होंने हनुमान को वीर हनुमान बना दिया।
झारखण्ड सिविल सोसाइटी ने जिस प्रकार से ये सवाल उठाए हैं, वो ऐसे ही नहीं हैं, उसमें अक्षरशः सत्य प्रतिष्ठित हो रहा हैं। बुद्धिजीवियों का तो कहना है कि अखबार का आज का अंक स्पष्ट करता है कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले, जिस प्रकार से रघुवर सरकार ने दो-दो पेज के विज्ञापन, पेड न्यूज की तरह संपादकीय पेज पर दिया करते थे, उसका ही ये असर है कि साक्षात्कार के रुप में ये विज्ञापन सदृश साक्षात्कार जनता के समक्ष पेश हैं।
शुरुआत प्रभात खबर ने की हैं, जल्द ही नमक का कर्ज अन्य अखबार भी उतारेंगे, क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा झारखण्ड में चुनाव की घोषणा के पहले विज्ञापन की उदारता ऐसे ही थोड़े ही दिखाई गई थी, अगर ये अपना काम नहीं करेंगे, सरकार की जय-जय नहीं करेंगे, उनका सकारात्मक पक्ष नहीं दिखायेंगे तो ये सरकार भी उन्हें बुखार छुड़ाकर रख देंगी, क्योंकि इनके जो मालिक के और धंधे हैं, और उस धंधे में जो छेद हैं, उसे बड़ा करने में इन महापुरुषों को कितना देर लगेगा, मतलब समझे कि और समझाएं।
और अंत में नीचे एक अखबार का कतरन देखिये, जो आज के ही हिन्दुस्तान का है, ये महाशय और इनके आराध्य नरेन्द्र मोदी, जो बार-बार ये कहते नहीं थकते कि उन्होंने देश के गांव-गांव में बिजली पहुंची दी, पलामू के चिनिया प्रखण्ड के सिदे, पाल्हे, टाडिल सहित कई ऐसे गांव हैं, जहां बिजली पहुंची ही नहीं, लोग आज भी ढिबरी युग में हैं।
सच्चाई तो यह भी है कि रांची में ही कई मुहल्ले ऐसे हैं, जहां इसी सरकार के नगर विकास मंत्री सीपी सिंह के पास जाकर लोग नाक रगड़ते है कि उनके मुहल्ले में बिजली के खम्भे गड़वाइये, पर उनलोगों की बात हवा में उड़ा दिया जाता हैं, उस इलाके के लोगों की बातों को हवा में उड़ाया जाता हैं, जहां के लोग नगर विकास मंत्री सीपी सिंह (भाजपा प्रत्याशी) को भारी मतों से जीतवाते हैं।
अब चलते-चलते पूछ लीजिये इस महान मुख्यमंत्री रघुवर दास से कि दिसम्बर 2018 तो बीत गया, आपके उस वायदे का क्या हुआ कि अगर पूरे झारखण्ड में 24 घंटे बिजली नहीं दे सका तो वोट मांगने नहीं आउंगा, क्या 24 घंटे बिजली आ गई? अगर नहीं तो फिर वह किस मुंह से आपके पास वोट मांगने आ रहे? अरे भाई जो वायदा करो, उसे निभाओ तो, अरे-अरे लगता है कि हम भूल गये कि वह राजनीतिज्ञ है, राजनीतिज्ञों को तो वादे करना और उसे भूल जाने की विशेष छूट मिली हुई है।