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विद्रोही24.कॉम का असर, विज्ञापनों में दिखी राज्यपाल पर गांधी को नमन करना भूल गये CM रघुवर

आखिर रघुवर सरकार को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का ख्याल आ ही गया। आज राज्य के सभी प्रमुख अखबारों में आज से शुरु हो रहे वन्य प्राणी सप्ताह के विज्ञापन निकाले गये हैं, उस विज्ञापन में मुख्यमंत्री रघुवर दास के संदेश के साथ-साथ, राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के भी संदेश है। हम आपको बता दें कि पिछले कुछ महीनों से देखा जा रहा था कि रघुवर सरकार, राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को नजरंदाज कर रही थी तथा राज्य सरकार द्वारा निकाले जा रहे विज्ञापनों में उन्हें सम्मान व स्थान नहीं दिया जा रहा था।

जिसको लेकर www.vidrohi24.com ने रघुवर सरकार के विज्ञापन से राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू गायब, नहीं मिल रहा राज्यपाल को उचित स्थान नाम से एक समाचार कल प्रकाशित किया था। जिसका प्रभाव यह पड़ा कि रघुवर सरकार द्वारा आनन-फानन में आज राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को विज्ञापनों में स्थान देने की कोशिश की गई, जो आज प्रकाशित विज्ञापनों से पता चलता है।

दूसरी ओर आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है। पिछले साल इसी रघुवर सरकार ने महात्मा गांधी को समर्पित एक बड़ा सा विज्ञापन सारे अखबारों में प्रकाशित कराया था, पर

आज महात्मा गांधी को समर्पित विज्ञापन पूरे राज्य के अखबारों से गायब है, न उन्हें राज्य सरकार द्वारा श्रद्धांजलि दी गई है, न उन्हें नमन ही किया गया, जबकि बिहार सरकार के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने महात्मा गांधी को समर्पित एक बहुत ही सुंदर विज्ञापन पूरे बिहार के अखबारों में प्रकाशित कराया है।

कमाल है, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का पहला और अंतिम काम है, राज्य की जनता और राज्य सरकार के बीच समन्वय बनाना, एक बेहतर रिश्ते बनाना, पर अब यह विभाग, ये सारा काम छोड़कर, मुख्यमंत्री द्वारा आयातित कंपनी की सेवा में लग गया है, जिसका दुखद परिणाम अब सामने आ रहा हैं। राज्य के अखबारों से, राज्य की प्रथम नागरिक , राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू गायब हो जा रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर न तो मुख्यमंत्री और न ही राज्यपाल के संदेश नजर आये, जबकि पिछले साल दोनों के संदेश, एक साथ, एक पृष्ठ पर आये थे।

कुल मिलाकर अगर बात करें, तो अब साफ पता चलता है कि यहां अंधेर नगरी मची हैं। जो सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के अधिकारी हैं, वे अपनी पदोन्नति पाने के लिए वो हर गलत काम कर रहे हैं, जिनका इजाजत, उनकी जमीर भी नहीं देता। इनका पहला और अंतिम काम हो गया है, अपने उपर के अधिकारियों की आरती उतारना, उनके चरण-कमलों पर बलिहारी जाना, ताकि उपर के अधिकारियों की कृपा से वे नाना प्रकार के भौतिक सुखों का रसपान कर सकें। ऐसा करने में राष्ट्रपिता के सम्मान को ठेस पहुंचे या राज्यपाल को उचित स्थान न मिलें, इससे उन्हें क्या मतलब?