कलयुग में सतयुग लावा, अप्पा हरि गुण गावा, हरिस्मरण से ही कलयुग में आनन्द की प्राप्ति

अभी कलियुग के तो मात्र पांच हजार वर्ष ही बीते हैं, ये कहना कि जल्दी सतयुग आ जायेगा, संभव नहीं, फिर भी अगर आप सतयुग लाना चाहते है, शीघ्र लाना चाहते है, तो उसके लिए बस कलियुग में एक ही उपाय है, हरिस्मरण करिये, उनके गुणों को गाइये, निरन्तर उन पर दृढ़ विश्वास से श्रद्धा के साथ उन्हें पाने की कोशिश करिये, निःसंदेह सतयुग आ जायेगा। ये बाते रांची के चुटिया स्थित अयोध्यापुरी के वृंदावनधाम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान महाराष्ट्र से आये भागवताचार्य संत मणीष भाई जी महाराज ने कही।

उन्होंने स्पष्ट रुप से कहा कि सतयुग में तपश्चर्या के कारण ईश्वर मिलते थे, त्रेतायुग में पवित्रता से, द्वापरयुग में दया से पर कलियुग में तो भगवान केवल नाम स्मरणमात्र से प्राप्त हो जाते है, उन्होंने यह भी कहा कि ये चारों युग में यह भी पाया गया कि सतयुग के जाते ही, तपश्चर्या चली गई। त्रेतायुग के जाते ही पवित्रता चली गई, और द्वापरयुग के जाते ही दया का अंत हो गया। ऐसे में कलियुग में हरिस्मरण ही रह गया, जीतना आप हरिस्मरण करेंगे, आप ईश्वर के निकट चलते जायेंगे, याद रखे ईश्वर ही केवल आपका है, बाकी कोई आपका नहीं। वहीं उद्धारकर्ता है, दुसरा कोई नहीं।

उन्होंने कलियुग का चरित्र चित्रण करते हुए कहा कि जब कलियुग का आगमन हो रहा था, तब कलियुग की भयावहता को देख महाराज परीक्षित ने कलियुग का वध करने का प्रण किया, पर कलियुग को जैसे ही पता चला, वह महाराज परीक्षित के पास जाकर प्राणदान की भीख मांगी, और परीक्षित से ऐसे जगह पर उसने अपने रहने के लिए स्थान मांगी, जहां कोई उनके शासनकाल में जाता ही नहीं था। महाराज परीक्षित के आदेश से कलियुग द्युत क्रीड़ा, धुम्रपान, हिंसा, व्यभिचार और सुवर्ण के स्थानों पर अपना आश्रय लिया और इस प्रकार कलियुग ने अपने स्वभावानुसार वह कार्य करना प्रारंभ किया, जो महाराज परीक्षित के पतन का भी कारण बन गया।

ये कलियुग का ही प्रभाव था कि महाराज परीक्षित को एक शाप के कारण तक्षक का शिकार होना पड़ा और तक्षक के शिकार होने के पूर्व उन्होंने शुकदेव जी महाराज के संपर्क में आकर सात दिनों में श्रीमद्भागवत की कथा सुनी और स्वयं को ब्रह्मानन्द में समा लिया, ऐसे में जब शुकदेव जी की कृपा से महाराज परीक्षित भागवत कथा को सुन स्वयं को कृतार्थ कर सकते हैं, तो आप क्यों नहीं, इसलिए बड़ी ही श्रद्धा के साथ भगवान की कथा में स्वयं को रमाइये और भगवान के ही हो जाइये।

उन्होंने भगवान की कृपा का वर्णन करते हुए भीष्म पितामह की अर्जुन को मारने की प्रतिज्ञा और अर्जुन को बचाने के लिए भगवान कृष्ण के अद्भुत प्रयास का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने धर्म की बहुत सुंदर व्याख्या की जब उन्होंने पांडवों के स्वर्गारोहण की कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि द्रौपदी का पतन पक्षपात के कारण,  सहदेव का पतन ज्ञान के अभिमान, नकुल का पतन अपने सौंदर्य के अभिमान के कारण, अर्जुन का पतन युद्ध में जीत के अभिमान के कारण, भीमसेन का पतन अत्यधिक भोग तथा संयम के परित्याग के कारण हो गया, पर युद्धिष्ठिर एकमात्र हुए जो स्वर्ग तक पहुंच गये, क्योंकि उन्होंने श्वान की खातिर अंत-अंत तक धर्म का परित्याग नहीं किया, इसलिए धर्म का परित्याग किसी भी हालत में कभी भी नहीं करें, क्योंकि धर्म ही सिर्फ साथ जाता है, बाकी सभी यहीं रह जायेंगे।

उन्होंने कहा कि याद रखिये, भारत धर्म के कारण जाना जाता है, हमारे पूर्वजों ने कभी भी अपनी सनातन संस्कृति को नहीं छोड़ा, कई बार उन पर अत्याचार हुए, हमले हुए, पर उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी धर्म को नहीं छोड़ा, जिसके कारण भारत आज भी जीवित हैं, जिस दिन भारत से सनातन धर्म एवं इसकी संस्कृति समाप्त हो गई, भारत समाप्त हो जायेगा, पर ऐसा कभी हो ही नहीं सकता, क्योंकि भारत सत्य सनातन का प्रतीक है, इस देश पर ईश्वरीय कृपा है, भला इसका कौन बुरा कर सकता है, इसलिए सभी अपने देश, सत्य, सनातन धर्म पर गर्व करें तथा इसके संरक्षण पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि नेता आयेंगे, जायेंगे, दल आयेंगे, जायेंगे, पर देश रहेगा, ये ध्यान रहे। हमारा कोई ऐसा कार्य ऐसा न हो, जो देश को प्रभावित कर दें, अपनी सनातन-संस्कृति को प्रभावित कर दें।

उन्होंने कहा श्रीमद्भागवत आपकी शुद्धि पर ध्यान देता है, अगर किसी को नशा का इतना ही शौक है तो वह भगवान को पाने की नशा का सेवन करें, निःसंदेह इससे वह अपना, अपने परिवार और अपने देश का निश्चय ही भला कर देगा। मणिषभाई जी महाराज ने कहा कि अगर आप चाहते है कि कलियुग के त्रास से बचे, तो बस श्रीमद्भागवत की और लौटिये, अपना जीवन सुधारिये, बच्चों को भी श्रीमद्भागवत का रसपान करिये, क्योंकि बचपन में मिली यह अमृतसुधा उसके संपूर्ण जीवन को आनन्द में डूबो देगी, क्योंकि श्रीमद्भावगत ही निष्ठा, सत्य, देश तथा जीवन के मूलभूत सिद्धांतों से परिचय कराती है।