अपनी बात

अपने बच्चों-युवाओं को चैनलों और अखबारों से दूर रखिये, नहीं तो आप अपने बच्चों-युवाओं को…

अगर अपने बच्चों-युवाओं को बेहतर इंसान बनाना हैं, तो अपने बच्चों को चैनलों और अखबारों से दूर रखिये। इन चैनलों और अखबारों को देखने और पढ़ने से अच्छा है कि आप अपने बच्चों-युवाओं को भारत के महान साहित्यकारों, लेखकों, आध्यात्मिक महात्माओं द्वारा लिखित साहित्यों को उन्हें पढ़ने को दें, इससे उनका आध्यात्मिक और चारित्रिक विकास भी होगा तथा वे अपने परिवार और देश को समझेंगे, नहीं तो यकीन मानिये आपका परिवार तो बर्बाद होगा ही, देश का भी आप सत्यानाश कर देंगे।

यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि आज देश के सभी अखबारों व चैनलों के मालिकों-संपादकों के समूहों ने अपना जमीर बेच रखा हैं, और जो किसी कारण से नहीं अब तक अपने जमीर बेचे हैं, वे स्वयं को बिकने के लिए पहली पंक्ति में खड़े होने को बेकरार है। बाजार सजा हुआ है, खरीदार माल लेकर बाजार में घूम रहे हैं और अपने मन-मुताबिक इन बिकनेवाले अखबारों और उनके मालिकों को अपने इशारों पर नचा रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर, जरा आज की ही रांची से छपे सारे अखबारों और चैनलों को देख लीजिये। एक फिल्म अभिनेता को राज्य सरकार ने अपने माथे पर क्या बिठा लिया। वह अभिनेता अपने ढंग से सारे झारखण्ड को नचा रहा है और चूंकि राज्य सरकार ने उन्हें माथे पर बिठा लिया तो राज्य के अधिकारी भी उसके इशारे पर नाच रहे हैं। जब उसने देखा कि राज्य सरकार और उनके अधिकारी उसके इशारे पर नाच रहे हैं तो फिर अखबारों और चैनलों के मालिकों और संपादकों को क्यों नहीं नचाया जाय?  तो वह चल पड़ा – चैनलों और अखबारों के ऑफिसों में।

वह यह देखकर आश्चर्य हो गया कि चैनलों और अखबारों में काम करनेवाले संपादकों और उनके मालिकों का समूह तो उसे चरण पखारने और उन चरणांबुजों को अपने मस्तक पर रखने के लिए बेकरार था। कुछ संपादक तो इस क्षण को सोशल साइट पर डालकर, मस्ती के आलम में डूबे थे। जिस राज्य में ऐसी सोच के संपादकों-पत्रकारों और अखबार मालिकों को समूह रहता हो, वह राज्य भला क्या आगे बढ़ेगा? यह समझने की बात हैं। हद हो गई जो समाचार या घटना एक या दो कॉलम में सिमटने वाली थी, उस घटना पर एक अखबार ने सवा पेज समर्पित कर दिया। क्या सचमुच ये घटना ऐसी थी, जिसके लिए सवा पेज समर्पित कर दी जाय, अगर नहीं तो फिर ये चिंतनीय है।

दूसरी बात, क्या पत्रकारिता सत्ता व सरकार का महिमामंडन करने के लिए है, या आम जनता की चिंता को जन-जन तक पहुंचाने के लिए है, जब आप कलम और बूम से आम जनता की हित की बात नहीं कर रहे और सत्ता व सरकार से अनैतिक तरीके से पैसे लेकर, सरकार व सत्ता का महिमामंडन कर रहे हो तो तुम्हें हम पत्रकार या अखबार न कहकर भाट या बिरदावलि गानेवाले लोग क्यों न कहें, क्योंकि आप कर तो वहीं रहे हो, जो पूर्व में राजाओं के यहां भाट किया करते थे, जिनका काम था – राजा और उनके लोगों की स्तुति करना। राजा इसके बदले, उन्हें कुछ दे दिया करते, जिससे दोनों की संतुष्टि हो जाया करती थी।

रांची में तो एक नया अखबार पैदा हुआ है, जो सत्ता और सरकार की सेवा में ऐसा आकंठ डूबा है, कि वह सरकार को अपना एक पेज नहीं बल्कि कभी-कभी सरकार की की स्तुति गाने में पूरा अखबार ही समर्पित कर देता है। ऐसे हालत में हमारा फर्ज बन जाता है कि हम अपने बच्चों के कोमल मस्तिष्क को प्रभावित न होने दें। जब अखबार और चैनल अपना धर्म बेच दें, अपना ईमान बेच दें तब ऐसे हालत में राज्य में रहनेवाले हर नागरिक का कर्तव्य है कि अपने बच्चों-युवाओं को कहें कि वह चैनल न देखे और न ही अखबार पढ़े, क्योंकि इससे उसकी मानसिकता प्रभावित हो सकती है। वह सत्य और असत्य का विभेद नहीं कर सकता, इसलिए जब तक वह पूर्णतः यह नहीं समझ लेता कि सत्य क्या हैऔर असत्य क्या है? उसे अखबारों और चैनलों से दूर ही रखें। यह आपके, परिवार के और देश हित में है।