अपनी बात

क्या CM साहेब, सब कुछ ठीक हैं न, गणतंत्र दिवस के दिन स्वतंत्रता दिवस की बधाई समझ में नहीं आया

हमारे होनहार मुख्यमंत्री इन दिनों बहुत ही काम-धाम में लगे हैं, वे विकास कार्यों में इतने डूबे हुए हैं कि वे क्या बयान दे रहे हैं? इसका भी सुध नहीं रहता, न्यू झारखण्ड बनाने के चक्कर में वे गणतंत्र दिवस को स्वतंत्रता दिवस में परिवर्तित कर देते हैं, शायद उन्हें लगता हो कि जब न्यू झारखण्ड बनाना ही हैं तो हर चीज ही न्यू-न्यू हो जाये, इसलिए वे बड़ी मेहनत कर रहे हैं तथा उनके साथ चलनेवाले लोग भी बड़ी ही सेवाभाव से उनके आगे-पीछे लगे रहते हैं, ताकि न्यू झारखण्ड का लाभ वे भी बड़े प्रेम से उठा सकें।

अब जरा देखिये, जनाब राज्य के होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास, कल दुमका में थे, मुख्यमंत्री रघुवर दास के दुमका प्रवास को देखते हुए, उनके लोगों ने उप-राजधानी दुमका में स्थित सभी पत्रकारों को अपने पास बुलाया और लगे बात करनें, इसी बीच जनता को बधाई देने का भी काम करने लगे, बधाई देने में उन्होंने पूरे देश में रह रहे झारखण्डियों को बधाई देना शुरु कर दिया, और कह डाला कि 70 वें स्वतंत्रता दिवस की बधाई स्वीकार करें, पर आज तो हैं गणतंत्र दिवस, तुरंत उनके चाहनेवाले मीडियाकर्मियों ने टोका-टाकी की, मुख्यमंत्री जी, आपकी जुबान फिसल गई, तड़ाक से मीडियाकर्मियों के कैमरों को ऑफ किया गया।

बेचारे मुख्यमंत्री क्या करते, शर्म से मुंह छुपाते हुए, हंसते हुए कहते है कि इतना न माथा…, अरे चलो चाय पिलाओ, तब बाद में बातें करते हैं। आखिर ऐसा क्यों हुआ, मीडिया से बात करते हुए उनका मस्तिष्क किसी दूसरे जगह क्यों चला गया, सब कुछ ठीक है न, या राज्य से सत्ता जा रही है, उसका असर यहां देखने को मिल रहा है, या भाजपा की झारखण्ड में आसन्न हार की चिन्ता ने उन्हें सताना शुरु कर दिया है।

बुद्धिजीवी बताते हैं कि ऐसी घटनाएं तभी होती है, जब व्यक्ति करता कुछ और सोचता कुछ है, इसका मतलब है, मुख्यमंत्री को बात समझ में आ गई है कि अब वे कुछ भी कर लें, ये उनका मुख्यमंत्री के रुप में अंतिम झंडोत्तोलन है, फिर दुबारा ऐसा करने को उन्हें नहीं मिलेगा, ऐसे में गणतंत्र दिवस की बधाई के जगह पर स्वतंत्रता दिवस निकलना ही था, और इस गलती को झेंपते हुए चाय का बहाना एक तरह से मुख्यमंत्री के लिए ठीक ही हैं। इसके अलावे उनके पास चारा ही क्या था?