अपनी बात

जो स्वयं को तोप समझते थे, उन्हें रांची प्रेस क्लब के मतदाताओं ने धूल चटाया

जो खुद को तोप मानते थे, जिनको गर्व था कि झारखण्ड का मतलब ही प्रभात खबर होता है, जो समझते थे कि जो प्रभात खबर चाह लेगा, वहीं होगा, जो इसी चाहत में प्रभात खबर के साथ सट कर एक टीम का गठन कर चुके थे तथा वोटों के गणित में स्वयं को सुरक्षित मान चुके थे, उनके लिए रांची प्रेस क्लब का चुनाव परिणाम एक सबक है। सबक उनके लिए भी जो अपने से छोटे को पत्रकार ही नहीं मानते थे और जब जहां देखा, उसे बेइज्जत करने से नहीं चूकते थे। सबक उनके लिए भी जो पत्रकारों के लिए न लड़कर, अपने झूठे अभिमान की तसल्ली के लिए प्रबंधन तथा बिल्डर से चैनल मालिक बने लोगों की आरती उतारने में स्वयं को लगा दिया करते थे। आज उन्हें रांची प्रेस क्लब के पत्रकार मतदाताओँ ने बता दिया कि उनकी नजरों में उन लोगों की औकात क्या है?

रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष पद पर लड़ रहे प्रभात खबर के स्थानीय संपादक विजय पाठक को करारी हार मिली है, उन्हें राजेश कुमार सिंह ने हराया, जो फिलहाल किसी भी संस्थान में कार्यरत नहीं हैं। उपाध्यक्ष पद पर सुरेन्द्र सोरेन ने जीत दर्ज की है, उन्होंने दैनिक हिन्दुस्तान में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्र को पराजित कर दिया। सुरेन्द्र सोरेन फिलहाल कशिश चैनल में कार्यरत हैं। महासचिव पद पर शंभू नाथ चौधरी ने जीत दर्ज की है, जो फिलहाल किसी भी संस्थान से जुड़े नहीं हैं। संयुक्त सचिव के पद पर कुमार आनन्द ने जीत दर्ज की है, जो फिलहाल किसी भी संस्थान से जुड़े नहीं हैं, यानी सभी स्वतंत्र रुप से फिलहाल पत्रकारिता कार्य में लगे हैं। एकमात्र कोषाध्यक्ष पद के लिए प्रदीप कुमार सिंह, जो दैनिक जागरण में कार्यरत है, जीत दर्ज की है, ये विजय पाठक की टीम से जुड़े थे।

ये जीत बहुत कुछ कह देती है, एक संदेश भी देती है कि अब यहां के पत्रकारों के लिए संस्थान प्रमुख नहीं हैं और न ही पद महत्वपूर्ण हैं, अगर कुछ महत्व हैं तो वह हैं इंसानियत, भाईचारा, प्रेम और व्यवहार, अगर ये चारों चीज आपके पास हैं तो आपको अपना सरताज बनाने के लिए यहां का पत्रकार तैयार हैं, अगर ये नहीं हैं, तो आपका रांची प्रेस क्लब में कोई स्थान नहीं।

हम आपको बता दें कि, ये फैसला ऐसे ही नहीं आया है। जो विजय पाठक की टीम के लोग हारे हैं, वे पूर्व की कोर कमेटी से जुड़े लोग हैं, जिन्होंने 2100 रुपये रांची प्रेस क्लब के सदस्य बनने के लिए राशि निर्धारित किये थे। इस राशि का सर्वाधिक विरोध उन पत्रकारों ने किया, जिनके पास इतने भी पैसे देने की हैसियत नहीं थी, जिसकी लड़ाई कई पत्रकारों ने मिलकर लड़ी, अंततः लड़ाई का असर हुआ, जीत मिली, 1100 रुपये देकर लोग सदस्य बने। इसी दिन, संघर्षरत इन पत्रकारों को यह भी जानकारी हो गई कि कोर कमेटी में शामिल लोग, अगर रांची प्रेस क्लब पर कब्जा जमायेंगे तो फिर उन्हें वह प्रेम प्राप्त नहीं होगा, वह व्यवहार उन्हें प्राप्त नहीं होगा, जिसके वे अधिकारी है, और फिर जो उन दिनों, इन पत्रकारों ने संकल्प लिया, उसका निर्णय आज 28 दिसम्बर को उन्होंने अपने वोटों के माध्यम से सुना दिया।

जीत-जीत होती हैं और हार-हार, कौन कितने वोटों से जीता और कौन कितने वोटों से हारा, ये भी महत्वपूर्ण नहीं हैं। अगर कोई एक वोट से जीता तो वह भी जीत ही कहलायेगा और अगर कोई एक वोट से हारेगा तो वह भी हार ही कहलायेगा। जो जीत गये, उन्हें बधाई और जो हार गये उन्हें इस पर शोक करने की कोई जरुरत नहीं। जो जीते हैं, वे विनम्र बने रहे, जिनको उन्होंने हराया हैं, उनके प्रति संवेदनशील रहे, ऐसा कोई काम न करें, जिससे कटुता बढ़े, सभी अपने भाई हैं, जब तक चुनाव लड़ रहे थे, तभी तक प्रतिद्वंदी, चुनाव समाप्त और मतगणना की समाप्ति के बाद, सभी एक साथ एक स्वर से रांची प्रेस क्लब का सम्मान बढ़े, ऐसा कार्य करें।

हम आशा रखेंगे कि जीते हुए प्रत्याशी और हारे हुए प्रत्याशी और मतदाता सभी एक परिवार बनकर, इस क्लब की सम्मान का रक्षा करेंगे तथा उन्हें भी इस रांची प्रेस क्लब का सदस्य बनायेंगे, जो अभी तक इससे वंचित रहे। परिवार जितना बड़ा होगा, उतना ही आनन्द प्राप्त होगा, ये कभी न भूले, अब कोई गिला-शिकवा का स्थान नहीं होना चाहिए, लोकतंत्र की खुबसूरती है – निर्वाचन प्रक्रिया। सभी निर्वाचित प्रतिनिधि जो कार्यसमिति के सदस्य बने हैं, उन्हें भी बधाई, सभी मिलकर चले, मिलकर कार्य करें, हमें आशा है कि यह रांची प्रेस क्लब अपने विशेष आचरणों से एक दिन शिखर पर होगा।

One thought on “जो स्वयं को तोप समझते थे, उन्हें रांची प्रेस क्लब के मतदाताओं ने धूल चटाया

  • जबरदस्त KBM जी।
    आप महान हैं। वैसे मुझे भी क्लब का मेंबर बनवा दिया जाता तो अच्छा रहता।
    प्रणाम

    निखिल

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