अपनी बात

होनहार CM का कमाल, खुद सत्र बुलाया, जब सत्र को लेकर स्पीकर ने बैठक बुलाई तो खुद ही गायब रहा

झारखण्ड के अब तक के एकमात्र होनहार मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खुद ही 24 दिसम्बर से विधानसभा का शीतकालीन सत्र बुलाया है। इस विधानसभा सत्र की गंभीरता को देखते हुए, गत 21 दिसम्बर यानी दिन शुक्रवार को विधानसभाध्यक्ष दिनेश उरांव ने विधायक दल की बैठक बुलाई, जिसमें सारे दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया, पर जिस पर सर्वाधिक इस सत्र को सही ढंग से चलाने की जिम्मेदारी है।

वो सत्तारुढ़ दल का नेता यानी मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद बैठक से नदारद रहे, और जब सत्तारुढ़ दल का नेता यानी मुख्यमंत्री ही अपने विधानसभाध्यक्ष द्वारा बुलाई गई बैठक को प्रमुखता न दें, तथा उस बैठक में शामिल होने के लिए समय तक न निकालें तो ऐसा व्यक्ति किस आधार पर विरोधी दल के नेताओं के खिलाफ एक शब्द भी बोल सकता है कि विपक्ष सदन चलाने में सदन की मदद नहीं कर रहा? आज का सबसे बड़ा सवाल यही है।

झारखण्ड विधानसभाध्यक्ष की इस वैठक में सदन के नेता रघुवर दास पूर्ण रुपेण गायब रहे, प्रतिपक्ष के नेता हेमन्त सोरेन भी नहीं दिखे, संसदीय कार्यमंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, बसपा विधायक शिवपूजन मेहता तो दिखाई पड़े, पर सत्ता से हमेशा चिपके रहनेवाला आजसू भी मुख्यमंत्री रघुवर दास के नक्शे कदमों पर चलने में अभिरुचि दिखाई, जबकि भाकपा माले, मार्क्सवादी समन्वय समिति के विधायक भी इस बैठक में नहीं दिखे।

दुर्भाग्य इस राज्य का देखिये, बार-बार स्थायी सरकार और विकास की दुहाई देनेवाले तथा अपने ही पूर्व के मुख्यमंत्रियों को विकास को लेकर कटघरे में खड़ा करनेवाले मुख्यमंत्री रघुवर दास के शासनकाल में सदन को ठीक से नहीं चलने देने का एक रिकार्ड बनने जा रहा है। पूरा देश जान रहा है कि गत तीन वर्षों से झारखण्ड का विधानसभा सत्र सहीं रुप से नहीं चल रहा, अब चूंकि विधानसभा का य़े शीतकालीन सत्र हैं – वह भी दो दिनों का।

यकीन मानिये कि ये दो दिन का सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ जायेगा और इसके लिए कोई जिम्मेवार होगा तो वह खुद इस राज्य का मुख्यमंत्री ही, इसके लिए दूसरे को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि विपक्ष के करीब-करीब सारे नेताओं का यहीं कहना है कि सिर्फ दो दिन का सत्र बुलाना, आखिर क्या साबित करता है? यहीं कि सरकार, जनता और विपक्ष के सवालों से भागना चाहती है, वह नहीं चाहती कि जनता की मूलभुत समस्याओं पर सदन में चर्चा हो, वह सिर्फ अपना कार्यकाल पुरा करना तथा बजट को पास कराने के लिए ही सदन आहूत कर रही है, ऐसे में इस प्रकार के सत्र से किसका फायदा होगा, समझा जा सकता है।

सूत्र बताते है कि 2016 से अब तक 50 से ज्यादा बार विधानसभा का सत्र बुलाया गया, दो बार तो समय से पूर्व ही सत्र को समाप्त कर दिया गया, जो शेष दिन बचे, उसमें भी सदन की कार्यवाही सुचारु रुप से नहीं चल सकी, पल भर में बजट पास करो-कराओ, यहीं सरकार की नीति रही, विपक्ष को ठेंगे पर रखो, उनकी बात नहीं सुनो, उन्हें गालियों से नवाजो, यहीं विधानसभा में होता रहा, जिसमें मुख्यमंत्री की भूमिका ही प्रमुख रही।

सीएनटी-एसपीटी के मुद्दे पर तो पक्ष और विपक्ष में सदन में ही युद्ध की स्थिति हो गई, विपक्ष सरकार के रवैये से अंसतुष्ट था, इस दौरान चार विधायकों को निलंबित भी किया गया, जिसे बाद में निलंबन मुक्त भी किया गया, सीएनटी-एसपीटी मुद्दे पर तो सरकार, जनता की ही नजरों में गिर गई, इसी मुद्दे पर रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाय पर बचन न जाई कहनेवाली सरकार की हाल भई गति सांप छुछुंदर जैसी वाली हो गई, फिर भी रघुवर सरकार ने इस पर अपनी हठधर्मिता नहीं छोड़ी और बैकडोर से इस भूमि अधिग्रहण पर अपनी बात मनवाने की कोशिश की।