अपनी बात

ये वहीं लोग हैं, जिन्होंने भाजपा का झारखण्ड में सत्यानाश कर दिया, जहां से भाजपा अब कभी खड़ी नहीं हो सकती, जिसका टेटुआ झामुमो के सामान्य नेताओं के हाथों में पहुंच गया

ये वहीं लोग हैं, जिन्होंने भाजपा का झारखण्ड में सत्यानाश कर दिया, जहां से भाजपा अब कभी खड़ी नहीं हो सकती, जिसका टेटुआ झामुमो के सामान्य नेताओं के हाथों में पहुंच गया। ये वे लोग हैं जिन्होंने अंसख्य समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं के सपनों को रौंद डाला। ये वे लोग हैं, जो यह मानने को तैयार ही नहीं कि इनके लालच ने भाजपा को कहीं का नहीं छोड़ा।

पहचानिये इसी फोटो में कर्मवीर सिंह हैं, जिसे प्रदेश में संगठन को मजबूत करने का जिम्मा सौंपा हुआ है और इस व्यक्ति ने ऐसा संगठन खड़ा कर दिया है कि इसके संगठन मंत्रित्व काल में लोकसभा की एक भी आदिवासी सीट भाजपा के पास नहीं हैं। इसी फोटो में आदित्य साहू और प्रदीप वर्मा जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपनी स्वार्थ सिद्धि में ही ध्यान लगाया, खुद को राज्यसभा में फिट करवा लिया और समर्पित कार्यकर्ताओं को ठेंगा दिखा दिया कि तुम्हारी औकात सिर्फ हमारी पालकी ढोने से अधिक कुछ की नहीं।

इसी पार्टी में दूसरी ओर कड़िया मुंडा जैसे वयोवृद्ध भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता-नेता है। जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के साथ काम किया। कभी भी अपने हृदय में किसी के प्रति वैमनस्यता नहीं रखी और न ही किसी के साथ दुर्भावना। आज उनकी स्थिति यह है कि उनके इलाके से अर्जुन मुंडा की जो हार हुई हैं, उस हार से वे इतने व्यथित है कि उस हार को उनके चेहरे को देखकर अनुभव किया जा सकता है।

यही नहीं जब से उन्होंने भाजपा की सभी जनजातीय सीटों पर हार की खबर सुनी है, वे अपने आप में नहीं हैं। लेकिन जरा आदित्य साहु और प्रदीप वर्मा जैसे लोगों के चेहरे को देखिये। आपको पता लग जायेगा कि इनके मन में क्या चल रहा है? दुख हैं या स्वआनन्द पाने तथा सत्ता सुख कामना की पराकाष्ठा। एक लोकोक्ति है न – भाड़ में जाये दुनिया, हम बजाये हरमोनिया। यह लोकोक्ति इन दोनों पर फिट बैठती है।

आज भी जो समर्पित कार्यकर्ता है, वे तो सीधे यही पुछते है कि इन दोनों ने भाजपा के लिए किया क्या है? और भाजपा में इनकी आयु कितनी है? कि ये बड़ी जल्दी राज्यसभा की दहलीज तक पहुंच गये। कारण तो संगठन मंत्री कर्मवीर सिंह ही बतायेंगे, लेकिन वे बतायेंगे क्यों? मजे सिर्फ केवल कर्मवीर सिंह ने ही सिर्फ थोड़े लिये हैं। हर लोग लेते रहे हैं।

यही हाल धनबाद लोकसभा सीट पर ढुलू महतो जैसे लोगों को कैंडिडेट बनाकर भाजपा के इन धुरंधरों ने किया। हालांकि धनबाद सीट पर भाजपा जीत गई। लेकिन इसका खामियाजा भाजपा को आनेवाले कई समय तक भोगना पड़ेगा। शायद भाजपा के आकाओं को पता नहीं। भला गरीबों की आहें कभी बेकार गई है। आप केवल अपनी गड़बड़ियों को केवल यह कहकर सत्य कहेंगे कि दूसरे भी ऐसा ही किया करते हैं।

आज कौन ऐसा भाजपा का कार्यकर्ता है। जो दुखी नहीं हैं। वो कौन ऐसा कार्यकर्ता नहीं हैं, जो भाजपा के इस हाल से स्वयं को कैसे उबारे, इस पर उसका ध्यान है। लेकिन उसे कही राह नहीं दिख रहा। पूरी भाजपा को लालच ने जकड़ लिया है। सभी की एक ही चाहत हैं कि शार्ट कट मारों, जातिवाद करो और राज्यसभा में पहुंच जाओ। जैसे दीपक प्रकाश पहुंच गये, जैसे आदित्य साहु पहुंच गये, जैसे प्रदीप वर्मा पहुंच गये, अब अगला कौन? तो रिजल्ट सभी को मालूम है कि जो इन्हीं के पदचिह्नों पर चलेंगे, उन्ही का बेड़ा पार होगा। नहीं तो कड़िया मुंडा की तरह व्यथित होता रहेगा।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो 2019 में झारखण्ड गवां चुकी भाजपा, इस बार 2024 में भी झारखण्ड गवांयेगी, क्योंकि उसके पास कोई विकल्प ही नहीं। उसे लगता है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हेमन्त सोरेन को किनारे लगा देंगे तो वे झारखण्ड जीत जायेंगे, लेकिन भाजपा को नहीं मालूम कि झारखण्डियों को पता है कि भ्रष्टाचार का असली नायक कौन है? वो कौन नेता हैं जो भारी भरकम हाथी भी उड़ाने में खुद को फिट रखता है।

कई बार तो सरयू राय ने उक्त नेता की ट्विट कर पोल भी खोल दी हैं। हालांकि उसे बचाने की भरपूर प्रयास किया गया। लेकिन जनता तो जनता है। अगली बार फिर से झामुमो की सरकार झारखण्ड में स्वागत करने के लिए तैयार रहिये, क्योंकि मायूस और दुखी कार्यकर्ताओं के समूह जीत नहीं, सिर्फ और सिर्फ हार ही स्वीकार करते हैं और ये दुखी कार्यकर्ताओं का समूह किधर हैं, वो झारखण्ड के राजनीतिक पंडित खुब जानते हैं।