राजनीति

जो संसद में राम, जानकी और हनुमान को गरियाया, भाजपा के लोगों ने उसे माथे बिठाया

जो व्यक्ति राज्यसभा की एक टिकट नहीं मिलने से बिदक कर सपा को गरियाने लगा, जया भादुड़ी के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करने लगा, जो व्यक्ति संसद में खूलेआम हमारे आराध्य को गरिया चुका है, यह कहकर कि…

व्हिस्की में विष्णु बसे, रम में बसे हैं राम।

जिन में माता जानकी, ठर्रे में हनुमान।।

बोलो सियावर रामचंद्र की जय।।

उस व्यक्ति को अगर कोई पार्टी अपने दल में स्थान देगा, यह सोचकर कि उसे 2019 में लोकसभा की चुनाव जीतनी हैं, तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसका अंत समय अब आ चुका है, उसे विधाता भी सर्वनाश होने से नहीं बचा सकते। भाजपा को ये भी बात गांठ बांध लेना चाहिए कि भारत की जनता ने जिस पार्टी पर सर्वाधिक प्रेम लूटाया, उसे दूसरी बार सर्वनाश की स्थिति में भी ला दिया। जैसे 1977 के लोकसभा चुनाव के बाद 1980 का मध्यावधि चुनाव तथा 1984 के बाद 1990 में हुए लोकसभा चुनाव को याद कर लेना चाहिए, अगर फिर भी ये लगता है कि इवीएम मशीन की कलाबाजी से वह सत्ता हथिया लेगा, उसे मालूम होना चाहिए कि ये कलाबाजी दूसरे भी आजमा सकते हैं, और ऐसे में भाजपा कहा रहेगी, शायद उसे पता नहीं।

फिलहाल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की विधानसभा के क्या चुनाव परिणाम आयेंगे, वह बता देंगे कि भाजपा का क्या हाल होनेवाला हैं? सूत्र बता रहे हैं कि भाजपा का इन दिनों राज्यों से विदाई तय हैं, क्योंकि यहां की जनता राज्य सरकार के क्रियाकलापों से इतनी नाराज हैं कि वह भाजपा नेताओं को देखना तक पसंद नहीं करती।

नरेश अग्रवाल प्रकरण ने तो भाजपा की वो फजीहत कर दी है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं की हालत पतली हो गई, उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा कि करें तो क्या करें, क्योंकि जो व्यक्ति भगवान राम, जानकी और हनुमान के खिलाफ वह भी संसद में अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर सकता हैं, वह किसी की भी इज्जत उतार सकता हैं। ऐसे भी भाजपा ने जिस प्रकार से अपना चरित्र बदला हैं, उससे साफ लग रहा है कि वह अगला चुनाव जीतने के लिए कुछ भी कर सकती हैं, उसका मूल मकसद सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतना हैं, चरित्र और संस्कार भाड़ में जाये, इससे उसे कुछ लेना-देना नहीं। उसका सुंदर उदाहरण है, बंगाल के मुकुल राय, महाराष्ट्र के नारायण राणे या फिर हिमाचल से पूर्व में पंडित सुखराम का भाजपा से संयोग।

वरिष्ठ समाजसेवी मुकुटधारी अग्रवाल तो भाजपा के इस नये रुप को देखकर साफ कहते है कि थूक कर चाटना साहित्य में वीभत्स रुप माना गया है, लेकिन अब राजनीति में इसे शृगांर रस मान लिया गया है। आजकल थूक कर चाटनेवाले दलबदलूओं का स्वागत किया जा रहा है, यह आज की राजनीति का शृंगार पक्ष है।

वरिष्ठ पत्रकार गंगेश गुंजन इस प्रकरण पर साफ कहते है कि नरेश अग्रवाल सरीखे लोग सामाजिक कोढ़ हैं, जो इसे पालना चाहे, पाले। जिन्हें ये छोड़कर आये, वे खुशकिस्मत है। दुनिया का कोई संस्कार राष्ट्र के खिलाफ इनकी सोच और वक्तव्यों को धो नहीं सकता, सत्ताधारी पार्टी जब ये तमीज भूल जाये, तो कांग्रेस हो जाती हैं। इधर भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का दल, नरेश अग्रवाल का अभिनन्दन कर रहा हैं।

वहीं भाजपा कार्यकर्ता नरेश अग्रवाल द्वारा उनके आराध्य को दिये गये गालियों को अब तक भूल नहीं पायें हैं, जिस कारण भाजपा में ही कार्यकर्ताओं का एक बहुत बड़ा भाग, नरेश अग्रवाल को पचाने को तैयार नहीं हैं, हालांकि भाजपा के कुछ शीर्षस्थ नेताओं को लगता है कि नरेश अग्रवाल के पार्टी में शामिल होने से बचा-खुचा वैश्य वर्गों का जमात भी उनके साथ हो जायेगा, पर ये नहीं पता कि इस कुकुत्य से भाजपा ने अपनी रही-सही विश्वास को भी गवां दिया हैं, आनेवाले समय में भाजपा को अभी से ही बोरिया-बिस्तर बांधने को तैयार हो जाना चाहिए।