पलीते में आग लग चुकी है, चिनगारी धधक रही है, बस धमाके होने का इंतजार

आम तौर पर जहां भी सरकार हैं, वहां सरकार आम जनता के हितों का ख्याल करती है, उन पर विशेष ध्यान देती है, पर झारखण्ड में स्थिति उलट है, यहां सरकार जनहित के मुद्दे को हवा में उड़ा देती है, भ्रष्ट व्यक्तियों को बचाने के लिए अपने मंत्री तक के विभागीय इस्तीफे को स्वीकार कर लेती है, विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करा देती है, विपक्ष को महत्व नही देती है, तथा ज्यादातर समय अपने विधायकों को भी झिड़क देती है, यहीं नहीं राज्य के जो भी एक-दो ईमानदारी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी झारखण्ड में बचे हैं, वे झारखण्ड में नही रहना चाहते, वे शीघ्र केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले जाना चाहते है, क्योंकि वे सीएम के क्रियाकलापों तथा सीएमओ से इतने नाराज है कि एक पल भी झारखण्ड में रहना नहीं चाहते, ऐसे में अगर किसी को लगता है कि यहां सरकार चल रही है, तो ये उसकी बुद्धि की बलिहारी है।

सच्चाई यह है कि राज्य में आधे से अधिक सत्तारुढ़ दल के विधायक मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे हैं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ का बयान, जब जैसा तब तैसा वाला है, कभी तो ये बयान देते है कि सरकार को चाहिए कि मुख्य सचिव, ड़ीजीपी, एडीजी के मुद्दे पर तत्काल निर्णय ले, कभी अपने ही बयान से मुकर जाते है, लेकिन उनके इस बार-बार के बयान के बदलते रहने से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रदेश अध्यक्ष भी फिलहाल मुख्यमंत्री रघुवर दास के काम-काज से संतुष्ट नहीं है, पर चूंकि कुछ मजबूरियां है, इसलिए वेट एंड वॉच की पॉलिसी में हैं।

इधर सरयू राय की नाराजगी तथा उनका दिल्ली जाना, दो दिन बाद अर्जुन मुंडा का दिल्ली जाने का कार्यक्रम और इधर एक-एक कर नाराज विधायकों का दिल्ली आने-जाने का कार्यक्रम बता रहा है कि यहां सब कुछ ठीक नही चल रहा, यानी पलीते में आग लग चुकी है, चिनगारी धधक रही है, बस धमाके होने का इंतजार है। मुख्य सचिव राजबाला वर्मा पर लगातार प्रमाण के साथ भ्रष्टाचार का सबूत सीएम को दिये जाने के बावजूद भी, मुख्य सचिव के खिलाफ मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा कोई एक्शन नहीं लिये जाने पर सरयू राय धीरे-धीरे तल्ख होते जा रहे हैं, उन्होंने इस संबंध में नाराजगी स्पष्ट कर दी है।

यहीं नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कई अधिकारियों में भी सरकार के क्रियाकलापों से नाराजगी है, पर संघ के प्रचारकों एवं जिम्मेदार अधिकारियों को मुख्य बैठकों से अलग कर, ऐसे संघ के लोगों द्वारा जो सरकार की विभिन्न योजनाओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से लाभ ले रहे हैं, उनके द्वारा स्वयं निर्णय लेने की परंपरा तथा इसकी गलत सूचना उपर के अधिकारियों तक पहुंचाने से सीएम रघुवर दास को शासन करने का जीवनदान मिला है, नहीं तो यहां कब का सीएम बदल जाता।

इधर उपर के संघ के अधिकारियों और भाजपा के नेताओं को इस बात की जानकारी हो चुकी है कि सीएम के रुप में रघुवर दास अगर कन्टीन्यू कर जाते है तो भाजपा को आनेवाले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में एक-एक सीट के लाले पड़ जायेंगे। गैर अधिसूचित क्षेत्रों में नियोजन को लेकर उपजी संकट ने तो कई विधायकों को अपने इलाके में ही लोगों ने विलेन बना दिया है, कई गांवों और पंचायतों में तो भाजपा विधायकों की स्थिति ऐसी हो गई है कि वे जनता के सामने उठ-बैठ नहीं सकते, हालांकि गैर अधिसूचित क्षेत्रों की नियोजन नीति को लेकर छः सदस्यीय कमेटी बना दी गई, पर जब तक ये कमेटी अपनी रिपोर्ट देगी, उन रिपोर्टों को सरकार लागू करेगी, तब तक कई नियुक्तियां हो चुकी होंगी।

ऐसी हालात में इन अधिसूचित क्षेत्रों के युवाओं के उपर नियोजन का संकट मंडराता ही रहेगा, ऐसे में झारखण्ड के युवाओं ने तो संकल्प कर लिया है कि जब कभी चुनाव हो, भाजपाइयों को वोट नहीं देना हैं। जनता और युवाओं के इस गुस्से को झेलने की स्थिति फिलहाल झारखण्ड के किसी भाजपा नेता में नहीं है। ऐसे में, स्पष्ट है कि अगर केन्द्र ने झारखण्ड में चेहरा नहीं बदला तो समझ लीजिये राजस्थान ने जो थोड़े दिन पहले ट्रेलर दिखाया हैं, झारखण्ड तो पूरा फिल्म दिखा देगा।