राजनीति

भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल को लेकर रघुवर सरकार के खिलाफ भारी जनाक्रोश

लीजिये, जिस बात का डर था, वहीं हो गया। भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल को लेकर पूरा झारखण्ड उलगुलान की तैयारी में हैं। आज भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल के विरोध में आदिवासी जन परिषद ने रांची के अलबर्ट एक्का चौक पर मुख्यमंत्री रघुवर दास का पुतला फूंका, तथा इस कानून को आदिवासी एवं मूलवासियों के लिए मौत का कुआं बताया। आदिवासी जन परिषद के नेता प्रेमशाही मुंडा का कहना था कि इससे राज्यवासियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा, इसलिए इस बिल का प्रत्येक झारखण्डवासियों को विरोध करना जरुरी हो गया है।

उधर दुसरी ओर भूमि अधिग्रहण बिल के संशोधन पर मंजूरी का आदिवासी सेंगेल अभियान ने विरोध किया है तथा इस संशोधन के खिलाफ 18 जून को झारखण्ड बंद का ऐलान किया है। आदिवासी सेंगेल अभियान के अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने राज्य के सभी दलों से कल के बंद को समर्थन देने का अनुरोध किया है, पर सालखन मुर्मू के एकला चलो के नारे को समर्थन शायद ही मिले, तथा कल का बंद शायद वैसा असरदार न हो, जैसा कि आनेवाले समय में होने की संभावना है।

इधर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता एवं नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन ने कल राज्य के सभी प्रमुख विपक्षी दलों की बैठक अपने आवास पर बुलाई हैं, जिसमें आंदोलन के स्वरुप पर विचार किया जायेगा, तथा आगे की रणनीति भी तय की जायेगी। सूत्र बता रहे है कि जैसे-जैसे समय बीतेगा, वैसे-वैसे राज्य में आंदोलन, धरना, प्रदर्शन और बंद का माहौल बनता चला जायेगा।

पूरे राज्य में भूमि अधिग्रहण संशोधन को लेकर भारी नाराजगी देखी जा रही हैं। राजनीतिक पंडितों की माने तो पूर्व से ही राज्य में रघुवर सरकार के प्रति लोगों का नजरिया सकारात्मक नहीं रहा हैं, ऐसे भी भाजपा के ज्यादातर कार्यकर्ता मुख्यमंत्री रघुवर दास की कार्यशैली से नाराज हैं, और इधर विपक्षी दलों का भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल को लेकर कड़ा रुख ये बताने के लिए काफी है कि राज्य में रघुवर सरकार के लक्षण ठीक नहीं दिखाई दे रहे हैं।

सूत्र बता रहे हैं कि झारखण्ड के ग्रामीण इलाकों में भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल के खिलाफ जबर्दस्त तैयारी चल रही हैं। विरोध का खाका तैयार कर, उसे अमलीजामा पहनाया जा रहा हैं। लोग बता रहे है कि ये आंदोलन सीएनटी-एसपीटी आंदोलन से अलग प्रकार का होगा। जो हिंसक रुप भी धारण कर सकता है।

सूत्रों की माने तो गांव-गांव में पारंपरिक मुंडा, मानकी, माझी, परगनैत, डोकलो सोहोर, पाहन-पुजार, कोटवार, सरना समितियों, झारखण्डी-आदिवासी नामधारी पार्टियों, सदान समितियों के बीच वार्ता और संवादों का दौर जारी हैं। शायद मुख्यमंत्री को मालूम नहीं कि इस बार के आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए गोपणीय तरीके से सारे प्रबंध किये जा रहे हैं, जो सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं, यहीं नहीं सत्ता में शामिल आजसू और कुछ भाजपा के विधायक भी आनेवाले समय में विद्रोह का बिगुल बजा सकते हैं, क्योंकि जनता को नाराज कर, अपनी पॉलिटिकल कैरियर तबाह करने की स्थिति में फिलहाल यहां कोई भी नहीं।