अपनी बात

मैं 19 मई को पत्रकारों पर आई संकट को लेकर राज्य सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए एक दिवसीय भूख हड़ताल करुंगा

यह मेरा प्रण है – “हेमन्त सरकार की हठधर्मिता, मीडिया संस्थानों की क्रूरता तथा पत्रकार हित रक्षार्थ, मैं 19 मई को अपने घर पर एक दिवसीय भूख हड़ताल पर रहुंगा।” घर पर इसलिए, क्योंकि राज्य सरकार ने लॉकडाउन लगा रखा है, और सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करना एक जिम्मेवार नागरिक व पत्रकार का प्रथम कर्तव्य है। आप पुछेंगे कि यह एक दिवसीय भूख हड़ताल क्यों? तो मैं यही कहुंगा कि बस सरकार जागे और ईमानदारी पूर्वक ऐसे निर्धन पत्रकारों और उनके परिवारों के लिए अपने दायित्वों का निर्वहण करें, जो आज तक किसी ने नहीं किया।

यह एक दिवसीय भूख हड़ताल की घोषणा मैंने अपने लिए नहीं की है, बल्कि उन पत्रकार मित्रों के लिए की हैं, जो इस कोरोना काल में दिवंगत हो चुके हैं, जिनके परिवार फिलहाल अभावों से जूझ रहे हैं, जिन पर किसी का ध्यान ही नहीं। उनका दुर्भाग्य देखिये, मरने के बाद वे मीडिया संस्थान भी उनसे मुंह फेर ले रहे हैं, जहां और जिनके लिए उन्होंने अपनी जिंदगी खपा दी। इन्हीं कारणों से मैंने मीडिया संस्थानों के लिए क्रूरता शब्द का भी प्रयोग किया है।

सच्चाई यह भी है कि एसी में बैठनेवाले संपादकों/पत्रकारों को तो कोई दिक्कत ही नहीं होती, वे तो बीमार भी पड़ेंगे तो उनकी विशेष व्यवस्था हो जाती हैं, पर ये गरीब पत्रकार, जो प्रखण्डों/अनुमंडलों अथवा जिलों में ही रहकर बड़े-बड़े संस्थानों को अपनी सेवा देते हैं, क्या उनके परिवारों को जीने का भी हक नहीं है, इसीलिए हम कुछ मांगों को लेकर एक दिवसीय हड़ताल पर हैं, ये मांगे इतनी भी बड़ी नहीं है कि नहीं मानी जा सकती, बस संकल्प लेने का है।

क्या हैं वो मांगे?

  1. राज्य सरकार मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाए कि जिन संस्थानों में जो पत्रकार सेवा दे रहे हैं, वे संस्थाने खुलकर यह बताएं कि फलां पत्रकार जो दिवंगत हुआ, वो उनके संस्थानों से जुड़ा है, क्योंकि ये मामला सीधे एक पत्रकार के सम्मान व स्वाभिमान से जुड़ा हैं।
  2. मीडिया संस्थानें अपने यहां उन संवाददाताओं के लिए एक विशेष फंड बनाएं, जिस फंड से उन पत्रकारों को विशेष आर्थिक मदद प्राप्त हो सकें, जिससे कम से कम एक वर्ष तक दिवंगत पत्रकार का परिवार भरण-पोषण करते हुए, अपने लिए एक नया मुकाम ढुंढ सकें।
  3. राज्य सरकार जो बड़े-बड़े संस्थानों को विज्ञापन जारी करती है, उन विज्ञापनों पर पत्रकारों के कल्याण के लिए दस प्रतिशत सेस लगाएं, और इस सेस को पत्रकार कल्याण कोष बनाकर उसी में जमा कराती जाये तथा इससे प्राप्त राशि निर्धन पत्रकारों एवं उनके परिवारों पर उस वक्त खर्च हो, जब वे संकट में हो, यह अति आवश्यक है।