मेडिकल प्रोटेक्शन बिल के खिलाफ एवं बेहतर जनस्वास्थ्य नीति को लेकर सड़कों पर उतरेंगे बुद्धिजीवी

झारखण्ड सरकार के हिंसा एवं संपत्ति नुकसान निवारण विधेयक 2017 को आत्मघाती, जनविरोधी, काला कानून, चालाकी भरा नामकरण (मेडिकल प्रोटेक्शन बिल) करार देते हुए एवं उसके विरोध में सहज, सस्ती, सुरक्षित जनस्वास्थ्य नीति समेत सामाजिक सेवा में निजी स्वास्थ्य सेवाओं की भूमिका पर सामाजिक, मानवाधिकार, जनस्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, संगठनों, विभिन्न ट्रेड यूनियनों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की एक आवश्यक बैठक का. महेन्द्र सिंह भवन, मेन रोड, रांची में आयोजित हुई।

इस बैठक के बाद प्रेस से बात करते हुए वक्ताओं ने कहा कि यह बिल लापरवाह, गैर-जिम्मेदार, असंवेदनशील डाक्टरों को जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ करने, मरीजों को लाइसेंसी मर्डर करने की छूट देने जैसा होगा, आखिर क्या जरुरत आ पड़ी, इस तरह के जनविरोधी, आत्मघाती, काले कानून बनाने की, जबकि हिंसक प्रवृतियों पर रोक लगाने के लिए भारतीय संविधान में आज भी कई धाराएं प्रमुखता से मौजूद हैं, जिस पर आज भी इन्हीं धाराओं के अधीन हिंसक प्रवृत्ति रोकने का काम शासन-प्रशासन करती आ रही है, ऐसे  में स्पेशल लोगों के लिए स्पेशल कानून की क्या आवश्यकता?

वक्ताओं ने कहा कि समाज में जान बचानेवाले डाक्टरों को पृथ्वी पर भगवान का रुप दिया जाता है, आज कुछ गैर जिम्मेदार डाक्टरों की वजह से ये शैतान का रुप ले बैठे हैं, उन पर डाक्टरों की संस्था आइएमए एवं झासा को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, पर आइएमए एवं झासा को वैसे लोग प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जो मानवीय मूल्यों के प्रति असंवेदनशील हो चुके हैं, इन्हीं कारणों से इस संस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया गया है, झारखण्ड सरकार को फौरी तौर से इस बिल को रद्द कर झारखण्ड के लिए सहज, सुरक्षित जनस्वास्थ्य नीति बनानी चाहिए।

वक्ताओं ने कहा कि वर्तमान की ज्यादातर निजी स्वास्थ्य सेवाओं का कार्य सिर्फ मुनाफा-दर-मुनाफा कमाना रह गया है, निःशुल्क सामाजिक भूमिका सप्ताह महीना या साल में भी बेहतर स्पेशलिस्ट डाक्टरों से इलाज, निःशुल्क दवा, निःशुल्क ऑपरेशन होना चाहिए, हास्पिटल-नर्सिंग होम में रिसर्च-ट्रस्ट सेन्टर के नाम पर क्या गोरखधंधा हो रहा है, झारखण्ड गठन से अब तक रिसर्च एवं ट्रस्ट के नाम पर इन निजी हास्पिटल-नर्सिंग होम ने क्या किया, इसे सार्वजनिक करना चाहिए, डाक्टरों द्वारा मरीजों को दी जानेवाली पर्ची की भी ऑडिट हो, सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त-दुरुस्त किया जाये।

वक्ताओं के अनुसार झारखण्ड सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को जनहित में इन गंभीर मुद्दों पर पहल करनी चाहिए, जो अभी तक मंत्री के द्वारा इन सभी मुद्दों पर पहल नहीं की गई, जबकि इस प्रतिनिधिमंडल की टीम ने 2013 से लेकर 2018 तक कई बार, इससे संबंधित ज्ञापन, स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य मंत्री, प्रवर समिति, झारखण्ड विधानसभा को दे चुकी है, मगर अभी तक इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, जो बताता है कि यहां किस प्रकार आम आदमी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। वक्ताओं ने कहा कि कि सरकारी-निजी स्वास्थ्य सेवाओं की सोशल ऑडिट होनी चाहिए, झारखण्ड में जनचिकित्सा आयोग बनाने तथा अन्य सभी मुद्दों को लेकर, जल्द ही एक प्रतिनिधिमंडल राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव से मिलेगा, तथा जनस्वास्थ्य के अभियान को तेज किया जायेगा।

आज के इस विशेष बैठक में टीएसी के रतन तिर्की, जनस्वास्थ्य अभियान संघर्ष मोर्चा के नदीम खान, बैंक नेता एम एल सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता आलोका कुजूर, पत्रकार ललित मुर्मू, बशीर अहमद, अरविन्द अविनाश, कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता राजेश गुप्ता, आम आदमी पार्टी के लक्ष्मी नारायण मुंडा, जेवीएम के अभिजीत दत्ता, मदन पाल, प्रभाकर नाग, सौमित्रो भट्टाचार्य, अरुप राय, रमजान रजा कुरैशी, मो. बब्बर एवं तारीक मुजीबी ने भाग लिया।