दुष्कर्म का वर्णन आपत्तिजनक है, कृपया इससे बचे, क्योंकि अखबार बच्चे भी पढ़ते हैं

भाई ये कौन सी पत्रकारिता है? आप जनता को क्या दिखाना चाहते है? क्या लिख रहे हैं आप? कभी आपने सोचा है? आपने लिख दिया, ये शब्द आपको विचलित कर सकते हैं, मगर न्याय के लिए पूरा सच आना बाहर जरुरी है, और उसके बाद आप हेडिंग दे रहे हैं दरिंदों ने बार-बार दुष्कर्म किया… हम रोए तो नाजुक अंगों में पिस्टल, लकड़ी…खैनी डाल दी।

अरे यार, वे तो वहशी थे, दरिंदे थे, हो सकता है, ऐसा किया भी हो, पर क्या उस घिनौने कृत्य का वर्णन करना इतना जरुरी है, इस घिनौने कृत्य का वर्णन करने से आप उन पीड़िताओं का सम्मान बढ़ा रहे हैं या उन्हें समाज के बीच जलील कर रहे हैं, आप क्यों नहीं समझ रहे कि हमारा समाज भले ही भौतिक संसाधनों से युक्त होकर, नाना प्रकार के सुख-सुविधाओं में अपने जीवन का आनन्द खोज रहा हैं, पर सच पूछिये तो, आज भी इन्सान के रुप में हर जगह भेड़िये मौजूद हैं, ये कब क्या कर देंगे, क्या कर लेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता।

आप अखबार है, ये याद रखिये, लोग आपको पढ़ते है, आपकी भाषा से बच्चे सीखते हैं, आप ये भी जानिये कि आपका अखबार हर घर में जाता है, जहां छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बेटे-बेटियों, घर की बहुओं, माताओं-बहनों तक जाता है, याद रखिये हर महिला का सम्मान है, उस सम्मान की रक्षा करें, हो सकता है कि आपकी भावनाएं सही हो, पर भाषा हमें नहीं लगता कि ठीक हैं? याद रखिये, अगर कोई असभ्य व्यक्ति किसी सभ्य व्यक्ति को गाली देता है, तब वह सभ्य व्यक्ति किसी व्यक्ति को बताने के क्रम में उस गाली का उच्चारण नहीं करता, सीधे उसके जगह पर वह यह कहता है कि उसने आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया।

इसमें कोई दो मत नहीं, कि खूंटी की ये घटना ने, पूरे झारखण्ड की जनता के मुंह पर कालिख पोत दी है, राज्य सरकार को चाहिए कि इस पर कड़ा ऐक्शन लें, इस घटना में कोई व्यक्ति शामिल हो, चाहे वह पादरी हो या और कोई उग्रवादी संगठन, इस घटना ने साबित कर दिया कि चर्च और उग्रवादियों के बीच एक मधुर रिश्ता पनप रहा है, जिस पर रोक लगाना जरुरी है, किसी ने लिखा है कि आखिर बिना ग्राम सभा की अनुमति के वहां नुक्कड़ नाटक करने को किसने बोला था, तो मेरा जवाब है कि क्या अगर कोई ग्राम सभा के अनुमति के बिना, उक्त गांव में चला जायेगा तो उसे बलात्कार का शिकार बनाया जायेगा? उसकी हत्या कर दी जायेगी?

भाई आखिर हम कितना गिरेंगे? कृपया इसमें राजनीति नहीं लाइये, केवल सामाजिक समरसता को ढूंढिये, आग मत लगाइये, आग बुझाने का काम करिये, ये जो कलंक लगा है, उस कलंक को खत्म करने की दिशा में बढ़िये, पत्रकार पत्रकारिता करें पर ये ध्यान रखे कि उनकी भाषा में दुष्कर्म के सिर्फ समाचार हो, दुष्कर्म के वर्णन न हो, क्योंकि ये गलत परंपरा की शुरुआत है, इससे हमारा सामाजिक ताना-बाना प्रभावित होगा, ये मेरा अपना व्यक्तिगत विचार है, ऐसे आप अपनी ओर से स्वतंत्र है कि आप अपनी बात कैसे लोगों के बीच रखें।