भला, ऐसी घिनौनी कांड को लेकर हो रहे प्रदर्शन में कोई दांत निपोड़ता है पर यहां तो…

जरा उपर दिये गये तस्वीर को ध्यान से देखिये, ये हैं हमारे देश के मूर्धन्य नेता, जो दिल्ली के जंतर-मंतर में, हाथों में मोमबती लेकर, मुजफ्फरपुर के बालिका गृह में बच्चियों के साथ हुए यौन शोषण एवं मौत को लेकर, दांत निपोड़ते हुए अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं।

सचमुच इन नेताओं का गुस्सा भी विचित्र होता हैं, इनके गुस्से में भी प्यार छलकता हैं, हंसी का पुट होता हैं, जरा देखिये इन नेताओं के भीड़ में कैसे दो नेता अपनी मुस्कुराहट बिखेर रहे हैं, अब यहीं सवाल आम जनता से, कि क्या मुजफ्फरपुर में हुए इस घिनौने कांड के खिलाफ, जब आप प्रदर्शन करेंगे, तो आपकों हंसी आयेगी, या चेहरे पर आक्रोश होगा?

जरा उपर के चित्र को देखिये, जिसमें कुछ नेता गंभीर मुद्रा में हैं, उनके चेहरे से लगता है कि वे आक्रोशित हैं, बिहार में हुए इस घटना को लेकर वे गुस्से में हैं, वे दोषियों को दंड दिलाना चाहते हैं, तथा राज्य सरकार को सही मायनों में कटघरे में रखना चाहते हैं, पर जरा इसी चित्र में वामपंथी नेता सीताराम येचुरी और कभी जदयू के बड़े नेता मानेजानेवाले शरद यादव के चेहरे को देखिये और पढ़िये, आपको पता लग जायेगा, कि सही मायनों में इन्हें इस घटना से कोई लेना-देना नहीं, ये तो सिर्फ इस प्रदर्शन में भाग लेकर इसका राजनीतिक माइलेज लेना चाहते हैं।

और इस राजनीतिक माइलेज लेने के चक्कर में कभी नीतीश कुमार के चेहरे में महान पराक्रम देखनेवाले कई नेताओं ने भारी-भरकम बयान दे डाला, जो कल अखबारों और आज के प्रमुख चैनलों में दिख जायेंगे, पर जो उपर दिये गये चित्र में कुछ नेताओं की जो हंसी दिख रही हैं, क्या उस हंसी पर भी अखबार व चैनल के लोग प्रकाश डालेंगे कि आखिर प्रदर्शन के दौरान वह कौन सी घटना हो गई, कि कुछ नेता आक्रोशित थे और कुछ नेता हंसी में लीन थे।

सच्चाई यह है कि मरते गरीब हैं और शोषित गरीब होते हैं, चाहे सरकार किसी की भी हो, यूपीए का हो या एनडीए का, और जो इस दौरान विपक्ष में होता है, वह इन दर्दनाक घटनाओं से राजनीतिक माइलेज लेने की कोशिश करता है, न कि उनकी संवेदनाएं शोषित लोगों के तरफ होती है, नहीं तो अगर आपको ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी है तो देश में हुए हृदय विदारक घटनाओं में प्रभावित परिवारों से जाकर पुछिये कि देश के कितने नेताओं ने उनके घर जाकर, उनकी सूध ली, प्रत्युत्तर आपको मिल जायेगा। मैं ये नहीं कहता कि देश के सारे नेता ऐसे ही हैं, पर इतना जरुर कह सकता हूं कि सभी संवेदनशील नहीं हैं, बल्कि ज्यादा संवेदनहीन हैं, जिन्हें पता भी नहीं होता कि कहां हंसना है और कहां रोना है?