अपनी बात

वाम संगठनों ने लिया संकल्प, जालियांवालाबाग हत्याकांड के शहीदों को याद कर, उनके सपनों का भारत बनायेंगे

जालियांवाला बाग हत्याकांड के पूरे 100 साल हो गये। होना तो चाहिए था कि पूरा देश 13 अप्रैल 2019 को एक साथ खड़ा हो जाता, तथा उन अमर शहीदों को याद करता, जो जनरल डायर के क्रूरता के शिकार हुए, पर राजनीतिक रैलियों, चुनावी सभाओं तथा नेताओं के बेवजह के चिल्लम-पो में जालियांवाला बाग हत्याकांड की वार्षिकी दम तोड़ दी, हालांकि पंजाब सरकार ने जालियांवाला बाग हत्याकांड के वार्षिकी के दिन अपने नेता राहुल गांधी को बुलाकर, उक्त स्थल पर श्रद्धांजलि दिलवाई।

पर होना तो यह चाहिए था कि वह दिन राजनीति से भी उपर उठता, और सभी मिलकर उन शहीदों को याद करते, पर ये क्या बात आई और चली गई, लेकिन अच्छा लगा कि भाकपा माले से जुड़े लोगों ने देश के विभिन्न स्थानों पर अपने –अपने ढंग से उन अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दी, जो चर्चा का विषय बना, पर दुर्भाग्य की अन्य राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने अभी भी इसके महत्व को समझने की कोशिश नहीं की। शायद वे नहीं जानते कि जो देश अपने वीर शहीदों की शहादत को भूल जाता है, वह आनेवाले समय में खुद को भी नष्ट कर डालता है।

 13 अप्रैल 2019 यानी जलियांवाला बाग नरसंहार का सौवां साल। वह बैसाखी के त्यौहार का दिन था। आस-पास के गावों-कस्बों से हजारों नर-नारी-बच्चे अमृतसर आये हुए थे। उनमें से बहुत-से लोग खुला मैदान देख कर जलियांवाला बाग में डेरा जमाए थे। रौलेट एक्ट के विरोध के चलते पंजाब में तनाव का माहौल था। तीन दिन पहले अमृतसर में जनता और पुलिस बलों की भिड़ंत हो चुकी थी। पुलिस दमन के विरोध में 10 अप्रैल को पांच अंग्रेजों की हत्या और मिस शेरवूड के साथ बदसलूकी की घटना हुई थी।

कांग्रेस के नेता डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू गिरफ्तार किये जा चुके थे। शाम को जलियांवाला बाग में एक जनसभा का आयोजन था, जिसमें गिरफ्तार नेताओं को रिहा करने और रौलेट एक्ट को वापस लेने की मांग के प्रस्ताव रखे जाने थे। इसी सभा पर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर (जिन्हें पंजाब के लेफ्टीनेंट गवर्नर माइकेल फ्रांसिस ओ’ड्वायर ने अमृतसर बुलाया था) ने बिना पूर्व चेतावनी के सेना को सीधे गोली चलाने के आदेश दिए।

सभा में 15 से 20 हजार भारतीय मौजूद थे। उनमें से 500 से 1000 लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। फायरिंग के बाद जनरल डायर ने घायलों को अस्पताल पहुँचाने से यह कह कर मना कर दिया कि यह उनकी ड्यूटी नहीं है।  13 अप्रैल को अमृतसर में मार्शल लॉ लागू नहीं था। मार्शल लॉ नरसंहार के तीन दिन बाद लागू किया गया, जिसमें ब्रिटिश हुकूमत ने जनता पर भारी जुल्म किए।

जनरल डायर ने जो ‘ड्यूटी’ निभायी, उस पर चश्मदीदों, इतिहासकारों और प्रशासनिक अधिकारियों ने, नस्ली  घृणा से लेकर डायर के मनोरोगी होने तक, कई नज़रियों से विचार किया है। ब्रिटिश हुकूमत ने जांच के लिए हंटर कमीशन बैठाया और कांग्रेस ने भी अपनी जांच समिति बैठाई। इंग्लैंड में भी जनरल डायर की भूमिका की जांच को लेकर आर्मी कमीशन बैठाया गया। इंग्लैंड के निचले और उंचले सदनों में में भी डायर द्वारा की गई फायरिंग पर चर्चा हुई। हालांकि निचले सदन में बहुमत ने डायर की फायरिंग को गलत ठहराया लेकिन उंचे सदन में बहुमत डायर के पक्ष में था। इंग्लैंड के एक अखबार ने डायर की सहायता के लिए कोष की स्थापना की। जिसमें करीब 70 हज़ार पौंड की राशि इकठ्ठा हुई। भारत में रहने वाले अंग्रेजों और ब्रिटेन वासियों ने डायर को  ‘राज’ की रक्षा करने वाला स्वीकार किया।

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि ट्रेन से लाहौर से दिल्ली लौटते हुए, उन्होंने खुद जनरल डायर को अपने सैन्य सहयोगियों को यह कहते हुए सुना कि 13 अप्रैल 1919 को उन्होंने जो किया, बिलकुल ठीक किया। जनरल डायर उसी डिब्बे में हंटर कमीशन के सामने गवाही देकर लौट रहे थे। जनरल डायर ने अपनी हर गवाही और बातचीत में फायरिंग को, बिना थोड़ा भी खेद जताए, पूरी तरह उचित ठहराया। ऐसे संकेत भी मिलते हैं कि उन्होंने स्वीकार किया था कि उनके पास ज्यादा असला और सैनिक होते तो वे और ज्यादा सख्ती से कार्रवाई करता। इससे लगता है कि अगर वे दो आर्मर्ड कारें, जिन्हें रास्ता तंग होने के कारण डायर जलियांवाला बाग के अंदर नहीं ले जा पाए, उनके साथ होती तो नरसंहार का पैमाना बहुत बढ़ सकता था।

हंटर कमीशन की रिपोर्ट और अन्य साक्ष्यों के आधार पर जनरल डायर को उनके सैन्य पद से हटा दिया गया। डायर भारत में ही जन्मे थे, लेकिन वे इंग्लैंड लौट गए और 24 जुलाई 1927 को बीमारी से वहीँ उनकी मृत्यु हुई। क्रांतिकारी ऊधम सिंह ने अपने प्रण के मुताबिक 13 मार्च 1940 को माइकेल ओ’ड्वायर की लंदन के काक्सटन हॉल में गोली मार कर हत्या कर दी। ऊधम सिंह वहां से भागे नहीं। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 31 जुलाई  1940 को फांसी दे दी गई. ऊधम सिंह का पालन अनाथालय में हुआ था। वे भगत सिंह के प्रशंसक और हिंदू-मुस्लिम एकता के हिमायती थे। बताया जाता है कि अनाथालय में रहते हुए उन्होंने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आज़ाद रख लिया था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘नाईटहुड’ और गाँधी ने ‘केसरेहिंद’ की उपाधियां वापस कर दीं। इस घटना के बाद भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने नए चरण में प्रवेश किया। करीब तीन दशक के कड़े संघर्ष और कुर्बानियों के बाद देश को आज़ादी मिली। भारत का शासक वर्ग वह आज़ादी सम्हाल नहीं पाया। उलटे उसने देश को नए साम्राज्यवाद की गुलामी में धकेल दिया है। ‘आज़ाद भारत’ के नाम पर केवल सम्प्रदायवाद, जातिवाद, परिवारवाद, व्यक्तिवाद और अंग्रेज़ीवाद बचा है। इसी शासक वर्ग के नेतृत्व में भारत के लोग नवसाम्राज्यवादी लूट में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा पाने के लिए एक-दूसरे से छीना-झपटी कर रहे हैं। कहा जा रहा है यही ‘नया इंडिया’ है, इसे ही परवान चढ़ाना है।

जलियांवाला बाग की कुर्बानी के सौ साल का जश्न नहीं मनाना है। साम्राज्यवाद विरोध की चेतना को सलीके से बटोरना और सुलगाना है, ताकि शहीदों की कुर्बानी व्यर्थ नहीं चली जाए। इस दिशा में सोशलिस्ट पार्टी आज से साल भर तक कुछ कार्यक्रमों का आयोजन करेगी। उनमें साथियों की सहभागिता और सहयोग की अपेक्षा रहेगी। 

12 अप्रैल को जलियाँवालाबाग कांड के 100 साल पूरे होने पर AIPF की तरफ से एक प्रेस कान्फ्रेंस का आयोजन दिल्ली के वीमेन्स प्रेस क्लब में सम्पन्न हुआ था। इस अवसर पर ना सिर्फ जलियाँवालाबाग कांड के दौरान अंग्रेजी शासन की क्रूरता को याद किया गया बल्कि आज़ादी के लिए जनसंघर्षों की कहानी और आज़ादी के लिये साम्प्रदायिक सौहार्द और सामूहिक प्रतिरोध को याद किया गया। प्रेस कांफ्रेंस में जलियाँवालाबाग बाग को याद करते हुए वर्तमान दौर की चुनौतियों और वर्तमान सरकार के नीतियों पर भी चर्चा हुई।

वक्ताओं ने स्पष्ट रूप से इस बात को चिन्हित किया कि जिस तरह अंग्रेजों ने उस दौर में आज़ादी और अभिव्यक्ति को विभिन्न कानूनों के द्वारा कुचलने का प्रयास किया और संघर्षकारियों का सरकारी तौर पर दमन किया, उसी तरह के विभिन्न जनविरोधी कानूनों के तहत आज भी काले अंग्रेज संघर्षों और आज़ाद अभिव्यक्ति को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं। AIPF इस तरह के हर प्रयास के खिलाफ़ अपने संघर्ष को बनाये रखने का प्रयास जारी रखेगा।

वक्ताओं में AIPF सचिवालय टीम के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार जॉन दयाल, किरण शाहीन, समाजवादी संघर्षों के वरिष्ठ नेता विजय प्रताप, अखिल भारतीय किसान महासभा उपाध्यक्ष प्रेम सिंह गहलावत, AIPF राष्ट्रीय संयोजक गिरिजा पाठक और AIPF दिल्ली संयोजक मनोज सिंह ने संबोधित किया। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण जलियांवाला बाग कांड और उससे उपजे क्रांतिकारी आंदोलन के प्रश्नों को मीडिया के बड़े हिस्से द्वारा सचेत रूप से पृष्ठभूमि में धकेलने की कोशिश की गई है लेकिन पूरे देश में आमजन जलियांवाला बाग की प्रेरणा और क्रांतिकारी आंदोलन और उसके नायक भगतसिंह – अशफाकउल्ला की विरासत को आम जनता जगह जगह याद करते हुए वास्तविक जनांदोलन को आगे बढ़ा रही है।

13 अप्रैल 209  को कोरल क्लब, नार्थ सेंट्रल रेलवे, इलाहाबाद, जलियांवालाबाग के नरसंहार के सौ वर्ष होने पर शहीदो को श्रद्धाजंलि दी गई थी। श्रध्दांजलि सभा की अध्यक्षता इडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड मनोज कुमार पांडेय, मुख्य वक्ता एसोसिएट प्रोफेसर डा रामायण राम व संचालन डा कमल उसरी ने किया था। श्रध्दांजलि सभा की शुरुआत शहीद बेदी पर पुष्प अर्पित करने बाद दो मिनट मौन रख कर की गई, 

श्रध्दांजलि सभा के मुख्य वक्ता एसोसिएट प्रोफेसर डा रामायण राम ने कहा कि बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में रोलेट एक्ट, अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों व दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। करीब 5,000 लोग जलियाँवाला बाग में इकट्ठे थे। ब्रिटिश सरकार के कई अधिकारियों को यह 1857 के गदर की पुनरावृत्ति जैसी परिस्थिति लग रही थी, जिसे न होने देने के लिए और कुचलने के लिए वो कुछ भी करने के लिए तैयार थे।

मुख्य वक्ता ने कहा कि आज आजाद भारत मे भी स्थितियां लगभग वैसी ही होती जा रही हैं, आज भी किसानों नौजवानों आदिवासियों पर पुलिसिया दमनात्मक कार्यवाही जारी हैं, माब लिंचिग घटनाएं बढ रही हैं और सरकारे जाति संप्रदाय के नाम पर गोलबंदी कर रही हैं, हिंदू मुस्लिम एकता गंगा जमुनी तहजीब को बर्बाद कर रही हैं, इसलिए हमारी जिम्मेदारी बढ जाती हैं कि हम उठो मेरे देश नये भारत के वास्ते, भगत सिंह, अम्बेडकर के रास्ते के नारे को बुलंद करते हुए जनता का भारत बनाने के लिए फासीवाद, साम्राज्यवाद को हराने के लिए पूरी ताकत लगा दें। 

श्रध्दांजलि सभा की अध्यक्षता कर रहे इडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड मनोज कुमार पांडेय ने कहा कि उस समय के जलियांवालाबाग नरसंहार को अंजाम देने वाले जनरल डायर को मौत के घाट उतारने वाले उधमसिंह के पिता रेलवे के कर्मचारी थे, और आज के जो जनरल डायर किसान आदिवासी मेहनतकश बेरोजगार नौजवान की हत्या कर रहे है उसके खिलाफ पुनः रेलवे कर्मचारी के बेटे उधमसिंह बनकर जनरल डायरों को हराऐंगें।

श्रध्दांजलि सभा को इडियन रेलवे इम्प्लाइज फेडरेशन के संयुक्त महासचिव कामरेड संजय तिवारी, नार्थ सेंट्रल रेलवे वर्कर्स यूनियन सम्बद्ध ऐक्टू के संगठन मंत्री विनय तिवारी, सहायक केंद्रीय मंत्री सैयद इरफात अली, मैकेनिकल शाखा मंत्री एनसीआर डब्लू यू इलाहाबाद रुक्मा नंद पांडे, संदीप सिंह, इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता कामरेड माता प्रसाद पाल, समकालीन जनमत के संपादक के के पांडेय, ऐक्टू राज्य सचिव अनिल वर्मा, आइसा राज्य सचिव कामरेड शैलेश पासवान,जसम जिला संयोजक व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लेक्चर डा अंशुमान कुशवाहा, शिवानी, अंतस, सर्वेश, प्रदीप ओबामा, सिद्धेश्वर मिश्र सहित सैकड़ों रेलवे कर्मचारी उपस्थित रहे, संचालन ऐक्टू जिला सचिव डा कमल उसरी ने किया।