पुरस्कार मतलब सत्ता का खिलौना, जिसे समय-समय पर सत्ता के लोग उन्हें थमाते हैं, जिन्होंने उनकी कभी मदद की

पुरस्कार क्या है? सही बोले तो सत्ता का खिलौना, जिसे समय-समय पर सत्ता के लोग उन्हें थमाते हैं, जिन्होंने उनकी कभी मदद की, या आनेवाले समय में उनसे मदद की आस है या उनको पुरस्कार देने से येन-केन-प्रकारेण आनेवाले समय में फायदा होगा। आजकल कुछ अखबारवाले भी हैं, जो इस प्रकार के धंधे में लिप्त हैं, वे करते क्या हैं?

वे इसके लिए पुरस्कार या सम्मान समारोह आयोजित करते हैं, और जिन-जिन शैक्षिक, स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी संस्थाएं, औद्योगिक या विभिन्न सामाजिक संस्थाएं उन्हें लाभ पहुंचाई हैं, अच्छी खासी रकम विज्ञापन के नाम पर उनके संस्थानों को दिलवाई या दी हैं, वे पीतल के टूकड़ें और शॉल थमाने का काम पुरस्कार व सम्मान के नाम पर करते हैं, तथा इन खबरों को प्रमुखता से अपने अखबारों में स्थान भी देते हैं।

जिसे ये लोग बड़ी ही प्रेम से अपने कार्यालयों तथा घरों के प्रमुख स्थानों पर टंगवाते हैं, यह सोचकर कि वे समाज के कितने प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उनको खुद पता होता है कि जब वे घर से निकलते हैं, तो उनके अगल-बगल के लोग ही उनके घटियास्तर के व्यवहारों से उन पर थूकना ज्यादा पसंद करते हैं, पर क्या हैं, पुरस्कार भी धंधा है, इन्हें लेना है, उन्हें देना है, दोनों को अपना-अपना धंधा चलाना है, इसलिए ले और दे चलता है।

रांची में ही एक सज्जन है, जिन्हें पुरस्कार लेने की बड़ी लालसा रहती है, आजकल उन्होंने ये धंधा भी चालू कर दिया है, वे इसके लिए आयोजक भी ढूंढ लेते हैं और इन्हें आयोजक मिल भी जाते है, तथा ये बड़े ही धूम-धाम के साथ अपने इस तड़क-भड़क वाले कार्यक्रम में लगे हुए हैं, इन्हें सफलता भी मिल रही है, पर सच्चाई यह भी है कि खुद के समाज में इनकी इज्जत दो कौड़ी की भी नहीं है।

कुछ वर्ष पहले रांची के ही एक पत्रकार को भारत सरकार ने पद्मश्री का एवार्ड दिया था, जनाब जब रांची जंक्शन पर पदमश्री एवार्ड लेकर लौटे तो उनके स्वागत में गिनती के मात्र तीन लोग ही मौजूद थे, अब आप समझ लीजिये कि ऐसे एवार्डों की आम जनता के बीच में क्या अहमियत होती है?

रांची में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें पद्मश्री का एवार्ड मिला, जिससे पद्मश्री भी गौरवान्वित हो उठी, उनमें सांस्कृतिककर्मी मुंकुद नायक का नाम आप सम्मान से ले सकते हैं, आप डा. एस पी मुखर्जी का भी नाम सम्मान से ले सकते हैं, जिन्हें पद्मश्री देने की घोषणा की गई है, जिससे डा. एस पी मुखर्जी नहीं, बल्कि खुद पद्मश्री गौरवान्वित हुई है, ऐसे और कई लोग हैं, जिन्हें पद्मश्री मिला, जो इसके लायक थे, पर कुछ ऐसे लोग भी यहां है, जिन्हें दिया गया पर वे क्या थे? या क्या है? उसके लायक हैं भी या नहीं, इसका चिन्तन वे खुद करें तो ज्यादा बेहतर होगा।

इधर दस-पन्द्रह सालों में हमने देखा और महसूस किया है कि पद्मश्री, पद्मविभूषण और भारत रत्न देने की जो प्रथा है, वो अजीबोगरीब स्थिति में पहुंच गई है, कब किसको क्या मिल जायेगा? कुछ कहा नहीं जा सकता, जिसे लेकर अब कई राजनीतिक टिप्पणियां भी होने लगी है, कुछ साल पहले इसे लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती और तत्कालीन राज्यसभा सांसद शरद यादव ने भी कड़ी टिप्पणी की थी, पर अब लगता है कि इन टिप्पणियों का भी केन्द्र सरकार पर प्रभाव नहीं पड़ता।

हमें लगता है कि ये चबेना की भांति जो पुरस्कार देने की घोषणा की शुरुआत हुई है, उससे इन पुरस्कारों की चमक भी धीमी पड़ेगी और कालांतराल में लोग इसे लेने में भी हिचकिचायेंगे। हमारे अनुसार तो सबसे बड़ा पुरस्कार तो लोगों के दिलों में जगह बनाने की है, ये पीतल के टूकड़ें या कागज के टूकड़े तो बेकार हैं, जरा देखिये न भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद और हाल ही में दिवंगत हुए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जैसे लोगों को आप कितना भी पुरस्कार दे दें, क्या फर्क पड़ता है?

ऐसे लोग तो पुरस्कारों से भी परे हैं, जनता के दिलों पर राज करते हैं, कभी मर ही नहीं सकते, कहा भी जाता है कि जीवित कौन है?  कहा जाता है कि जिसकी कीर्ति जीवित है, वहीं जीवित है, और ये कीर्ति किसी पुरस्कार की मोहताज नहीं होती, कोई बताएं हमारे भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला, लक्ष्मीबाई के आगे कौन सा पुरस्कार टिकता है।

अरे पुरस्कार पाने की इच्छा रखनेवालों ध्यान दो, महात्मा गांधी को ‘महात्मा’ की उपाधि रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने दी थी, ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दी थी, ब्रिटिश सरकार ने नहीं दी थी, इसलिए पुरस्कार कौन दे रहा है? उसकी मंशा क्या है? कम से कम इस पर विचार तो करो। यहीं नहीं, जो पुरस्कार तुम्हें मिल रहा हैं और जिस पुरस्कार को तुम्हारे पहले जिन्होंने प्राप्त किया है? क्या तुम उनके समकक्ष या थोड़ा भी उनके चरित्र का कुछ अंश तुममें मौजूद हैं, अगर ऐसा हैं तब उक्त पुरस्कार को ग्रहण करो, नहीं तो तुम्हें यहीं पुरस्कार समाप्त भी कर देगी, ये जान लो और फिर कोई सरकार तुम्हें बचा भी नहीं पायेगी।