अपनी बात

रघुवर सरकार ने उपराष्ट्रपति के कार्यक्रम में शामिल महिलाओं को जैसे-तैसे खिलाई खिचड़ी, और अपने लोगों को थमवाया स्पेशल पैकेट

माननीय उपराष्ट्रपति जी, माननीय वैंकेया नायडूजी, कभी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की शोभा बढ़ा चुके महाशय, याद रखिये आयुष्मान, स्वच्छता और लोकमंथन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण, आदमी को आदमी समझना है, अगर आप आदमी को आदमी नहीं समझेंगे, तो समझ लीजिये, ऐसी क्रांति होगी कि उस ज्वाला में आप सभी साफ हो जायेंगे, मैं देख रहा हूं कि जब से आपकी पार्टी सत्ता में आई है, आप लोग जब से सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन तक पहुंचे हैं, आप लोगों ने आदमी को आदमी समझना ही छोड़ दिया है।

आपलोगों को लगता है कि जो सामान्य लोग हैं भोले-भाले लोग हैं, वे तो निहायत ही मूर्ख हैं, उन्हें तो जैसे खिला दो, जो भी खिला दो, खा लेंगे और जय-जय करके चल देंगे, पर आपको नहीं मालूम, जिनके साथ आप ऐसा कर रहे हैं या करा रहे हैं, उन्हें दरअसल पता ही नहीं कि आप उनके सम्मान के साथ खेल रहे हैं, जिस दिन उन्हें यह पता लग जायेगा तब आपकी हालत क्या होगी, कभी आपने परिकल्पना की है, नहीं न, तो आप आज से ही परिकल्पना शुरु कर दीजिये, क्योंकि 2019 जल्द ही आनेवाला है।

कल की ही बात है, भारत के उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू रांची में थे। रांची में ही उन्होंने दो कार्यक्रमों में भाग लिया, एक रघुवर दास के सम्मान में चलाये जा रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आनुषांगिक संगठन प्रज्ञा-प्रवाह के लोक मंथन कार्यक्रम में तथा दूसरा नामकुम प्रखण्ड के लालखटंगा पंचायत के भुसूर मैदान में स्वच्छता ही सेवा के तहत जनसंवाद सह जनजागरुकता कार्यक्रम में।

नामकुम प्रखण्ड के लालखटंगा पंचायत के भुसूर मैदान में स्वच्छता ही सेवा के तहत जनसंवाद सह जनजागरुकता कार्यक्रम में भोजन के लिए दो व्यवस्था की गई थी, सामान्य जनों और सहिया के लिए यहां खिचड़ी की व्यवस्था थी तथा खासमखास लोगों के लिए रांची के एक स्पेशल होटल से विशेष भोजन पैकेट की व्यवस्था थी। ये अलग बात है कि जो खिचड़ी खा रहे थे, वे बड़ी ही शांतिपूर्वक भोजन ग्रहण कर रहे थे, और जिनके लिए एक स्पेशल होटल के विशेष भोजन पैकेट के लिए व्यवस्था थी, वे उन पैकेटों को लेने के लिए हाय तौबा मचा रहे थे।

सवाल आयोजकों से है कि भाई एक ही कार्यक्रम के लिए दो प्रकार की व्यवस्था क्यों? क्या सामान्य लोगों अथवा कार्यक्रम में भाग लेनेवाली सामान्य महिलाओं को अच्छे भोजन पसंद नहीं पड़ते, उन्हें केवल सरकार की खिचड़ी ही पसंद है, और अन्य विशेष लोगों को खिचड़ी पसंद नहीं, उन्हें सिर्फ और सिर्फ रांची के स्पेशल होटलों के विशेष भोजन पैकेट ही पसंद है। ये भोजन को लेकर भी दो विचारधारा, ये तो साफ बताता है कि भाजपा के लोग यहां की रघुवर सरकार, राज्य की जनता के साथ भेदभाव करती है, और उनके सम्मान के साथ खेलती है।

ये अलग बात है कि इन सामान्य लोगों व महिलाओं को पता ही नहीं चलता कि सरकार और विभाग के जुड़े अधिकारी, कैसे उनके सम्मान के साथ खेलते हैं? जिस दिन पता लग जायेगा तो ये अपने घर से सुखी रोटी और दो प्याज लेकर कार्यक्रम में पहुंच जायेंगे और इनके द्वारा दी जा रही अपमानरुपी भोजन से नाता तोड़ लेंगे। लानत है, ऐसे आयोजकों पर और ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होने वाले लोगों पर जो मंच से सम्मान, सामाजिक समानता, भेद भाव रहित समाज की बातें तो खूब करते हैं, पर इन्हीं के कार्यक्रमों में सम्मान, सामाजिक समानता, भेद भाव रहित समाज की कैसे धज्जियां उड़ा दी जाती है, उसका उदाहरण आपके समक्ष है।

क्या सबका साथ सबका विकास, साफ नीयत सही विकास, एक भारत श्रेष्ठ भारत में यहीं सब होता है, कि एक को सम्मान के साथ भोजन कराओ और दूसरे को जमीन पर बिठा दो। एक को खिचड़ी खिलाओ और दूसरे को महंगी रेस्टोरेंट के खाने खिला दो। अगर आपकी ऐसी सोच है तो भाई, आपकी सोच आपको मुबारक। ऐसे में तो, हमें तो दरिद्र भारत ही पसंद है, जहां कम से कम भेदभाव तो नहीं होता, लोग एक दूसरे को कम से कम आदर के साथ, सम्मान के साथ भोजन तो कराते है, आपने तो मानवीय मूल्यों की ही धज्जियां उड़ा दी, आप क्या भारत को श्रेष्ठ बनायेंगे, जब भारत के उपराष्ट्रपति के कार्यक्रम में ऐसा भेदभाव दिखाई पड़ता है, तो माफ करेंगे, हमें ऐसा स्मार्ट भारत नहीं चाहिए।

कमाल की बात है, इस रांची में एक से एक अखबार और चैनल हैं, उनके पत्रकार हैं, पर किसी की इस पर नजर नहीं जाती, ये केवल उपराष्ट्रपति की जय-जयकार करने, उनके भाषण लिखने और विभाग की जय-जय करने के लिए जाते है, पर अपने ही राज्य की महिलाओं के साथ कितना बड़ा अन्याय हो रहा है, उनके सम्मान के साथ कैसे खेला जा रहा है, उस पर इनकी नजर नहीं जाती, क्या इसे आप पत्रकारिता कहेंगे या राज्य सरकार की इनके द्वारा की जा रही चाटुकारिता।