अपनी बात

रांची के अखबार, सरकार के इशारे पर समाचार भी पचाने/गायब करने में लग गये

विगत 14 जुलाई को सजग सर्वधर्म से संबंधित बुद्धिजीवियों समेत विभिन्न संगठनों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक टीम, करीब सायं 5 बजे रांची जेल रोड स्थित मिशनरीज ऑफ चैरिटी का दौरा किया था, इस टीम में, थियोडोर किरो, प्रेमचंद मुरमू, बशीर अहमद, रतन तिर्की, मंजर इमाम, नदीम खान, तनवरी अहमद, देवजीत देवघरिया, मो. जाहिद, वारिश कुरैशी, रमजान कुरैशी, मो. जुनैद, ललित मुर्मू, फादर आगस्टिन केरकेट्टा, अधिवक्ता सीमा संगम, राजेन्द्र लकड़ा, फ्लेमैंट टोप्पो, फ्रांसिस सुरेन, राजकुमार नागवंशी, जेडी तिग्गा, आकाश रंजन, ज्योति भेंगरा और जॉन बी डुंगडुंग आदि मौजूद थे।

इन सभी ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी में काफी समय बिताया, तथा वहां की सिस्टरों तथा प्रबंधकों से बातचीत की। बातचीत से जो भी कुछ निकला, इन सभी ने एक प्रेस विज्ञप्ति बनाई और रांची के सभी प्रमुख अखबारों में फोटो के साथ इस समाचार को प्रेषित किया, पर आश्चर्य रविवार के दिन ये समाचार रांची के किसी अखबारों में नहीं दिखी। अब सवाल उठता है कि ये अखबार किसके लिए बने हैं, कौन है इसका मालिक, कौन है इसका प्रधान संपादक/स्थानीय संपादक/समाचार संपादक जो जनहित की खबरों को, जनहित में प्रकाशित न कर, एक सरकार के मंतव्यों को ही प्रकाशित करने में ज्यादा रुचि रख रहा हैं।

हमारे विचार से, तथा समाचार के सामान्य नैतिक मूल्यों के अनुसार भी, प्रत्येक व्यक्ति को उसके इलाके में क्या-क्या घटना घट रही हैं, उसे जानने का हक हैं और उन तक उनके इस हक को पहुंचाने का दायित्व पत्रकारों/समाचार पत्रों का हैं, पर जब ये भी काम पत्रकार/समाचार पत्र बंद कर दें तो जनता को भी पूरा हक है कि ऐसे अखबारों/पत्रकारों का सामाजिक बहिष्कार करें।

ये कोई छोटी घटना नहीं थी, ये बहुत बड़ी घटना थी, विभिन्न सामाजिक संगठनों के लोग मिशनरीज ऑफ चैरिटी गये थे, उनकी क्या थॉट हैं, ये सब को जानना जरुरी थी, पर रांची के अखबारों ने इस समाचार को सिंगल कॉलम में भी देने की कोशिश नहीं की, आखिर किसके इशारे पर इस समाचार को रोका गया, आखिर इस समाचार को रोके जाने से किसको फायदा मिला, ये भी अब आम जनता को जानने का हक हैं, अगर कही भी कोई अप्रिय घटना घटती है, तो उसमें सम्मिलित दोषियों को सजा देने का काम कानून का है, कानून अपना काम करें, पर कोई संगठन कहीं जाये और वह प्रेस विज्ञप्ति बनाकर आपको दें,  फिर भी आप उस समाचार को नजरदांज कर दें, तब तो साफ लगता है कि रांची की जनता को गफलत में रखने का काम अखबारों/पत्रकारों ने प्रारंभ कर दिया।

रांची के नदीम खान और ललित मुर्मू ने आज विद्रोही 24.कॉम को बताया कि उन्हें इस बात का दुख है कि शनिवार को उनकी टीम मिशनरीज ऑफ चैरिटी गई थी, जिसमें काफी लोग मौजूद थे, वहां की सिस्टर और प्रबंधकों से बातचीत हुई, जिसका समाचार हमलोगों ने बनाया और सभी अखबारों तक पहुंचाया और दूसरे दिन हमलोग समाचार ढूंढते रह गये, पर मिला ही नहीं, इससे बड़ा दुखद बात और क्या हो सकता है, कि अब हमलोग समाचार पत्रों से भी गये, पता नहीं झारखण्ड में कैसी पत्रकारिता हो रही हैं?

हम बता दे कि इस टीम ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी रांची से मिलकर महसूस किया कि सरकार अल्पसंख्यकों को सरकारी दमन का शिकार बनाने में ज्यादा रुचि ले रही हैं एवं अल्पसंख्यक संस्थानों को बदनाम कर रही हैं, सरकार ऐसा दिखा रही है कि यह संस्थान बच्चा खरीद-फरोख्त का अड्डा बना हुआ है, जिसे हमने ठीक किया है, दैनिक समाचार पत्रों एवं इलेक्ट्र्रानिक मीडिया का रवैया भी सरकारी साजिश का हिस्सा बन रहा है। इन सभी मुद्दों समेत बेहतर शिक्षा-आर्थिक तंगी से तेलंगाना पलायन कर रहे जामताड़ा मदरसा के रिहा बच्चों -गिरफ्तार मौलानाओं को बदनाम कर जल्दबाजी में चालान काटकर झारखण्ड सरकार अल्पसंख्यकों एवं अल्पसंख्यक संस्थाओं को बदनाम कर रही हैं। मोब लिचिंग, खानपान, धार्मिक उत्तेजित नारे, धर्मांतरण बिल, अल्पसंख्यकों से जुड़ी संवैधानिक संस्थाओं को हाशिये पर रखने से साफ पता लगता है कि झारखण्ड सरकार का रवैया अल्पसंख्यकों के प्रति भयभीत करने जैसा है।

इन सभी मुद्दों को लेकर जल्द ही एक प्रतिनिधिमंडल गृह सचिव से मिलेगा, तथा प्रेस के सभी समूहों से भी बातचीत करेगा, प्रतिनिधिमंडल में आदिवासी बुद्धिजीवी मंच, अंजुमन इस्लामिया, एआइपीएफ, सर्वधर्म बुद्धिजीवी एवं सामाजिक कार्यकर्ताओँ के लोग मौजूद थे।