अपनी बात

सीधा सा सवाल सरकार जवाब दें, आप बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं या उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं?

सीधा सा सवाल है। यह सवाल केन्द्र/राज्य सरकार, प्रशासनिक अधिकारियों व बच्चों के माता-पिता/अभिभावकों से भी हैं। आप बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं या उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं? यह सवाल भी किसी और ने नहीं, बल्कि एक शिक्षाविद्, एक अधिवक्ता, एक सामाजिक कार्यकर्ता अभय मिश्रा ने उठाये हैं। उनके इस सवाल पर कई स्कूलों ने भौहें चढ़ा ली हैं।

पर इससे उलट अभय मिश्रा अपने सवाल पर कायम है और इसको इन्होंने सोशल साइट फेसबुक पर भी उकेरा हैं, जिसको देख कई शिक्षण संस्थान चलानेवालों को मिर्ची भी लगी हैं। मिर्ची लगने का कारण है कि अगर समाज जग गया, प्रशासनिक अधिकारी जग गये या कुम्भकर्णी निद्रा में सदा के लिए सोई केन्द्र सरकार या राज्य सरकार जग गई तो फिर उनके पिछले दरवाजे से आनेवाले अर्थ प्रबंधन का क्या होगा?

अभय मिश्रा तो साफ कहते है कि यह आंखों देखी हैं। इसलिए उन्होंने सवाल उठाये हैं। वे तो ये भी कहते है कि इसके मूल में हैं – आधुनिक शिक्षण व्यवस्था, कोचिंग क्लासेस को सरकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से मौन समर्थन, शिक्षकों के होम ट्यूशन का बढ़ता कल्चर। अभय मिश्रा के अनुसार शिक्षा की दुर्दशा का मूल कारण है कि शिक्षा के लिए दिशा-निर्देश अब शिक्षक नहीं बनाते, बल्कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनाते हैं, जिन्हें शिक्षा के मूल उद्देश्य के बारे में जानकारी ही नहीं। आज यहीं कारण है कि हमारे बच्चे शिक्षा के नाम पर प्रताड़ित हो रहे हैं। समय का बदलाव करके बच्चों के स्वास्थ्य के साथ भी ये खिलवाड़ कर रहे हैं।

अभय मिश्रा बताते है कि आज ही उन्होंने स्कूल आते कुछ बच्चों से पूछा, जो रो रहे थे। क्या हुआ बेटा? बच्चों ने कहा – अंकल, नींद आ रही है। कुछ ने रोते हुए कहा स्कूल नहीं जाना, अभी सोना है। बेचारे बच्चे पूरी नींद नहीं होने के चलते स्कूल जाना नहीं चाह रहे थे। रो रहे थे, बोल रहे थे – सोना है। पर, अभिभावक जबरन उन्हें वाहन में बिठा रहे थे। अब कोई बताएं कि इस नींद की अवस्था में ये बच्चे विद्यालय जाकर भी क्या पढ़ाई करेंगे? वाहन में बैठे सभी बच्चे अर्ध निद्रा में है। एक बच्चे ने कहा मैंने खाना नहीं खाया, क्योंकि बना ही नहीं था।

एक बच्चे ने कहा – मम्मी ने टिफिन दिया है लेकिन खा नहीं पाता हूं, खाने का समय ही नहीं मिलता। सर, टिफिन का समय ही बहुत कम है। इस प्रकार, क्या हम आधुनिक शिक्षा पद्धति और सरकार के जबरिया दिशा निर्देश के चलते, देश के नौनिहालों का स्वास्थ्य का नाश नहीं कर रहे हैं, वो भी पढ़ाई के नाम पर। आखिर ये कौन सी शिक्षण पद्धति है?

जरा सोचिये, बच्चे के माता पिता 4:00 बजे सुबह उठे होंगे। 5:00 बजे खाना बना होगा। बच्चे नित्य क्रिया करने के बाद सुबह 6:00 से खड़े हैं बस के लिए। ये हमेशा का समय है। जरा सोचिये जाड़े के दिनों में इन बच्चों पर क्या बीतती होगी? सुबह चार बजे जब बच्चे उठते होंगे, उस वक्त का क्या तापमान होता होगा। ठंड में ठिठुरते बच्चे क्या पढ़ेंगे?

अब सीधा सवाल देश चलानेवाले प्रधानमंत्री/मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों से भी कि क्या उन्हें सुबह छः बजे से पहले कहा जाये कि आप नाश्ता या भोजन कर लीजिये तो क्या करेंगे, क्या वो समय नाश्ता या भोजन का होता है। या प्रतिदिन उन्हें चाहे जाड़ा हो या गर्मी हो या बरसात, हमेशा उसी समय में सेवा या योगदान करने को कहा जाये तो करेंगे क्या? उत्तर होगा – नहीं तो फिर बच्चों पर इतना बड़ा जूर्म क्यों?

भाई पढ़े तो हम भी हैं। हमारे समय में तो पढ़ने का एक समय होता था। सुबह दस बजे से लेकर अपराह्न साढ़े तीन या चार बजे तक। गर्मी के दिनों में एक अप्रैल से जब तक गर्मी की छुट्टी नहीं हो जाती थी। स्कूल का समय होता था सुबह साढ़े छह से ग्यारह बजे तक। इससे न तो बच्चों को, न बच्चों के माता-पिता या अभिभावकों को और न ही स्कूल के शिक्षकों को कोई दिक्कत होती थी। आज भी लगता है कि सरकारी स्कूलों में यही नियम चल रहे हैं, तो निजी स्कूलों में इस प्रकार की व्यवस्था क्यों? क्या देश में उनके लिए अलग से कानून है क्या? इसका जवाब कौन देगा?

One thought on “सीधा सा सवाल सरकार जवाब दें, आप बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं या उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं?

  • सवाल अभय मिश्रा ने एक दम सही उठाया है, सरकार की नीति यही है बच्चे स्कूल में सिर्फ क्लास करें और कोचिंग या ट्यूशन कर के अपना भविष्य बनाए। अभिवावक जिनकी महंगाई के इस दौर मै हालत खराब है पेट काट कर कोचिंग और ट्यूशन का पैसा अलग से दें।
    इस शिक्षा प्रणाली मे विद्यालय का एकाआधिकार होना चाहिए की बच्चो को स्कूल के लिए कौन सा समय कौन से मौसम में सही है। जबरन स्कूल आधे नीद में उठा कर भेजना कौन सा सही है?
    सरकार की नीति शुरू से शिक्षा प्रणाली में सही नहीं रही है, प्राइवेट संस्था को मनमानी करने का भी मौका दिया गया है, अब अभय मिश्रा ने सवाल किया है तो केंद्र/सरकार जवाब दे की इस तरह कया हम अपने बच्चो का भविष्य बना रहें हैं या कोई और दिशा में जा रहे हैं?

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