अपनी बात

ओ दुबई जानेवालों, हाथी उड़ानेवालों, वहां रोड शो करना बाद में, पहले बाघमारा के मजदूरों का सुध तो ले लो

मुख्यमंत्री रघुवर दास, भारत के विभिन्न राज्यों में रह रहे मुख्यमंत्रियों में सर्वाधिक होनहार है, इनके आस-पास रहनेवाले लोग, इन्हें ऐसी-ऐसी बुद्धि देते हैं कि उस बुद्धि से इन्होंने झारखण्ड को एक नई दिशा दे दी है, पूरा झारखण्ड, न्यू झारखण्ड में परिवर्तित हो गया है, जिसका परिणाम है – राज्य के विभिन्न जिलों के उपायुक्त सीएम रघुवर दास के लिए अच्छी भीड़ एकत्रित कर रहे हैं, उन भीड़ में ताली बजानेवालों से लेकर प्रश्न पुछनेवाले तक की अच्छी व्यवस्था हो जा रही हैं, और क्या चाहिए मुख्यमंत्री को, और रही-सही कसर, अखबारों-चैनलों में काम करनेवाले संपादकों के समूह विज्ञापन का खेल खेलकर, अपना कमीशन सुरक्षित कर, वो सब काम कर ही देते हैं, जिनकी सीएम और उनके कनफूंकवों को आवश्यकता होती हैं।

पता नहीं, राज्य में कार्य कर रहे, आयकर विभाग के अधिकारी को पता भी है या नहीं कि रांची के विभिन्न चैनलों व अखबारों में कार्य कर रहे संपादकों/प्रमुखों की टीम अचानक धन्नासेठ कैसे हो जा रहे हैं? जबकि उसी चैनल व अखबारों में काम करनेवाले अन्य सामान्य पत्रकारों की हालत क्यों पतली होती जा रही है। खैर, चलिए अब हम बात करते हैं, झारखण्ड में हाथी उडानेवाले महान मुख्यमंत्री रघुवर दास के करिश्माई विधायक ढुलू महतो की।

जनाब ढुलू महतो, बाघमारा से भाजपा के विधायक है। वामपंथी मजदूर संगठन एटक से संबंद्ध एक मजदूर यूनियन भी चलाते हैं, इनकी एक अपनी अलग सेना हैं, जिसे टाइगर सेना कहते है और वर्तमान में ये सीएम रघुवर दास के खासमखास एवं सर्वाधिक प्रिय विधायक है, जनाब एक बार ये सीएम को बोलते है, और सीएम एक पांव पर खड़े होकर, इनके कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए रांची से धनबाद तक की दौड़ लगा देते हैं।

सूत्र बताते है कि एक समय था कि भाजपा बिहार में वनांचल की राजनीति किया करती थी, और उस समय इधर के ताकतवर नेता हुआ करते थे, समरेश सिंह जो एक अपना मजदूर संगठन चलाया करते थे, और भाजपा की राजनीति भी किया करते थे, जब इनके द्वारा मजदूर संगठन चलाने की बात भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी तक पहुंची तो समरेश सिंह को कहा गया कि वे अपने मजदूर संगठन को भारतीय मजदूर संघ से संबंद्ध कर लें, पर समरेश सिंह मानने को तैयार नहीं थे।

फिर क्या था? लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा को इस इलाके में शून्य से शुरु करने की घोषणा की और समरेश सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया,  और एक आज की भाजपा को देखिये बाघमारा का भाजपा विधायक ढुलू महतो वामपंथी संगठन से संबंध एटक से जुड़ा एक मजदूर संगठन भी चलाता है, उसकी एक अपनी टाइगर सेना भी है, और भाजपा की राजनीति भी कर रहा है, और कोई उसे बोलनेवाला नहीं।

इधर इंडस्ट्रीज एंड कामर्स एसोसिएशन धनबाद के अध्यक्ष बीएन सिंह विद्रोही 24. कॉम से बातचीत में कहते है कि पूरे बाघमारा में 100 से भी ज्यादा हार्डकोक में ताले लग गये। आठ कोलियरी में लोडिंग ठप है, लाखों मजदूर बेकार बैठे हैं, बीसीसीएल के कई कोलियरी में उत्पादन तो हो रहे हैं, पर लोडिंग ठप हैं, पर किसी को इस बात की चिंता नहीं। भाजपा विधायक ढुलू महतो की रंगदारी सारी सीमाओं को पार कर गई है, पहले ये रंगदारी 450 रुपये थी, फिर बढ़कर 650 हुई और अब बढ़कर यह 1250 रुपये हो गई, अब ऐसे हालत में यहां काम करना मुश्किल है।

बीएन सिंह ने यह भी कहा कि आश्चर्य की बात है कि भाजपा विधायक ढुलू महतो की रंगदारी की लिखित कहानी और यहां की दुर्दशा के बारे में उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री रघुवर दास, केन्द्रीय कोयला मंत्री, झारखण्ड के मुख्य सचिव, झारखण्ड के पुलिस महानिदेशक, छोटे से बड़े पदाधिकारियों को दी, पर क्या मजाल, कि ढुलू महतो पर इसका कोई असर दिख जाये। इधर काम ठप हो जाने से मजदूरों की हालत पस्त है, उनके सामने भूखमरी की संकट है, यहीं कारण है कि गिरिडीह के सांसद रवीन्द्र पांडे को इस बात की जब जानकारी मिली तो उन्होंने कुछ मजदूरों के घर में राशन-पानी की व्यवस्था कराई।

अब सवाल उठता है कि कोई भी सांसद या व्यक्ति कितने दिनों तक किसी मजदूर के घर में राशन-पानी की व्यवस्था करेगा? क्योंकि यहां मजदूरों की संख्या छोटी-मोटी तो हैं नहीं, उद्योग-धंधे सब चौपट हैं, ऐसी दुर्दशा धनबाद में उदयोग की, उन्होंने कभी नहीं देखी और न ऐसी सरकार देखी, जो न मजदूरों की सुने और न ही उद्योगपतियों की सुनें। आश्चर्य होता है कि एक ओर मुख्यमंत्री विदेश का दौरा करते है कि रोजगार बढ़ें और लोगों को नौकरियां मिले, यहां तो सब कुछ हैं, पर प्रशासन ही नहीं दिखता और न ही यहां के उद्योग को संरक्षण मिले, इस ओर सीएम रघुवर का प्रयास ही देखा, अब ऐसे में यहां के मजदूर भूखों मरें, उद्योग धंधे नष्ट हो जाये, तो भाजपा को इससे क्या मतलब?  उन्हें तो अपने प्रिय ढुलू महतो से अधिक कुछ सूझ ही नहीं रहा।