अपनी बात

हमें खुशी हैं कि इंसानियत आज भी जिंदा है, प्रकाश सहाय जी आपका जवाब नहीं

प्रकाश सहाय, एक खांटी प्राध्यापक, खांटी पत्रकार और सबसे बड़ा खांटी इन्सान हैं, एक अच्छे इन्सान, जिनका दिल भारतीय संस्कृति और इन्सानियत के लिए सदैव धड़कता रहता है। आज अहले सुबह इन्होंने अपने फेसबुक सोशल साइट पर एक पोस्ट डाला है, जो हृदय विदारक है, मार्मिक है, हृदयस्पर्शी है। हो सकता है, किसी के लिए ये घटना छोटी हो सकती है, पर किसी के लिए ये घटना बहुत बड़ी भी हो सकती है, क्योंकि जो पुरुष या महिला अपना पेट भरने के लिए दिन-रात माथे पर एक बोरी लेकर, दो पैसों के लिए इधर से उधर भटकती रहती है, उसकी तीन-चार दिन की सारी कमाई कोई चोर-उचक्का लेकर भाग जाये, तो उसके दिल पर क्या बीतेगी, ये बातें प्रकाश सहाय ने बड़े ही सुंदर ढंग से उकेरी है, तथा उक्त महिला को उन्होंने अपनी ओर से ढाढ़स भी बंधाया तथा आर्थिक मदद भी की।

प्रकाश सहाय ने इस पोस्ट को अपने पत्रकार मित्र जो विभिन्न अखबारों में अच्छे पोस्ट पर काबिज है, उनके हृदय को भी झकझोरने की कोशिश, यह कहकर की है, कि अगर मैं संपादक होता तो इस खबर को प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से देता। अब पता नहीं ये शब्द उनके कितने संपादक मित्रों को स्पर्श करता है, ये तो भविष्य की बाते हैं, वर्तमान तो यहीं है कि लोग गिरते जा रहे हैं, और कितने गिरेंगे, इसका आज तक कोई पैमाना ही नहीं बना, पर खुशी इस बात की भी है कि इस दुनिया में प्रकाश सहाय जैसे लोग भी काफी संख्या में हैं, जो एक खुबसुरत दुनिया बनाने में लगे हैं, जिन पत्रकार मित्रों को इन्होंने ये खबर शेयर की हैं, उनके नाम हैं – अनुज सिन्हा, उदय वर्मा, शंभू नाथ चौधरी, दीपक अम्बष्ठ, शिव अग्रवाल, रजत कुमार गुप्ता।

घटना आज की है। सुबह सात बजे, शिवगंज गली में मुढ़ीवाली महिला से एक उचक्के ने मुढ़ी लेने की बात कहकर, उसकी बोरी सर से उतरवाया और उसके कमर से लटक रही पैसे की पोटली, जिसमें पांच से छः सौ रुपये थे, जो दो-तीन दिन की कमाई थी, खींचकर ले भागा, अपनी दो-तीन दिन की कमाई लूटा देख, उक्त मुढ़ी बेच रही महिला की चीख मुंह में ही दब कर रह गई, वो अपना लूटी हुई कमाई की सोच में पागल सी हो, रोते-रोते जमीन पर बैठ गई। दुख और हताशा में उसका रोआं-रोआं कलप रहा था,  कुछ लोगों ने मुढ़ी खरीदी और अधिक पैसे दिये। स्वयं प्रकाश सहाय ने उस महिला को पांच सौ रुपये दिये और उसका रोना बंद कराया।

प्रकाश सहाय बताते है कि उन्हें याद है कि तत्कालीन एसपी अरविन्द पांडेय की संवेदनशीलता। ऐसे ही एक गरीब की साइकिल छीन कर लूटेरा भाग गया था। थाना संवेदनहीन बना था। अरविन्द पांडेय ने थानेदार से कहा कि आपकी जिम्मेदारी है, इसकी साइकिल बरामद करना और जब तक साइकिल बरामद नहीं होती है, आप अपने स्तर से इसे एक साइकिल दें और उन्होंने दिलवाया भी, पर आज की पुलिस संवेदनहीन बन चुकी है, अपने इलाके के गलियों को पुलिस जानती-पहचानती तक नहीं, थानेदार को भी इलाके के लोग नहीं पहचानते, कभी सड़कों पर दिखाई ही नहीं देते थानेदार और अखबारों के लिए तो यह छिनतई सिंगल कॉलम की खबर भी नहीं, अगर वे अखबार के संपादक होते तो मुढ़ीवाली की खबर पहले पन्ने पर फर्स्ट लीड खबर होती।