नीति आयोग के रिपोर्ट पर इतराने की जरुरत नहीं, राज्य में स्वास्थ्य सेवा अब भी खराब

ज्यादा दिनों की बात नहीं हैं। याद करिये 8 दिसम्बर 2017, नीति आयोग ने संसदीय समिति के सामने एक प्रजेंटेंशन दिया था, जिसमें नीति आयोग का कथन है कि झारखण्ड में स्वास्थ्य और प्राथमिक शिक्षा की बद से बदतर स्थिति है। झारखण्ड में पांच साल तक के 45.3 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार है। पांच साल से कम उम्र के 47.8%  बच्चे अंडरवेट है। स्वास्थ्य के हालात ये है कि यहां एक हजार की आबादी पर 0.14 डाक्टर और एक हजार की आबादी पर 0.24 ही बेड है यानी झारखण्ड का स्वास्थ्य सेवा भगवान भरोसे है। शिक्षा और बिजली के हालात भी ठीक नहीं है। बिजली पहुंचाने के मामले में नीचे के तीन राज्यों में बिहार, नागालैंड के बाद झारखण्ड का नंबर है।

हम आपको बता दें कि नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी है और उनकी देखरेख में ही रणनीति तैयार की जाती है। यह प्रजेंटेंशन नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी निदेशक अमिताभ कांत ने दिया था और जब वे प्रजेंटेंशन दे रहे थे, तो इस मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व कानून मंत्री वीरप्पा मोइली, पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी, आदि भी मौजूद थे।

और आज की स्थिति देखिये, आज नीति आयोग की हेल्दी स्टेट्स प्रोग्रेसिव इंडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में सुधार के प्रयास पर झारखण्ड पहले स्थान पर आ गया हैं, और इसे लेकर राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपनी पीठ थपथपा दी और लगे हाथों रांची से प्रकाशित अखबारों व चैनलों ने रघुवर स्तुति गानी शुरु कर दी, वाह-वाह करने लगे। नीति आयोग ने कल जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें बताया है कि स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में झारखण्ड देश में पहले नंबर पर हैं। ऐसा झारखण्ड ने नवजात शिशु मृत्यु दर, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर, टीकाकरण संस्थागत प्रसव व एचआईवी के इलाज मामले में बेहतरीन सुधार लाकर किया हैं। इस आकड़ें  का आधार 2014-15 से लेकर 2015-16 को बनाया गया हैं, जिसमें मामूली सुधार हैं, जिसको लेकर आप ज्यादा प्रसन्न भी नहीं हो सकते। आप खुद देखिये –

नवजात शिशु मृत्यु दर – 2014-15 में प्रति हजार शिशुओं में 24 की मौत हो जाती थी, जबकि 2015-16 में इसकी संख्या 23  हैं। पांच से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 2014-15 में प्रति हजार बच्चों में 44 थी जो 2015-16 में घटकर 39 हो गई। नवजात बच्चों का वजन 2014-15 में 7.8 प्रतिशत था, जो 2015-16 में घटकर 7.4 प्रतिशत हैं। टीकाकरण – 2014-15 में यह 80.8%  था, जो 2015-16 में 88.1% हो गया, यानी आज भी जो झारखण्ड की स्वास्थ्य सेवा हैं, वह कोई बेहतर स्थिति में नहीं हैं, यहीं कारण हैं, केन्द्र ने राज्य के 24 में से 19 जिलों को बेहतर स्थिति में न पाकर चिंता व्यक्त की थी और जो ये सुधार भी हैं वह तीन साल पुराने हैं, इस पर हम ज्यादा उछल भी नहीं सकते, बहरहाल अगर आज की स्थिति देखे तो और भयावह हो सकती हैं, क्योंकि राज्य में स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह चरमरा गई हैं, और ये हम नहीं बल्कि नीति आयोग ने ही कुछ महीने पहले कहे थे, ऐसे में इस रिपोर्ट पर इतराना कैसा?