धर्म

मंगल और चंद्र पर जाने की, वहां रहने की सोच रहे, पर वैकुंठ में बसने की योजना नहीं बना रहे

रांची के चुटिया अयोध्यापुरी में नवनिर्मित वृंदावनधाम में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के आज तीसरे दिन महाराष्ट्र से आये भागवताचार्य संत मणीषभाई जी महाराज ने ज्ञान की महत्ता, यक्षयुधिष्ठिरस्यो वार्ताः, सृष्टि की रचना, वाराह अवतार की विस्तार से चर्चा की और इस चर्चा के माध्यम से भागवत कथा का आनन्द ले रहे श्रोताओ को जीवन का सार बताया। उन्होंने बताया की जीवात्मा का धरती पर आने का मकसद क्या होता हैं? और जब कोई जीवात्मा उस मकसद को भूल जाता है तो उसे क्या-क्या कष्ट उठाना पड़ता है?

उन्होंने कहा आपके जीवन में जो भी विषाद उत्पन्न हो रहा है, उसे ज्ञान के द्वारा ही नष्ट किया जाता है। महाभारत के युद्ध के दौरान जब अर्जुन में मन में विषाद का जन्म हुआ तब भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान के द्वारा ही उसके मन में उपजे भ्रम एवं विषाद को समाप्त किया। उन्होंने बताया कि मनुष्य जीवन दुर्लभ एवं क्षणभंगुर है, इसे ऐसे ही जाया होने मत दीजिये। ये चार दिन की जिंदगी दरअसल दो दिन सोने में एक दिन व्यवसाय करने तथा एक दिन कुटुम्ब परिवार की देखरेख में ही मत गुजार दीजिये, इस चार दिन की जिंदगी में कुछ पल ऐसा भी निकालिये, जिससे ईश्वर के प्रति आपका ऐसा प्रेम जगे कि आपका जीवन प्रकाश से भर जाये।

उन्होंने बताया कि ईश्वर ने आपको संसार में भेजा, इसलिए नहीं कि आप संसार में जाकर डूब जाये, उन्होंने आपको संसार में इसलिए भेजा कि आप मनुष्य बन सकें और स्वयं को विपरीत परिस्थितियों में होने के बावजूद परमात्मा को न भूलें, जरा सोचिये नौका पानी में रहती है, पर जब नौका पानी में रहती है तो वह तैरती हैं, पर जब नौका में पानी समा जाता हैं तो नौका का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, इसलिए इस संसाररुपी सागर में स्वयं को डूबाने से बचिये।

मणीषभाई जी महाराज ने कहा आज लोग चंद्रमा पर जाने की बात कर रहे हैं, मंगल पर बसने की बात कर रहे हैं, पर मन की शांति के लिए वैकुंठ की खोज नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कल्याण और मन की शांति तभी मिलेगी, जब आप ईश्वर को पायेंगे, इसलिए भागवत कथा जगाने का काम करती है। संत चौकीदार बन कर, अपने भक्त रुपी जमींदार को हमेशा जगाने का काम करते रहते हैं, बताते है कि जागते रहो, यहीं समय है, ईश्वर को भजने का, उन्हें पाने का, जो जग जाता है, वो ईश्वर को पा जाता है, और जो सोये रहता हैं, वह सब कुछ खो देता है।

उन्होंने ओउम् को परिभाषित करते हुए कहा कि इसमें तीन अक्षर है –अ अर्थात् अवतरण, उ अर्थात् उत्थान और म अर्थात् मरण, कहने का तात्पर्य जीवन अवतरण, उत्थान और मरण में ही समाहित है। उन्होंने बताया कि ईश्वर ने पंचमहाभूतों – पृथ्वी, जल, वायु, तेज और आकाश, पंचविषयों जैसे – शब्द, स्पर्श, रुप, रस और गंध, और इनके लिए पंचइन्द्रियां जैसे – कान, त्वचा, आखें, जिह्वा और नासिका प्रदान की।

उन्होंने बताया कि कैसे नारायण और फिर ब्रह्मा और फिर शिव की उत्पति हुई और इसके बाद सनत कुमारों के जन्म, नारद का प्रार्दुभाव, प्रजापति का जन्म, कश्यप की पत्नियों में से एक दिति के द्वारा हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के जन्म तथा दुसरी अदिति द्वारा आदित्य तथा अन्य 12 पुत्रों के जन्म की कथा विस्तार से सुनाई। यहीं नहीं ब्रह्मा द्वारा मनु शतरुपा के जन्म से लेकर उनके पुत्र उत्तानपाद और प्रियव्रत तथा तीन बेटियों आकृति, देवहूति और प्रसूति की कहानियां भी बताई। उन्होंने बताया कि कैसे आकृति की शादी कला से, देवहूति की शादी ऋषि कर्दम के साथ तथा प्रसूति की शादी दक्ष के साथ हुई। नारद को दक्ष के द्वारा मिले शाप की वे एक जगह कभी नहीं बैठेंगे सर्वदा अस्थिर रहेंगे तथा नारद द्वारा दक्ष को मिले शाप रुपी आशीर्वाद से भी भक्तों का रसास्वादन कराया। मुनि कपिल के जन्म और उनके लिखित सांख्य दर्शन तथा अन्य शास्त्रों से भी भक्तों को परिचय कराया गया।