धर्म

भाव, गति, विवेक और तत्व का सम्मिश्रण हैं श्रीमद्भागवत, इसमें डूबकी लगाइये, ईश्वर को प्राप्त करिये

रांची के चुटिया अयोध्यापुरी स्थित वृंदावनधाम में आज दूसरे दिन भागवत कथा का आनन्द लेने बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र से पधारे भागवताचार्य संत श्रीमणिष भाईजी महाराज ने कहा कि दरअसल भागवत भाव, गति, विवेक और तत्व का सम्मिश्रण है, जो भागवत में डूबकी लगायेगा, उसे भाव, गति, विवेक और तत्व चारों प्राप्त होंगे और जब ये चारों प्राप्त होंगे तो फिर उस व्यक्ति को ईश्वर प्राप्ति से कोई रोक भी नहीं सकता। उन्होंने कहा कि जहां भी सत्संग होता है, वहां आत्मज्ञानी पुरुष अपनी समस्याओं का हल करने पहुंचते हैं तथा उन आध्यात्मिक समस्याओं का हल करते हुए अपने जीवन को अनुप्राणित करते हैं।

उन्होंने बताया कि श्रीमद्भागवत अथाह सागर हैं, आप इसमें जितनी डूबकी लगायेंगे आप परमानन्द के सागर में डूबते जायेंगे, और जितना आप इससे अलग रहेंगे और परमानन्द से दूर होते चले जायेंगे, निर्णय आपको करना है, क्योंकि निर्णय करने का थोड़ा अधिकार ईश्वर ने आप पर छोड़ा है, इसलिए भाव, गति, विवेक और तत्व के सहारे ईश्वर को जानिये। मणिष भाई जी महाराज ने कहा कि ये याद रखिये कि सागरों की लहरें एक समान नहीं होती, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भाव, गति, विवेक और तत्व अलग-अलग होते है।

उन्होंने नारद प्रकरण के माध्यम से लोगों को बताया कि आखिर नारद सामान्य से असामान्य कैसे हो गये? वे देवत्व ही नहीं बल्कि देवर्षि कैसे कहलाये? संयम, सदाचार, स्नेह, सेवा, सत्संग और सत्कर्म किसी भी व्यक्ति को सामान्य से असामान्य बना सकता है, और ये छः चीजे भागवत कथा के माध्यम से व्यक्ति प्राप्त कर सकता है, जो नारद को भी प्राप्त था।

मणिषभाई जी महाराज ने कहा कि भगवान न तो वैकुंठ में होते हैं और न कहीं दूसरे जगह होते हैं, भगवान तो आपके भाव में छुपे होते है, जैसे ही आप अपने भाव प्रकट करते हैं, भगवान आपके समक्ष आ खड़े होते हैं। भगवान तो साफ कहते है कि जहां भी सत्संग-कीर्तन होता है, मैं वहां अपने भक्तों के वश में होकर उनके पराधीन हो जाता हूं। उन्होंने कहा कि सत्संग एक ऐसी सरिता है, जहां पाप से मुक्ति नहीं बल्कि पाप करने की वृत्ति से भी छुटकारा मिल जाता है।

मणिषभाई जी महाराज ने बताया कि सत्य चार रुपों में विद्यमान हैं – आत्मा, शास्त्र, संत और परमात्मा, जिनमें संत सर्वाधिक प्रमुख है, क्योंकि यहीं आपकी आत्मा, शास्त्र और परमात्मा तीनों से परिचय करा देते हैं, जिससे आपका जीवन निर्मल हो जाता है। उन्होंने बताया कि भागवत की रचना ऐसे ही नहीं हो गई, किसी ने ऐसे ही नहीं लिख दिया, भागवत का तो अवतरण हुआ है। उन्होंने इसी दौरान गणपति-वेदव्यास संवाद, शुकदेव प्राकट्य, शुकदेव-परीक्षित संवाद, भगवान कृष्ण की महिमा, अश्वत्थामा प्रकरण, भगवान कृष्ण की अश्वत्थामा पर कृपा, कुंती द्वारा भगवान से दुख की कामना तथा भगवान के प्रति प्रेम का अद्भुत प्राकट्य की कथा सुनाई, जिसमें लोग डूबते चले गये।

उन्होंने भागवत कथा की महिमा सुनाते हुए कहा कि भागवत कथा में 18000 श्लोक, 12 स्कंध, 335 अध्याय बताते है कि जीवन के सार क्या हैं? उन्होंने कहा कि ज्ञान की अद्भुत महासागर हैं भागवत, आप इसके जितने निकट आते जायेंगे, आप परम आनन्द को प्राप्त करेंगे। यह जीने की कला ही नहीं सीखाता, बल्कि मोक्षदायिनी है भागवत, इसे समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भागवत कल्पवृक्ष है, इसकी छाया में व्यक्ति परमसुख प्राप्त करता है। उन्होंने भगवान की विशेषता बताते हुए कहा कि भगवान में छः खुबियां होती हैं, उनमें श्री का वास, अनन्त ऐश्वर्य, अनन्त शक्ति, अनन्त यश, अनन्त ज्ञान और अनन्त वैराग्य होता है।

उन्होंने सभी से कहा कि दुनिया में भगवान के समान सरल और सहज कोई नहीं, वो आपसे कुछ नहीं मांगते, पर जिस दिन आप उन्हें मांग लेंगे, आपका जीवन सफल, परंतु सामान्य व्यक्ति भगवान से सब कुछ मांगता है, सारी भौतिक वस्तुएं दुर्योधन की तरह मांगता है, पर अर्जुन की तरह भगवान को खुद नहीं मांगता, जिस दिन भगवान को कोई सामान्य व्यक्ति मांग लेता है, फिर उसके जीवन में कष्ट हो ही नहीं सकता, क्योंकि फिर भक्त का कष्ट, भगवान का कष्ट बन जाता है। उन्होंने बताया कि भगवान को छप्पन भोग नहीं, बस पत्र, पुष्प, फल और जल चाहिए, भगवान तो कभी कुछ की कामना ही नहीं करते। उन्होंने कहा कि भागवत आपको भगवान को, खुद को, जानने को कहता है, भागवत भगवान से यथार्थ परिचय कराता है, इसलिए भागवत में लीन होकर अपना जीवन सफल करें।