e-pass, मतलब हेमन्त अपने सलाहकारों से सावधान नहीं रहे, तो उनकी लोकप्रियता व साख दोनों मिट्टी में मिल जायेगी

कल यानी 15 मई की ही बात है। बिहार के सरयू राय जो जमशेदपुर पूर्व से विधानसभा चुनाव लड़कर झारखण्ड विधानसभा पहुंचे हैं। जिनके बारे में कहा जाता है कि वे बहुत ही ईमानदार है। उन्होंने सोशल साइट फेसबुक पर एक बात लिखी, वो बात थी – “कोरोना की दूसरी लहर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साख घटी है, पर लोगों में विश्वास नहीं घटा है। दूसरी ओर राज्य में मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की साख पूर्व की तुलना में बढ़ी है। इस अनुपात में उन्हें लोगों के बीच विश्वास भी बढ़ाना होगा।”

मतलब जिनको राजनीति की एबीसीडी का भी ज्ञान हैं, उन्हें पता है कि इन वाक्यों के लिखने का क्या मतलब होता है, और इससे किसको लाभ मिलना है? खैर, राजनीति में जो रहता है, वो अपने हिसाब से स्वयं को लाभान्वित करने के लिए हर प्रकार की तरकीब इस्तेमाल करता है, और हमें लगता है कि शायद सरयू राय के लिखे इन शब्दों का कमाल कहिये या राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के यहां काम कर रहे महान सलाहकारों के दिमाग की उपज, ये ई-पास का मामला पूरे झारखण्ड में हेमन्त सोरेन की लोकप्रियता तथा उनकी साख को मिट्टी में मिलाकर रख दिया है।

ये बातें मैं इसलिए लिख रहा हूं कि जिस राज्य में लोगों की भूख से मौत होती है, जहां के लोग रोजगार के लिए भारी संख्या में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं, जहां के लोगों को दो जून की रोटी की जुगत लगाने में ही पसीने छूट जाते हो, वो अपने घर से निकलने के लिए, अपना काम ठीक-ठाक करने के लिए ई-पास कहां से बनायेंगे? क्या सरकार के पास इस बात का भी डाटा है कि राज्य में कितने लोगों के पास स्मार्ट फोन हैं? या राज्य सरकार बता सकती है कि जिनके वोट से वो अभी सत्ता सुख भोग रहे हैं, उनलोगों में से कितने लोगों को अंग्रेजी आती है?

या कितने लोगों को ओटीपी के झमेले से मुक्त होने की आइडिया आती है? सच्चाई यही है कि जिनके पास स्मार्ट फोन है, वे भी ये नही जानते कि ई-पास कैसे बनाये जाते हैं? केवल अखबार या चैनल या पोर्टल के माध्यम से यह कह देना कि आप ई-पास बनाकर ही लॉकडाउन में अपना काम कर सकते हैं, तो मैं कहुंगा कि ये किसी भी सत्ता या सत्ता के बादशाह की दिमागी फितूर के सिवा कुछ भी नहीं।

ठीक इसी प्रकार के काम आज से दो वर्ष पूर्व तक राज्य के भाजपाई मुख्यमंत्री रघुवर दास अपने दिव्य सलाहकारों के माध्यम से किया करते थे, नतीजा आज क्या है? सबको पता है, स्थिति यह है कि आनेवाले समय में जब भी कभी भाजपा सत्ता में आई तो निःसंदेह अब वे तो मुख्यमंत्री बनने से रहे और मैं कहता हूं कि इस प्रकार के ई-पास बनवाने का दिमाग देनेवालों की बात पर राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन चलते रहे, तो निःसंदेह मानिये कि लगातार तीन उपचुनाव जीत लेनेवाले हेमन्त सोरेन, अब जब कभी चुनाव होंगे, ये अब चुनाव जीत पायेंगे, इसमें अब हमें संदेह है, क्योंकि वर्तमान ही आगे चलकर बुनियाद का काम करेगा, और बुनियाद बनानेवाले, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की बुनियाद को बड़े ही दिल से खोखले करने में लग चुके हैं। जानकार बताते है कि इस ई-पास बनवाने में कई खामियां हैं…

  1. मोबाइल ओटीपी वेरिफिकेशन की सुविधा नहीं है यानी अगर कोई चाहे तो मुख्यमंत्री या राज्यपाल के नंबर का इस्तेमाल करके भी इसमें लॉग इन कर सकता है या फिर कोई आलतू-फालतू जैसे बिना नंबर के नंबर का इस्तेमाल करके लॉग इन कर सकता है।
  2. आधार कार्ड नंबर के बदले आप कोई भी 12 अंक डाल दीजिए, स्वीकार कर लेगा। बिना आधार की तस्वीर अपलोड किये भी आप आगे बढ़ सकते हैं। आधार कार्ड का नंबर सही दिया जा रहा है या गलत यह वेबसाइट इसकी जांच नहीं कर सकता है।
  3. पास निर्गत करने की पूरी प्रक्रिया ही ढीली है। कोई भी इसका किसी भी विवरण के साथ दुरूपयोग कर सकता है। इस वेबसाइट में भरी जा रही जानकारी किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं है यानी अगर आपने अपना खाता यहां बनाया है, तो मैं आसानी से आपके मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करते हुए आपका पासवर्ड रिसेट कर सकता हूं। आपको इसकी खबर तक नहीं होगी।
  4. पैदल बाहर निकलनेवालों के लिए साफ निर्देश नहीं है। अगर कोई पैदल या साइकिल वाला या ठेलेवाला हुआ तो वह पास कैसे बनायेगा। यह व्यवस्था सिर्फ वाहन मालिकों के ही पास निर्गत कर सकती है।
  5. कायदे से मोबाइल पर मैसेज आना चाहिए ताकि स्पष्ट हो कि जिस व्यक्ति को पास निर्गत​ किया है, यह ई-पास उसी को जा रहा है। पुलिसिया जांच भी सिर्फ पास देखकर न हो, बल्कि एसएमएस देखकर भी हो। तकनीकी भाषा में इसे डूयल वेरिफिकेशन कहते हैं। अभी की स्थिति यह है कि निर्गत पास को आसानी से फोटोशॉप कोई भी व्यक्ति अपने नाम का पास बना सकता है।
  6. कल शाम से ही यह वेबसाइट स्लो हैं, जबकि अखबारों के अनुसार अभी लगभग सवा लाख ही पास निर्गत हुए हैं। जब संभालने की क्षमता नहीं थी तो क्यों जारी किया गया पास सिस्टम? सोचिए, सवा लाख पास निर्गत करने में ये हाल है तो सिर्फ रांची की आबादी लगभग 10 लाख से ज्यादा है। सभी को निर्गत करना पडे, तो इस व्यवस्था के पसीने छूट जायेंगे।
  7. इस पास निर्गत करने की व्यवस्था में उपयोगकर्ता के फोटो होने का भी विकल्प होना चाहिए था, जो नहीं है। जिसके कारण लोग आसानी से बराक ओबामा, इमरान खान, नरेंद्र मोदी और कोरोना कुमारी जैसे नाम का पास बना कर इस व्यवस्था का माखौल उड़ा सकते हैं या उड़ा रहे होंगे।

ये तो रही खामियों की बात, अब देखिये हजारीबाग के विधायक मनीष जायसवाल इस ई-पास के बारे में क्या कह रहे हैं – “ यह स्क्रीन शॉट मैंने स्वयं अभी से कुछ मिनटों पहले ली है, वेबसाइट सुबह से ना खुलने की दर्जनों शिकायत सुनने के बाद। हजारीबाग जिले से मुझे सुबह से लगातार शिकायतें आ रही है, व्यवस्था की इस बदहाली पर हम जन-प्रतिनिधि क्या जवाब दें, अपनी जनता को? अविलम्ब वैकल्पिक व्यवस्था स्थापित की जाए।”

मतलब कुछ नौसिखुओं/सलाहकारों ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि आम जनता परेशान, सीएम हेमन्त सोरेन की साख भी समाप्त। लेकिन इस प्रकार के दिमाग देनवाले लोगों का क्या है? उन्हें तो महीने के अंतिम दिन या पैकेज के रुप में करोड़ों रुपये मिल ही रहे हैं, दुकान चलती जा रही है, जनता जाय भाड़ में, हम रहे बम-बम, सीएम के इमेज का निकल जाये, हमेशा के लिए दम।